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रिम्स में नहीं हैं किडनी रोग विशेषज्ञ मेडिसिन विभाग पर अतिरिक्त दबाव
रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में किडनी रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर (नेफ्रोलॉजिस्ट) नहीं हैं. इस कारण किडनी की बीमारी से जुड़ी कई तरह की जांच भी नहीं हो पाती हैं. फिलहाल, किडनी के मरीजों का इलाज मेडिसिन विभाग के डॉक्टर ही करते हैं. इससे मेडिसिन विभाग पर अतिरिक्त दबाव बढ़ जात है. […]
रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में किडनी रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर (नेफ्रोलॉजिस्ट) नहीं हैं. इस कारण किडनी की बीमारी से जुड़ी कई तरह की जांच भी नहीं हो पाती हैं. फिलहाल, किडनी के मरीजों का इलाज मेडिसिन विभाग के डॉक्टर ही करते हैं. इससे मेडिसिन विभाग पर अतिरिक्त दबाव बढ़ जात है. इस विभाग के छह वार्ड हैं और हर वार्ड में 18 से 20 किडनी के मरीज भर्ती होते हैं. यानी रिम्स के मेडिसिन विभाग में करीब 110 से ज्यादा मरीजों का इलाज किया जाता है.
रिम्स में किडनी रोग के विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए रिम्स प्रबंधन ने पद स्वीकृति के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा था, जिसकी स्वीकृति मिल गयी है. लेकिन, अब तक रोस्टर क्लियर नहीं हुआ है. रोस्टर क्लियर होने के बाद ही विशेषज्ञ डॉक्टर की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. हालांकि, नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने में भी दो से तीन माह का समय लग सकता है.
नेफ्रोलॉजिस्ट की नियुक्ति से संभव होगी रीनल बॉयोप्सी
मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ जेके मित्रा ने बताया कि विभाग में किडनी मरीजों का लोड रहता है, लेकिन उनका बेहतर इलाज किया जाता है. डायलिसिस सेंटर है, जहां चार मशीनें हैं. यहां मरीजों का डायलिसिस के माध्यम से इलाज किया जाता है. नेफ्रोलॉजिस्ट होने से किडनी की बीमारी से जुड़ी कई जांच हो सकती थी. रीनल बॉयोप्सी होने से किडनी की स्थिति की सही जानकारी मिल जाती.
रिम्स के मेडिसिन विभाग के वार्ड में औसतन 110 से ज्यादा किडनी के मरीज हर समय रहते हैं भर्ती
मेडिसिन विभाग के डॉक्टर ही करते हैं इनका इलाज नेफ्रोलॉजिस्ट के अभाव में नहीं हो पाती हैं जरूरी जांच
किडनी मरीज के इलाज के लिए नेफ्रोलाॅजिस्ट जरूरी है. हमने स्वास्थ्य विभाग को नियुक्ति का प्रस्ताव भेजा था, जिसे मंजूरी मिल गयी है, लेकिन रोस्टर क्लियर नहीं होने के कारण नियुक्त की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा रही है.
डॉ आरके श्रीवास्तव, निदेशक, रिम्स
रिम्स के मेडिसिन विभाग के वार्ड में कई बार किडनी के मरीजों को जमीन पर रख कर भी इलाज करना पड़ता है. यहां किडनी के मरीजों के लिए अलग वार्ड भी नहीं है.
ट्राॅमा सेंटर : छोटे से कमरे को बना दिया अल्ट्रासाउंड रूम
रांची : रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में अल्ट्रासाउंड जांच के लिए एक छोटा कमरा दिया गया है. यह कमरा इतना छोटा है कि उसमें गंभीर रूप से घायल मरीजों को स्ट्रेचर या व्हील चेयर लेकर नहीं जाया जा सकता है. नर्स या मरीज के परिजन भी वहां खड़ा रह सकते हैं. जानकारों का कहना है कि मरीज की जांच करने में काफी परेशानी होगी. ट्रॉमा सेंटर में बनाया गया माइनर ओटी भी काफी छोटा है.
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