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बिना अनुमति बढ़ता गया इस्टीमेट, हाइकोर्ट के निर्माण की लागत दो साल में 265 से बढ़ कर 699 करोड़ रुपये हो गयी

सीएम के आदेश के बाद उच्चस्तरीय जांच मनोज लाल रांची : झारखंड हाइकोर्ट के निर्माण कार्य की लागत दो साल में ही 265 करोड़ रुपये से बढ़ कर 699 करोड़ हो गयी है. वर्ष 2016 में मेसर्स रामकृपाल कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को टेंडर मिला था. उस समय योजना का इस्टीमेट 265 करोड़ रुपये था. बाद […]

सीएम के आदेश के बाद उच्चस्तरीय जांच
मनोज लाल
रांची : झारखंड हाइकोर्ट के निर्माण कार्य की लागत दो साल में ही 265 करोड़ रुपये से बढ़ कर 699 करोड़ हो गयी है. वर्ष 2016 में मेसर्स रामकृपाल कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड को टेंडर मिला था. उस समय योजना का इस्टीमेट 265 करोड़ रुपये था.
बाद में इसका इस्टीमेट बढ़ा दिया गया. इस्टीमेट बढ़ाने के दौरान किसी तरह की स्वीकृति नहीं ली गयी और उसी ठेकेदार को बिना टेंडर के ही काम दे दिया गया.
मामले की सूचना मुख्यमंत्री को मिली तो उन्होंने इसकी जांच उच्चस्तरीय कमेटी से कराने का आदेश दिया. इसके बाद विकास आयुक्त डॉ डीके तिवारी की अध्यक्षता में छह सदस्यीय कमेटी बनी. इस कमेटी ने जांच में बड़ी वित्तीय गड़बड़ियां पायी है. जांच के बाद कमेटी ने यह रिपोर्ट भवन निर्माण विभाग को सौंप दी है.
जांच कमेटी में विकास आयुक्त के अलावा अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, पथ निर्माण सचिव केके सोन, भवन सचिव सुनील कुमार, आइटी सचिव विनय चौबे व विधि सचिव भी थे. हाइकोर्ट का निर्माण भवन निर्माण विशेष प्रमंडल द्वारा कराया जा रहा है.
योजना की तकनीकी अनुमोदन ही सही नहीं : जांच कमेटी ने पाया कि योजना की तकनीकी अनुमोदन ही सही नहीं है. इसे अनुमोदित ही नहीं किया जाना चाहिए था.
कमेटी ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों को उठाया है, जो गलतियां इस योजना में हुई है. कमेटी ने यह पाया कि शुरू में योजना की प्रशासनिक स्वीकृति जितनी राशि की हुई थी, उसे कम करके फिर उसमें से 35-40 करोड़ रुपये निकाल कर शेष राशि पर टेंडर किया गया. योजना के इस्टीमेट से राशि निकाल कर टेंडर करना गलत था.
टेंडर के माध्यम से जिस ठेकेदार को काम दिया गया था, बाद में उसी ठेकेदार को निकाली गयी राशि का काम बिना टेंडर का दे दिया गया. इतना ही नहीं बाद में फिर कई काम और जोड़े गये, फिर योजना की राशि अत्यधिक बढ़ा दी गयी और सभी काम बिना टेंडर के ही उसी ठेकेदार को दे दिया गया. ये सारे काम बिना टेंडर के ही ठेकेदार को दिये गये हैं.
इस्टीमेट तैयार करनेवाले इंजीनियर पर सवाल : कमेटी ने पाया कि किसी योजना के क्रियान्वयन के पूर्व पूरी जांच की जाती है. मिट्टी जांच आदि के बाद ही उस योजना का इस्टीमेट बना है, तो इस्टीमेट तैयार करनेवाले वही इंजीनियर कैसे इतनी बड़ी गड़बड़ी कर सकते हैं कि कोई चीज निर्माण के लिए योजना में छूट जाये. अगर इतनी बड़ी गलती ये लोग कर सकते हैं, तो इन्हें नहीं रखना चाहिए. इन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
विकास आयुक्त की अध्यक्षता में छह सदस्यीय कमेटी ने की थी जांच, वित्तीय गड़बड़ी उजागर
जांच कमेटी ने जो सवाल उठाये
योजना की तकनीकी स्वीकृति गलत थी, तो उसे अनुमोदित कैसे किया
योजना के इस्टीमेट से राशि निकाल कर टेंडर करने की स्वीकृति कैसे हुई
इस्टीमेट में लगातार राशि की बढ़ोतरी करके बिना टेंडर के काम उसी ठेकेदार को कैसे दिया जाता रहा
जमीन व मिट्टी की जांच के बाद इस्टीमेट तैयार करने में इंजीनियर कैसे इतनी बड़ी चूक कर सकते हैं कि कोई भी चीज छूट जाये
कार्रवाई को लिखा
इस्टीमेट तैयार करने में चूक करनेवाले इंजीनियरों-कंसल्टेंट को नहीं रखा जाना चाहिए
बिना किसी एजेंडा के काम हुआ है. ऐसे में जो भी अभियंता संलिप्त रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई हो
इस तरह की गड़बड़ियों की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए आवश्यक कदम उठानी चाहिए
अतिरिक्त काम के लिए स्वीकृति जरूरी
जांच कमेटी ने यह भी पाया कि योजना के निर्माण के दौरान कई चीजों की स्वीकृति नहीं ली गयी है. कमेटी ने लिखा है कि अगर कुछ अतिरिक्त काम कराने की आवश्यकता थी, तो उसकी स्वीकृति ली जानी चाहिए थी. उसका टेंडर भी अनिवार्य रूप से करना चाहिए था.

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