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काश! मेरा एक आशियाना रांची में भी होता
नसीर अफसर आह! गोपाल दास नीरज जी आप तो साहित्य जगत के दरख्शां सितारा थे. फिर क्यों फलक के सितारों से जा मिले. अब आप जैसा मुन्फरीद कवि और गीतकार हम कहां से लायेंगे. अब जो आप इस संसार से कूच कर गये, तो न जाने आप की याद बड़ी शिद्दत से क्यों आ रही […]
नसीर अफसर आह!
गोपाल दास नीरज जी
आप तो साहित्य जगत के दरख्शां सितारा थे. फिर क्यों फलक के सितारों से जा मिले. अब आप जैसा मुन्फरीद कवि और गीतकार हम कहां से लायेंगे. अब जो आप इस संसार से कूच कर गये, तो न जाने आप की याद बड़ी शिद्दत से क्यों आ रही है. शायद आप अपने मित्र कृष्ण बिहारी नूर की बातों से सहमत हैं जिनका यह कहना है कि नूर अपनी रचनाओं में जिंदा है,वह तो संसार से गया ही नहीं.
आज मुझे 80 के दशक की वह शाम याद रही है. जब आप मुंबई से रांची हमारे कार्यालय मेकॉन/सेल कल्याण समिति द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व मुशायरे में तशरीफ लाये थे. एक बड़ा नाम इस आयोजन में पद्मश्री बेकल उत्साही का भी याद है.
अचानक कार्यक्रम से पहले खांसी आप को बेहद सताने लगी थी और आपने मुझ से किसी अच्छे होम्योपैथी डॉक्टर के बारे में पूछा, तो मैं आपको डॉ रौशन लाल के आवास सह क्लिनिक में लेकर गया था. उनकी दवा से आप को काफी राहत मिली, तो आप ने जम कर गीत और गजलें सुनायी थीं.
श्रोतागण काव्य वर्षा में सराबोर होकर अपने अपने घर लौटे थे. यह कार्यक्रम मेकॉन हॉल के सामने लॉन पर नीली छतरी के नीचे आयोजित गर्मी के मौसम का ख्याल कर किया गया था.
आप ने रांची के मौसम के बारे श्रोताओं के समक्ष जम कर तारीफ की थी और यहां तक कह डाला था कि काश! एक आशियाना मेरा रांची में भी होता. समय तेजी से गुजर जाता है, मगर साथ बीते हुए लम्हात जहन में महफूज रह जाते हैं. आप का लोकप्रिय गीत, आप की रचना : कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे, आपको बेशक हमेशा जिंदा रखेगा. आप तो जब जमीं पर थे तो सितारा थे, फलक पे भी आप झिलमिलाते रहेंगे.
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