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ब्रिटेन से की थी बेकरी की पढ़ाई, लगातार तीन बार रांची के सांसद रहे थे पीके घोष

राजकुमार लाल, रांची : शांत कुमार घोष रांची से तीन बार सांसद चुने गये थे. राजनीति में कभी उसूलों से समझौता नहीं किया़ प्रशांत कुमार घोष एक जमींदार परिवार से थे़ उनके पिता का नाम तारा प्रसन्ना घोष था. प्रसन्ना घोष एक जमींदार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे. प्रशांत कुमार घोष को पूरी रांची और […]

राजकुमार लाल, रांची : शांत कुमार घोष रांची से तीन बार सांसद चुने गये थे. राजनीति में कभी उसूलों से समझौता नहीं किया़ प्रशांत कुमार घोष एक जमींदार परिवार से थे़ उनके पिता का नाम तारा प्रसन्ना घोष था. प्रसन्ना घोष एक जमींदार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे.

प्रशांत कुमार घोष को पूरी रांची और राजनीतिक मित्र पीके घोष के नाम से अधिक जानते थे. उनका पूरा परिवार बंगाल से आकर संयुक्त बिहार के जमाने में ही बस गया था. पीके घोष का जन्म रांची में ही हुआ था. हिंदपीढ़ी के घोष कंपाउंड में पूरा परिवार रहता था.
दूरदराज से ही लोग घोष कंपाउंड को उनके नाम से जानते थे. आज भी रांची में रहनेवाले पुराने लोग इसी नाम से उन्हें पहचानते हैं. पहली बार वे 1962 से 1967 तक रांची इस्ट के सांसद रहे थे़ 1967 से 1971 तक वे दूसरी बार सांसद रहे थे़ उन्होंने कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा था और इसमें जीत हासिल हुई थी. इस चुनाव में उन्होंने एके सिन्हा को हराया था.
इस चुनाव में पहले की तुलना में प्रचार प्रसार में थोड़ा बदलाव आया और बदलते समय के अनुसार प्रचार-प्रसार किया गया. इसमें उन्हें अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि पहले से ही वह सांसद थे.
1971 में उन्हें पुनः कांग्रेस पार्टी से टिकट मिला और वे चुनाव मैदान में उतरे और इस बार भी जीत हासिल की. इस चुनाव में उन्होंने जनसंघ के रूद्र प्रताप सारंगी को हराया था.1977 तक वे सांसद रहे थे. इसके बाद उन्हें टिकट नहीं मिल पाया था़ उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा.
पीके घोष ने हमेशा अपनी बदौलत मुकाम हासिल की. जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने कभी भी अपने नीति सिद्धांत से समझौता नहीं किया. कभी भी अपने लोगों को लाभ दिलाने के लिए अपने राजनीतिक कद का इस्तेमाल नहीं किया.
अपनी ईमानदारी के कारण समाज में उनकी एक अलग पहचान थी़ उनके घरवालों को आज भी याद है कि पहले चुनाव में जब वे स्वतंत्र पार्टी से चुनाव मैदान में थे, तो उन्होंने 15000 रुपये खर्च किया था. प्रचार के लिए रिक्शा साइकिल और अपनी गाड़ी का इस्तेमाल करते थे.
वे एक शिक्षाविद भी थे. रांची जिला स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद संत जेवियर्स कॉलेज से आइएससी की शिक्षा पूरी की़ वह संत जेवियर्स कॉलेज के पहले बैच के विद्यार्थी थे. इसके बाद उन्होंने संत कोलंबा कॉलेज, हजारीबाग से बीएससी की पढ़ाई पूरी की़ उन्हें बीएससी में डिस्टिंक्शन मिला था.
इसके बाद फूड एंड बेकिंग टेक्नोलॉजी की पढ़ाई करने के लिए ब्रिटेन चले गये थे. वहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह लौटे. समाज में उनकी पहचान शिक्षाविद के साथ-साथ बेकरी मैन के रूप में भी थी.
उन्होंने उस समय अत्याधुनिक सुविधायुक्त बेकरी का प्लांट रांची में खोला था. प्रशांत घोष का निधन 25 दिसंबर 2013 को हुआ़
परिवार में पत्नी छवि घोष, तीन पुत्र सिद्धार्थ घोष रूद्र प्रताप और विक्रमादित्य के अलावा अन्य सदस्य हैं. वर्तमान में बड़े पुत्र सिद्धार्थ घोष और उनकी मां रांची में रहती हैं. छोटा भाई विदेश में और एक भाई वर्धमान चले गये हैं. आज भी उनका परिवार सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है.
उनकी मां भी इसमें बढ़-चढ़ कर सहयोग करती हैं. प्रशांत कुमार ने रांची में कई शैक्षणिक संस्थानों को खोलने में सहयोग किया था. वहीं आई बैंक की स्थापना से लेकर अन्य सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे, जिस कारण से समाज के सभी धर्मों के लोगों के बीच उनकी एक अलग पहचान थी.

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