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रांची : टाटा रोड का शेष 50% काम पूरा करने के ठोस उपाय बतायें : झारखंड हाइकोर्ट
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में गुरुवार को रांची-जमशेदपुर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-33) के फोर लेनिंग कार्य पूरा करने काे लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस अनिल कुमार चाैधरी की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि रांची-जमशेदपुर एनएच-33 का फोर लेनिंग कार्य शीघ्र पूरा […]
रांची : झारखंड हाइकोर्ट में गुरुवार को रांची-जमशेदपुर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-33) के फोर लेनिंग कार्य पूरा करने काे लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस अनिल कुमार चाैधरी की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि रांची-जमशेदपुर एनएच-33 का फोर लेनिंग कार्य शीघ्र पूरा करने के प्रति हाइकोर्ट गंभीर है. फोर लेनिंग का 50.44 प्रतिशत ही कार्य पूरा हुआ है.
शेष बचा कार्य जल्दी कैसे पूरा किया जा सकता है, इस पर सभी प्रतिवादी ठोस रास्ता निकालें. रांची-जमशेदपुर मार्ग की फोरलेनिंग मामले में जजों की खंडपीठ ने सभी प्रतिवादियों से सुझाव देने को कहा है. खंडपीठ ने प्रतिवादियों से कहा कि अगली सुनवाई के पूर्व वे कोर्ट के समक्ष ऐसे सुझाव प्रस्तुत करें, जिससे फोर लेनिंग का कार्य समय पर पूरा हो जाये. खंडपीठ ने माैखिक रूप से कहा कि एनएच-33 लाइफलाइन है. इसका निर्माण कार्य शीघ्र पूरा होना जनहित में जरूरी है. इसकी अनदेखी या आैर अधिक विलंब नहीं होना चाहिए. सड़क निर्माण का कार्य किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहिए.
ऐसी व्यवस्था पर विचार किया जाये, जिसमें संवेदक कंपनी, बैंक व नेशनल हाइवे अॉथोरिटी अॉफ इंडिया (एनएचएआइ) के बीच आपसी सहमति से शेष बचे हुए कार्य जारी रहें. एग्रीमेंट के प्रावधानों के तहत प्रतिवादियों के बीच आपसी दावा व प्रतिदावा का आदान-प्रदान का काम भी चलता रहे. एनएचएआइ द्वारा संवेदक कंपनी के साथ किये गये एग्रीमेंट रद्द करने के बाद मुकदमों के चक्कर में एनएच-33 का निर्माण का काम बाधित नहीं होना चाहिए. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 29 अगस्त की तिथि निर्धारित की.
संवेदक कंपनी के साथ वन टाइम सेटलमेंट का निर्णय : इससे पूर्व एनएचएआइ के मेंबर (प्रोजेक्ट) एके सिंह ने खंडपीठ को बताया कि 16 अगस्त को बोर्ड की बैठक हुई थी. बैठक में निर्णय लिया गया कि संवेदक कंपनी रांची एक्सप्रेस-वे (मधुकॉन) के साथ वन टाइम सेटलमेंट किया जाये. संवेदक कंपनी द्वारा कराये गये कार्य का निरीक्षण स्वतंत्र अभियंता से कराने के बाद उसके पैसे का भुगतान कर दिया जाये तथा सड़क का शेष 50 प्रतिशत काम एनएचएआइ स्वयं करे. यदि संवेदक कंपनी के साथ वन टाइम सेटलमेंट नहीं हो पाता है, तो एग्रीमेंट रद्द करने के अलावा आैर कोई रास्ता नहीं बचता है.
एनएचआइ के प्रस्ताव से सहमत नहीं संवेदक : वहीं संवेदक कंपनी की अोर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने खंडपीठ को बताया कि वह एनएचआइ के वन टाइम सेटेलमेंट के प्रस्ताव से सहमत नहीं है. फोर लेनिंग कार्य में विलंब के लिए संवेदक कंपनी जिम्मेदार नहीं है. सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण में देरी के कारण प्रोजेक्ट पूरा होने में दो वर्ष का विलंब हुआ. इससे बैंक का ब्याज व प्रोजेक्ट का कॉस्ट भी बढ़ गया.
बैंक भी नहीं चाहता वन टाइम सेटलमेंट
केनरा बैंक की ओर से वरीय अधिवक्ता जय प्रकाश ने खंडपीठ को बताया कि वह वन टाइम सेटेलमेंट के पक्ष में नहीं है. संवेदक कंपनी का एग्रीमेंट रद्द करने से बैंक द्वारा दी गयी राशि की रिकवरी नहीं हो सकेगी. राज्य सरकार की अोर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने खंडपीठ से कहा कि एनएचएआइ को दिये गये रांची रिंग रोड के फेज-वन व फेज-टू का कार्य शीघ्र पूरा कराये जाने की जरूरत है.
चार जून 2015 तक पूरा होना था एनएच-33 का फोर लेनिंग कार्य
रांची-जमशेदपुर की फोर लेनिंग के लिए एनएचएआइ ने संवेदक कंपनी रांची एक्सप्रेस-वे के साथ 20 अप्रैल 2011 एग्रीमेंट किया था. यह काम चार जून 2015 तक पूरा कर लेना था. चार दिसंबर 2012 से सड़क का निर्माण का कार्य शुरू. बाद में संवेदक की ओर से कहा गया कि दिसंबर 2017 में यह काम पूरा कर लिया जायेगा. फिर कहा गया कि मई 2018 तक पूरा हो जायेगा, लेकिन अब तक 50.44 प्रतिशत ही कार्य हो पाया है.
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