रांची : विभिन्न संगठन के लोगों ने भीमा-कोरेगांव घटना के संदर्भ में रांची के स्टेन स्वामी और अन्य जगहों पर हुए छापेमारी के विरोध में प्रतिवाद मार्च निकाला. मार्च के दौरान कहा गया कि झारखंड का नागरिक समाज स्टेन स्वामी व अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हुए छापों की निंदा करता है. मार्च में शामिल विभिन्न संगठन के लोगों ने एक सुर में कहा कि हम, देश के विभिन्न प्रांतों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों, जो सरकार एवं सत्ताधारी दल की आलोचना करते रहे हैं, के घरों पर पुलिस के छापों से हतप्रभ एवं आहत हैं. सुधा भारद्वाज, वेरनन गोंसाल्विस, गौतम नवलखा, वरावर राव, अरुण फरेरा एवं अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से सरकार उन लोगों को आतंकित करने का प्रयास कर रही है जो वंचितों के न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं एवं जो उनके आवाज हैं.
विरोध में एकजुट हुए लोगों ने कहा कि झारखंड के जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी के आवास पर पुलिस का छापा बेहद आपत्तिजनक है. स्टेन लगातार राज्य के आदिवासियों एवं मूलवासियों के हक में आवाज उठाते आये हैं. उन्होंने विस्थापन, कॉर्पोरेट द्वारा संसाधनों की लूट और विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर बेहद शोधपरक काम किया है. वे झारखंड की भाजपा सरकार द्वारा सीएनटी-एसपीटी कानून एवं भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 में हुए जन विरोधी संशोधनों का लगातार मुखरता से विरोध करते आये हैं.
कहा गया कि उन्होंने (स्टेन ने) सरकार द्वारा गांव की जमीन को लैंड बैंक में डालकर कॉर्पोरेट के हवाले करने की भी जमकर मुखालफत की है. वे लगातार संविधान की पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून के क्रियान्वयन के लिए भी अभियान करते आये हैं. 28 अगस्त को सुबह 6 बजे रांची के नामकुम स्थित बगईचा परिसर पर महाराष्ट्र एवं झारखंड पुलिस द्वारा छापा मारा गया. पुलिस ने स्टेन का मोबाईल, लैपटॉप, ऑडियो कैसेट, सीडी एवं पत्थलगड़ी आंदोलन पर डब्लूएसएस द्वारा एक हफ्ते पहले जारी की गयी प्रेस विज्ञप्ति को भी जप्त कर लिया. स्टेन को उन पर लगाये गये आरोपों का ब्यौरा भी नहीं दिया गया. पुलिस द्वारा सारी प्रक्रिया की वीडियों रिकॉर्डिंग की गयी.
कहा गया कि कुछ दिनों पहले स्टेन एवं झारखंड के अन्य 19 व्यक्तियों जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार एवं बुद्धिजीवी शामिल हैं, पर देशद्रोह का भी आरोप लगाया गया था. खूंटी में चल रहे पत्थलगड़ी आंदोलन पर उनके द्वारा किये गये फेसबुक पोस्ट को आरोप का आधार बनाया गया था. उनपर आईटी एक्ट की धारा 66A भी लगायी गयी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ही निरस्त कर दिया था.
विरोध में एकजुट हुए लोगों ने कहा कि हम मांग करते हैं कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया हैं उन्हें तुरंत रिहा किया जाए एवं सभी झूठे एवं मनगढ़ंत आरोपों को वापस लिया जाए. प्रतिवाद मार्च में मुख्य रूप से सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज, यूनाइटेड मिल्ली फोरम के अफजल अनीस, राइट टू फूड कंपेन के आकाश रंजन, अशर्फी नंद प्रसाद, रिसर्च स्कॉलर अंकिता अग्रवाल, झारखंड लोकतांत्रिक मंच के अशोक वर्मा, ऑल इंडिया पीपल साइंस नेटवर्क असीम सरकार, समाजवादी जन परिषद के बीबी चौधरी, अभय खाखा, बसंत हेतमसरिया, पत्रकार फैसल अनुराग, हसन रजा (यूएमएफ), डॉक्यूमेंटरी फिल्म मेकर मेघनाथ, झारखंड नागरिक प्रयास प्रेम वर्ता, सिराज दत्ता (राइट टू फूड कंपेन), वास्वी किड़ो, विनोद सिंह (पूर्व विधायक, माले), रामदेव विश्वबंधु, कुमार संजय, सीबी चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता बलराम, दयामनी बारला, सहित कई लोग उपस्थित थे.