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चालीसा का पुण्यकाल- 9 : प्रेम की कोई सीमा नहीं होती
फादर अशोक कुजूर एक बुजुर्ग महिला सब्जी खरीदने बाजार गयी थी. इस दौरान वह एक सब्जी दुकान के पास अचानक गिर कर बेहोश हो गयी. सब्जी वाला भला आदमी था़ उसने एक रिक्शे वाले को कुछ पैसे दिये और कहा कि वह महिला को नजदीक के अस्पताल में भर्ती करा दे. रिक्शावाला उक्त महिला को […]
फादर अशोक कुजूर
एक बुजुर्ग महिला सब्जी खरीदने बाजार गयी थी. इस दौरान वह एक सब्जी दुकान के पास अचानक गिर कर बेहोश हो गयी. सब्जी वाला भला आदमी था़ उसने एक रिक्शे वाले को कुछ पैसे दिये और कहा कि वह महिला को नजदीक के अस्पताल में भर्ती करा दे. रिक्शावाला उक्त महिला को लेकर अस्पताल पहुंचा़ इमरजेंसी केस होने की वजह से महिला को तुरंत एक बेड में शिफ्ट करा कर कुछ जरूरी दवा दे दी गयी.
नर्स ने भर्ती संबंधी कागजात पूरा करने के लिए महिला के बैग की तलाशी ली़ उसमें एक मोबाइल मिला़ नर्स ने लास्ट नंबर पर कॉल किया़
उधर, से एक लड़के की आवाज आयी. नर्स ने जल्दी में उससे कहा कि उसकी मां अस्पताल में गंभीर स्थिति में भर्ती है़ वह जल्दी आ जाये़ आधे घंटे में वह लड़का भागा-भागा अस्पताल पहुंच गया़ उसके आते ही नर्स उसे महिला के बेड के पास ले आयी और महिला से कहा- ‘आपका बेटा आया है़ ’ महिला ने आंख नहीं खोली, पर धीरे से अपना हाथ उठा दिया़ लड़के ने महिला के हाथ को अपने हाथ में लिया और वहीं बैठ गया़ कुछ देर बाद महिला की सांस रुक गयी.
नर्स ने दुख जताते हुए कहा कि अच्छा हुआ तुम्हारी मां तुम्हारे हाथों को पकड़ कर इस दुनिया से चली गयी. लड़के ने जवाब दिया- ये मेरी मां नहीं है़ इस महिला ने मुझे अपना टीवी रिपेयर करने के लिए कॉल किया था़ जब मैंने इन्हें आखिरी सांस गिनते देखा, तो लगा इन्हें एक बेटे की जरूरत है. इसलिए मैं यहीं बैठ गया़
एक अनजान टीवी मैकेनिक ने एक अनजान महिला का बेटा बन कर मानवता का काम किया़ चालीसा काल भी पुण्य कमाने का पवित्र समय है़ हम दान करें, मदद करें, सेवा करे़ं हमारे भले कार्य दुनिया की नजर में कितने भी छोटे क्यों न हों, ईश्वर की नजर में वे बड़े है़ं लेखक डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक हैं
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