रांची: स्वास्थ्य विभाग सात साल में 10 में से सिर्फ तीन ट्रॉमा सेंटर बना सका है. इनमें रिम्स को छोड़ शेष दो संचालित नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग के भारी बजट व खर्च के बीच यह जरूरी काम नहीं हुआ. ट्रॉमा सेंटर बनने से सड़क दुर्घटनाओं में घायल हुए लोगों की जान बच सकती है. वित्तीय वर्ष 2007-08 में यह योजना बनी थी. इधर, गढ़वा व बहरागोड़ा में करीब ढ़ाई करोड़ की लागत से दो ट्रॉमा सेंटर का भवन खड़ा हुआ, लेकिन संचालन शुरू नहीं हो सका है. रांची के रिम्स में ही सेंटर चल रहा है. शेष सात सेंटर अभी बनने हैं. अब विभाग ने 11 और ट्रॉमा सेंटर की स्थापना का प्रस्ताव केंद्र को भेजा है. अभी इसकी सहमति नहीं मिली है. हाल में रांची आये योजना आयोग के सदस्य कस्तुरीरंगन को भी राज्य सरकार ने इसकी जानकारी दी थी. ट्रॉमा सेंटर बनाने की योजना वित्तीय वर्ष 2007-08 में बनी थी. यह तय हुआ कि 10 ट्रॉमा सेंटर बनाये जायेंगे. इस बीच 11 वीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल भी समाप्त हो गया. 12 वीं के भी दो वर्ष गुजर गये हैं. इधर, अब तक सिर्फ दो सेंटर ही बन सके हैं. हर एक सेंटर की निर्माण लागत लगभग तीन-तीन करोड़ रुपये है.
क्या है ट्रॉमा सेंटर
ट्रॉमा (चोट) सेंटर दुर्घटना के बाद तत्काल इलाज व राहत पहुंचाने वाला केंद्र है. सड़क दुर्घटना से होनेवाली मौत या स्थायी विकलांगता पर काबू में यह मददगार होता है. दुर्घटना के बाद पीड़ितों का इलाज आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित व आमतौर पर राष्ट्रीय राज मार्गो पर स्थित इन केंद्रों में होता है. घायलों को दुर्घटना स्थल से सेंटर तक लाने के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिटें (एमएमयू) राजमार्गो पर तैनात होती हैं. सेंटर व एमएमयू के संपर्क राजमार्गो पर लगाये गये होर्डिग पर दिये होते हैं. सरकार इसका प्रचार-प्रसार भी करती है.
सरकारी बयान
2007-08 : ट्रॉमा सेंटर जीवन रक्षा के लिए जरूरी जान पड़ता है. यह सेंटर इमरजेंसी, ऑपरेशन थियेटर व मैन पावर से पूरी तरह परिपूर्ण होगा. 11वीं पंचवर्षीय योजना में इसका निर्माण पूरा होगा.
2008-09 : वही
2009-10 : वही. कुल 10 ट्रॉमा सेंटर बनना प्रस्तावित
2010-11 : सड़क दुर्घटना के पीड़ितों के लिए यह सेंटर जरूरी है. 11वीं पंचवर्षीय योजना में यह योजना जारी रहेगी.
2011-12 : सड़क दुर्घटना में इमर्जेसी व तत्काल मेडिकल सेवा उपलब्ध कराना जरूरी है. 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान सेंटर का काम जारी रहेगा.