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प्रभात खबर की विशेष बातचीत : जमीन से जुड़े हैं पद्मश्री सम्मान पाकर झारखंड का मान बढ़ानेवाले ये लोग

पद्मश्री सम्मान पानेवाले बुलू इमाम, डॉ एसपी मुखर्जी, कड़िया मुंडा और जमुना टुडू से प्रभात खबर की विशेष बातचीत डॉक्टर दौलत के भूखे न बनें, मरीजों के चेहरे की खुशी को ही संपत्ति मानें राजीव पांडेय रांची : मरीजों की सेवा और उनके चेहरे की खुशी ही जिनकी सबसे बड़ी दौलत व जमा पूंजी है, […]

पद्मश्री सम्मान पानेवाले बुलू इमाम, डॉ एसपी मुखर्जी, कड़िया मुंडा और जमुना टुडू से प्रभात खबर की विशेष बातचीत
डॉक्टर दौलत के भूखे न बनें, मरीजों के चेहरे की खुशी को ही संपत्ति मानें
राजीव पांडेय
रांची : मरीजों की सेवा और उनके चेहरे की खुशी ही जिनकी सबसे बड़ी दौलत व जमा पूंजी है, उनका नाम है डॉ एसपी मुखर्जी. डॉ मुखर्जी मरीजों के लिए जीते हैं और जीवन का अधिकांश समय मरीजों को ही देते हैं. शाम होते ही लालपुर स्थित उनके क्लिनिक पर मरीजों की भीड़ लग जाती है. वह सिर्फ पांच रुपये में मरीजों को परामर्श देते हैं. केंद्र सरकार ने डॉ मुखर्जी को उनकी सेवा भाव के लिए पद्मश्री से पुरस्कृत करने का फैसला लिया है. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश.
सरकार ने आपको पद्मश्री के लिए चुना है, आपको कैसा महसूस हो रहा है?
यह खुशी की बात है कि सरकार ने मेरे कार्य को पहचाना और उसे अहमियत दी. मैं सरकार के इस सम्मान के प्रति आभारी हूं. हमारे साथी इस दिशा में अपने को समर्पित करें और अपने कार्य का कुछ अंश गरीबाें को दें. डॉक्टरों के दिल में सेवा भाव होना चाहिए. अगर आपके दिल में सहानुभूति, हमदर्दी नहीं है, तो आपको चिकित्सा पेशा को नहीं चुनना चाहिए. इस पेशे में आप पर लोगाें का विश्वास होता है. उसके विश्वास को कभी नहीं तोड़ना चाहिए.
गरीबों की सेवा के लिए कहां से प्रेरणा मिली?
यह स्वत: महसूस करने की बात है. गरीब असहाय होता है, उसे दो वक्त का भोजन नहीं मिलता है, ऐसे में वह किसी डॉक्टर को 500, 1000 व 2,000 रुपये कैसे फीस देगा? इसके बाद जांच व दवा का खर्च अलग है.
मरीज को खुश देखने के बाद जो अनुभूति होती है, वही सबसे बड़ी फीस होती है. मैंने एमबीबीएस पास करने के साथ ही गरीबों की सेवा का कार्य शुरू कर दिया था. वर्ष 1959 में आरा के उदवंत नगर ब्लाक में योगदान दिया तब से मरीजों को देखना शुरू कर दिया था. आजकल के युवा डॉक्टर को संतुष्टि नहीं है. वह दौलत के पीछे भाग रहे हैं. ऐसे में आप मरीजों की सेवा भाव की कल्पना नहीं कर सकते हैं.
मरीज और डॉक्टर के बीच कैसा संबंध होना चाहिए?
मरीज व डॉक्टर में हमेशा प्रेमभाव होना चाहिए. सहानुभूति, हमदर्दी का भाव होना चाहिए. लेकिन, आजकल मरीज को डॉक्टर कस्टमर मानने लगे हैं.
चिकित्सा जगत का व्यवसायीकरण हो गयाहै. डॉक्टर यह नहीं सोचते हैं कि मरीज की आर्थिक स्थिति कैसी है, वह पैसा देने के लिए सक्षम है या नहीं. कॉरपोरेट अस्पताल में मुरव्वत नाम का कोई चीज नहीं है. ऐसे मरीज जमीन जायदात बेच कर इलाज कराने काे विवश होता है.
जीवन का कोई ऐसा वाकया जो आपको अब भी याद है?
एमबीबीएस करने के बाद मेरी पहली नौकरी आरा से चार मील दूर लगी थी. जीप मिली थी. नौकर भी था सहायता के लिए. मुझे याद है कि गांव में इलाज के लिए खेत की पगडंडी पर मेढ़ से होकर जाना पड़ताथा. किसी तरह हम गांव पहुंचते थे. घर-घर जाकर इलाज करते थे. ठीक होने पर लोग के चेहरा प्रसन्न हो जाता था, तो बहुत आनंद आता था.
कोई दूध पिलाता, ताे कोई दही का मटका देकर स्वागत करता था. अपनापन लगता था. मेरा ट्रांसफर दरभंगा हो गया. मैं ट्रेन पकड़ने स्टेशन पहुंचा, तो देखा पूरा स्टेशन भरा हुआ है. गांव के लोग मुझे रोकने के लिए आये थे. सब यही कह रहे थे कि अाप हमको छोड़ कर मत जाइये. पर नौकरी का सवाल था, इसलिए जाना पड़ा.
क्या आपको लगता है कि मेडिकल के शैक्षणिक स्तर में गिरावट आयी है?
मेडिकल का शैक्षणिक स्तर गिरा है. पहले के शिक्षकों में समर्पण भाव था. सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ ओपी सिन्हा जब पढ़ाने आते थे, तो पहले अपनी कमियों को बताते थे. मरीज के इलाज में उनसे क्या कमी रह गयी व बताते थे. इसके बाद पढ़ाते थे. आज के शिक्षकों में अहम हो गया है.
वह अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझते हैं. स्टूडेंट में भी काफी कमी आयी है. उनमें सीखने की भावना नहीं है. डॉ शिवनारायण सिंह हमारे आइडियल थे. वह एक अच्छे शिक्षक थे. 10 रुपये की फीस पर मरीजों को देखते आये थे.
राजनीति सेवा का कार्य, दुर्भाग्य से आज इसमें घुस गया है चकाचौंध
खूंटी/रांची : खूंटी के वर्तमान सांसद कड़िया मुंडा ने कहा कि पार्टी और सरकार में जो भी जिम्मा दिया जाता है, उसे मैं ईमानदारी के साथ करता हूं. एक जनप्रतिनिधि का समाज के लिए जो भी दायित्व है, उसे अपने सामर्थ्य के अनुसार पूरा करता हूं. मैं जनहित के लिए कार्य करता हूं, न कि विज्ञापन के लिए. आज जितना विज्ञापन किया जाता है, उतना काम नहीं होता है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि आजकल लोगों को छपास की बीमारी लग गयी है. छोटा काम करते हैं और ऐसे दिखाते हैं, जैसे धरती को उठा लिया है. उन्होंने कहा कि राजनीति सेवा का कार्य है, लेकिन दुर्भाग्य से आज इसमें चकाचौंध घुस गया है. पद्मभूषण सम्मान मिलने के बाद रविवार को श्री मुंडा प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत कर रहे थे. उन्होंने आज के दौर की राजनीति को लेकर कहा कि लोगों को अपना काम करते रहना चाहिए़. अगर लोग थोड़ा-थोड़ा भी काम करेंगे, तो समाज का विकास होगा.
लोकसभा अध्यक्ष बनने का मिला था प्रस्ताव, कर दिया इंकार
वर्ष 2014 में जब भाजपा सरकार बनी, तब कड़िया मुंडा को लोकसभा में अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया गया था. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चाहते थे कि वे अध्यक्ष बनें, लेकिन सांसद कड़िया मुंडा ने इंकार कर दिया था.
उन्होंने अपने अनुभवों को बताते हुए कहा कि पिछली सरकार में वे लोकसभा के उपाध्यक्ष थे. इस दौरान वे क्षेत्र की जनता से कट गये थे. लोकसभा अध्यक्ष बनाये जाने पर वे फिर से लोगों से दूर हो जाते. इसी सोच के कारण उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष पद लेने से मना कर दिया. आगामी चुनाव को लेकर कहा कि पार्टी जो भी निर्णय लेगी, उन्हें स्वीकार है. अगर पार्टी चाहेगी तो फिर से चुनाव लड़ेंगे.
पद्मभूषण सम्मान के लिए चुने जाने पर बच्चों संग बांटी खुशियां
उन्होंने बताया कि पद्मभूषण सम्मान के लिए चुने जाने की खबर उन्हें 25 जनवरी को मिली. शाम चार बजे वे अपने घर में थे. इसी दौरान गृह मंत्रालय से उन्हें फोन आया, जिसमें उन्हें पद्मभूषण सम्मान के लिए चुने जाने की सूचना दी गयी. इसके लिए श्री मुंडा ने चयन समिति और भारत सरकार का आभार प्रकट किया है. श्री मुंडा ने बताया कि राजनीति के साथ-साथ वे क्षेत्र के लोगों को शिक्षा देने के लिए कार्य किया है.
विभिन्न संस्थाओं से जुड़ कर यहां के गरीब और आदिवासी बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास करते हैं. इसके अलावा अस्पताल और अनाथालय का संचालन करते है. 26 जनवरी को श्री मुंडा सुबह बंदगांव में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए. फिर अनिगड़ा स्थित एसजीवीएस अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने वाले बुजुर्गों के बीच कंबल का वितरण किया. दोपहर के बाद अपने गांव अनिगड़ा में आयोजित एक मैच में मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया. पद्मभूषण सम्मान के लिए चुने जाने पर श्री मुंडा ने बच्चों के संग खुशियां बांटीं.
कड़िया मुंडा का राजनैतिक और सामाजिक सफर
कड़िया मुंडा पहली बार वर्ष 1977 में सांसद के रूप में चुने गये थे. इसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2009 और 2014 में सांसद चुने गये. इस दौरान वे इस्पात मंत्री, कैबिनेट मंत्री और लोक सभा के उपाध्यक्ष पद पर रहे.
श्री मुंडा भाजपा के साथ जनसंघ के दौरान से जुड़े हुए हैं. वे विधायक भी रह चुके हैं. इसके अलावा वे लगातार सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए रहे हैं. पद्मभूषण सांसद कड़िया मुंडा विभिन्न संस्थाओं के साथ जुड़ कर वे छह स्कूलों का संचालन करते हैं. देश-विदेश की संस्थाओं की मदद से लगभग 760 गरीब आदिवासी बच्चे बड़े शहरों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. वहीं खूंटी में अस्पताल और अनाथालय का भी संचालन करते हैं.
झारखंडी संस्कृति व सामाजिक कार्यों के लिए बुलू इमाम को मिला पद्मश्री
सलाउद्दीन
हजारीबाग : गृह मंत्रालय नयी दिल्ली से 25 जनवरी शाम 5.30 बजे फोन आया, बधाई हो सैय्यद अलफेड रोल हसन इमाम. आपको पद्मश्री अवार्ड के लिए चुना गया है. यह फोन गृह मंत्रालय से बुलू इमाम के पुत्र गुस्ताब इमाम के मोबाइल पर आया था.
गृह मंत्रालय की ओर से आगे पूछा गया कि क्या यह पद्मश्री पुरस्कार आप स्वीकार कर रहे हैं? जवाब दिया गया कि पिता की ओर से स्वीकार कर रहा हूं. गृह मंत्रालय ने इस सूचना को मीडिया में आने के बाद ही सार्वजनिक करने को कहा. पुत्र गुस्ताब खुशी से झूमते पिता के पास पहुंच कर यह सूचना देते हैं. बुलू इमाम ने अपने पुत्र से पूछा : तुम्हें पता है, जब रवींद्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिलने की जानकारी मिली थी, उस समय वे क्या कर रहे थे? बेेटे ने कहा नहीं. बुलू इमाम ने बताया कि उस समय रवींद्रनाथ टैगोर शांति निकेतन में नाली की सफाई कर रहे थे. मैं भी आज अपने घर की सफाई मजदूर से करा रहा हूं. मैं मजदूर की सीढ़ी पकड़े हुए हूं.
इसके बाद परिवार के सदस्य इकट्ठा होने लगे. एलिजाबेथ इमाम, फिलोमीना इमाम, जूलियन व गुस्ताब इमाम समेत सभी लोगों ने बधाई दी. हजारीबाग कनहरी रोड स्थित बुलू इमाम के आवास पर टाना भगत का जत्था बधाई देने के लिए पहुंचा, तब बुलू इमाम भाव-विभोर हो गये. शहर के कई गणमान्य लोग व शिक्षाविद बधाई दे रहे हैं. प्रस्तुत है बुलू इमाम से खास बातचीत…
पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित होने पर कैसा महसूस कर रहे हैं?
यह खुशी का क्षण है. मैं भी काफी खुश हूं. बहुत सारे लोग देश में काम कर रहे है. झारखंड के एक छोटे शहर हजारीबाग में कोई व्यक्ति काम किया है. उसे देश स्तर पर केंद्र सरकार नेभी स्वीकार किया. इससे आदिवासियों व महिलाओं की पहचान बनेगी. पद्मश्री मिलने के बाद मेरी आवाज को और शक्ति मिलेगी.
अभी किस-किस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं?
इटखोरी में पर्यटक को बढ़ाने के लिए बोध सर्किट बनवाने के लिए काम कर रहा हूं. कला संस्कृति के क्षेत्र में काम किया हूं. लेकिन अब मैं अपना पूरे मन व ध्यान पर्यावरण के क्षेत्र में लगा दिया हूं. हजारीबाग में जो पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. इचाक से पदमा तक क्रशर लगने से, नेशनल पार्क व कनहरी पहाड़ के इर्द-गिर्द जो पर्यावरण को नुकसान हुआ है, उससे काफी दुखी हूं. पर्यावरण के लिए काम करूंगा.
बुलू इमाम का परिचय
सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री पानेवाले हजारीबाग के बुलू इमाम का जन्म 31 अगस्त 1942 को हुआ. उनकी पढ़ाई संत जेवियर स्कूल हजारीबाग से हुई है. बुलू इमाम पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर झारखंड में आदिवासी संस्कृति व विरासत को संरक्षित करते रहे है.
बुलू इमाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सैयद हसन इमाम के पोते हैं. उनके पिता का नाम टुटू इमाम है. उनकी पत्नी का नाम एलिजाबेथ इमाम व फिलोमीना इमाम है. पुत्र जस्टिन इमाम, जूलियन इमाम, गुस्ताब इमाम व स्व जोसेन इमाम, पुत्री जूलियस इमाम, जनसीता इमाम व जून इमाम है. बुलू इमाम झारखंड के पुरातत्व, जनजातीय व पर्यावरण के लिए काम किया है. 1987 से इंटक हजारीबाग चैप्टर के संयोजक हैं. 1991 में इस्कोमें झारखंड की पहली चट्टान कला की खोज की. बाद में उत्तरी कर्णपुरा घाटी में दर्जनों चट्टान कला स्थल की खोज की.
1993 में कोहवर (विवाह) कला व मिट्टी के घरों की दीवारों पर चित्रित सोहराय (फसल) कला को दुनिया के सामने लाये. 1995 में जन जातीय कला को बढ़ावा देने के लिए हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय व आर्ट गैलरी की स्थापना की. ऑस्ट्रेलिया, यूरोप व यूके में कोहवर व सोहराय चित्रों की 50 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों का आयोजन किया. वह पुस्तक ब्राइडल केव्स के लेखक हैं. उन्होंने आदिवासी कला व संस्कृति पर कई फिल्में बनायी हैं.
चाकुलिया :लेडी टार्जन ने कहा, सोचा नहीं था, इतना बड़ा सम्मान मिलेगा यह मेरे लिए गर्व का क्षण है
जमशेदपुर/चाकुलिया : पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड में ‘जंगल बचाआे अभियान’ की नायिका व लेडी टार्जन के नाम से विख्यात जमुना टुडू को केंद्र सरकार ने सामाजिक कार्य व पर्यावरण के लिए पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है. इसे लेकर जमुना टुडू ने प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि पद्मश्री जैसा बड़ा सम्मान उन्हें मिलेगा.
उन्होंने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभायी. पर्यावरण संरक्षण का महत्व समझाते हुए अपने साथ महिलाआें काे जाेड़ती गयीं. इसके बाद कारवां बनता गया. महिलाएं अगर किसी काम में निष्ठा से लग जायें, ताे उसमें सफलता अवश्य मिलती है. मेरे पास कहने काे शब्द नहीं है, लग रहा है कि काेई सपना देख रही हूं. इतना बड़ा सम्मान अपने आपमें गर्व की बात है. जब दिल्ली जाऊंगी, ताे सरकार से अपील करूंगी कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए गांव-गांव में समितियां बनाये. साथ ही शहराें में पाैधराेपण पर जोर दिया जाये.
प्रभात खबर ने शुरू से हौसला बढ़ाया
पद्मश्री से नवाजे जाने से मुझे काफी खुशी हुई है. यह सम्मान हमारी सहयोगी महिलाओं का है. उनके प्रयास से 18 वर्षों से जंगल बचाओ आंदोलन चल रहा है.
पर्यावरण की रक्षा जरूरी है. पर्यावरण का प्रदूषित होना जीव के लिए घातक है. पर्यावरण तभी सुरक्षित रहेगा, जब हम वनों की रक्षा करेंगे व पौधे रोपेंगे. मेरा व मेरी सहयोगी महिलाओं का हौसला बढ़ाने में प्रभात खबर ने प्रारंभ काल से ही अहम भूमिका अदा की. इसके कारण यह आंदोलन तेज हुआ और पूरे जिले में फैल गया. हम सभी वृक्षों की रक्षा करने व पौधरोपण का संकल्प लें. ऐसा होगा, तभी जीव-जंतु सुरक्षित रहेंगे.
जमुना टुडू का परिचय
जमुना टुडू का जन्म रायरंगपुर (ओड़िशा) स्थित जामदा प्रखंड के रागांमाटिया गांव में हुआ था. 1998 में उनकी शादी चाकुलिया के मुटुरखाम के बेड़ाडीह टोला निवासी मानसिंह टुडू के साथ हुई. पर्यावरण रक्षा का पाठ उन्होंने अपने माता-पिता से सीखा. ससुराल में आकर वनों की रक्षा का बीड़ा उठाया. मैट्रिक पास जमुना टुडू वर्ष 2000 में मुटुरखाम वन सुरक्षा समिति की अध्यक्ष बनीं. इसके बाद समिति में महिलाओं को जोड़कर वनों की सुरक्षा में जुट गयीं.
महिलाओं के साथ शराबबंदी अभियान चलाया
जमुना टुडू ने शराब बंदी के लिए भी अभियान चलाया. महिलाओं को एकजुट कर विभिन्न गांवों में शराब के खिलाफ रैली निकाली. अवैध शराब बनाने व विक्रेताओं को चेताया. महिलाओं के नेतृत्व में शराब भट्ठियां तोड़ीं. इसके कारण अनेक गांव शराब से मुक्त हुए.

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