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सूखे का संकट : रोपा तो तब होगा, जब खेतों में रहेगा पानी

रांची में अब तक रोपा शुरू नहीं 171 हजार हेक्ट. में लगना है धान राज्य में खरीफ के मौसम में सबसे अधिक धान की खेती होती है. करीब 90 फीसदी खेत में धान लगाये जाते हैं. जून और जुलाई माह की पहली बारिश में किसान बिचड़ा लगाते हैं. बिचड़ा 21 दिन के बाद खेतों में […]

रांची में अब तक रोपा शुरू नहीं 171 हजार हेक्ट. में लगना है धान
राज्य में खरीफ के मौसम में सबसे अधिक धान की खेती होती है. करीब 90 फीसदी खेत में धान लगाये जाते हैं. जून और जुलाई माह की पहली बारिश में किसान बिचड़ा लगाते हैं. बिचड़ा 21 दिन के बाद खेतों में लगाया जाता है.
जैसे-जैसे खेतों में बिचड़ा लगाने की अवधि बढ़ती जाती है, उत्पादन पर इसका असर पड़ने लगता है. राजधानी में इस वर्ष रोपा का काम शुरू नहीं हुआ है. यहां 171 हजार हेक्टेयर में धान बुआई का लक्ष्य है. वैसे रोपा का काम 31 जुलाई तक करना उचित माना जाता है, लेकिन बारिश नहीं होने की वजह से बुआई संभव नहीं हो पायी है.
इस बार मॉनसून देर से आया है. सामान्य से करीब 10 दिन देर (25 जून के आसपास) आया. इस कारण प्री मॉनसून बारिश में किसान खेतों की तैयारी नहीं कर पाये. मॉनसून आया भी, लेकिन बहुत मजबूत नहीं रहा.
इस कारण जुलाई माह की 15 तारीख तक सामान्य से करीब 41 फीसदी कम बारिश हुई. मौसम विभाग भी इतनी बारिश को चिंतनीय बताता है. मॉनसून देर से आने के कारण बिचड़ा लगाने में देर हुई. बिचड़ा लगाने के बाद बारिश रुक-रुक कर गायब हो जा रही है. इससे बिचड़ा पीला पड़ने लगा है. कई जिलों में बिचड़े के खेतों में दरार पड़ने लगा है. किसान इस स्थिति से परेशान हैं.
विभाग के अधिकारी आंकड़ों के आधार पर कहते हैं कि स्थिति पिछले बार के जैसी ही है. पिछली बार भी जुलाई माह की 15 तारीख तक करीब 15 फीसदी रोपा हुआ था. इस बार भी 12 फीसदी से अधिक है. लेकिन, किसान कहते हैं कि पिछली बार लगातार बारिश हो रही थी, इससे बिचड़े को नुकसान नहीं हो रहा था. अभी तो बिचड़ा बचाने की चिंता है. रोपा की बात तो एक सप्ताह बाद होगी.
स्थिति खराब बारिश का इंतजार
सिमडेगा : पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बारिश अब तक कम हुई है. बारिश नहीं होने के कारण पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष रोपनी का कार्य भी 50 प्रतिशत ही हुआ है. पिछले वर्ष 15 जुलाई तक 184.2 मिलीमीटर बारिश हुई थी. जबकि इस वर्ष 15 जुलाई तक सिर्फ 148.4 मिमी ही बारिश हुई है.
पिछले वर्ष इस समय तक 19 हजार हेक्टेयर में धान की रोपनी हो चुकी थी, किंतु इस वर्ष अब तक सिर्फ 9 हजार 900 हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हो सकी है. खेतों में बिचड़ा पानी के अभाव में पीला हो रहा है. कोलेबिरा प्रखंड अंतर्गत जामटोली के किसान तेतरू सिंह ने बताया कि मैं चार एकड़ में खेती करता हूं. इसके लिये नौ पैकेट हाइब्रिड धान की बीज का बिचड़ा लगाया है. किंतु पानी के अभाव में बिछड़ा सूख रहा है.
क्या कहते हैं मौसम विशेषज्ञ
अच्छी बारिश का अनुमान नहीं
दिल्ली स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के वरीय वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार बाखला बताते हैं कि अभी एक साइक्लोनिक सरकुलेशन उत्तरी उड़ीसा के तटवर्टी व प बंगाल के लगे क्षेत्र में बना हुआ है. इसके अगले 24 घंटे में पश्चिम दिशा में मध्य भारत (मध्य प्रदेश) की ओर बढ़ने के संकेत हैं.
इसके प्रभाव से झारखंड के दक्षिणी भाग में वर्षा हो सकती है. 19-20 को उत्तरी बंगाल की खाड़ी में साइक्लोनिक सर्कुलेशन बनने की संभावना है. इसके प्रभाव से 23-24 जुलाई को पूरे झारखंड में वर्षा की संभावना है. यह फिर धीरे-धीरे उत्तर की ओर चला जायेगा. वैसे अगले एक सप्ताह तक झारखंड में बहुत विशेष बारिश का अनुमान नहीं है.
फसल को हो सकता है नुकसान
बीएयू के कृषि मौसम सेवा के नोडल अधिकारी डॉ ए बदूद बताते हैं कि जितना रोपा होना चाहिए था, उतना नहीं हो पाया है. अभी तक मुश्किल से दो से सवा दो लाख हेक्टयर ही रोपा हो पाया है. मॉनसून देर से आयी है. पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. बिचड़ा रोपा के लायक हो चुका है.
अभी भी बारिश अगर ठीक-ठाक हो गयी, तो रोपा हो जायेगा. परिस्थिति बन रही है, लेकिन बारिश नहीं हो रही है. किसान मिट्टी की नमी का उपयोग कर ऊपरी जमीन में बुआई कर लें. धान लगाने के स्थान पर मक्का, मडुआ, अरहर लगा सकते हैं. राज्य में रोपा का असली समय 31 जुलाई तक माना जाता है. झारखंड के किसान बाद में रोपा करते रहे हैं. इससे फसल को नुकसान हो सकता है.
कृषि अधिकारियों को निर्देश
वैकल्पिक खेती की करें तैयारी
कृषि विभाग ने वर्तमान स्थिति को देखते हुए वैकल्पिक खेती की तैयारी करने का निर्देश जिला कृषि पदाधिकारियों को दिया है. कृषि निदेशक रमेश घोलप ने अधिकारियों से तीन दिनों के अंदर रिपोर्ट जमा कर देने को कहा है.
उनका तर्क है कि अगर 30 जुलाई तक बारिश की कमी हुई, तो वैकल्पिक खेती की तैयारी की जायेगी. इसके लिए अधिकारियों से जरूरत समझने को कहा गया है. अभी स्थिति बहुत खराब नहीं है. सभी जिलों के अधिकारियों ने कहा है कि अभी इंतजार करने का समय है. बीज किसानों को मिल गयी है. रोपा का काम शुरू होने लगा है.
सूखने लगे हैं बिचड़े, पंप से पानी निकाल जिंदा रखने की कोशिश
गुमला : फटने लगे हैं खेत
गुमला में जुलाई माह में 200 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती है. लेकिन अभी तक 125 मिलीमीटर ही बारिश हुई है. बारिश नहीं होने से गुमला जिले में सुखाड़ की काली छाया मंडराने लगी है. गुमला के पूर्वी क्षेत्रों में किसानों ने बिचड़ा लगाया है. लेकिन जहां बिचड़ा लगा है, उन खेतों को पानी नहीं मिलने के कारण वह सूख कर फटने लगे हैं.
बिचड़ा भी मर गया है. कृषि पदाधिकारी डॉ रमेश चंद्र सिन्हा के अनुसार अगर अगले 15 दिन के अंदर बारिश नहीं हुई, तो स्थिति भयावह होगी. वैसे जिले में करीब 40218 हेक्टेयर में धान लगाया गया है.
रामगढ़ : जुलाई माह में निर्धारित मानक की जगह केवल 10 प्रतिशत बारिश हुई है. बारिश की कमी के कारण धान के बिचड़े सूखने लगे हैं. जिले के लोलो ग्राम के जतरू महतो ने कहा कि इस वर्ष वर्षा की स्थिति अच्छी नहीं है.
दो-तीन दिनों के अंदर हालत नहीं सुधरी, तो किसानों को भारी नुकसान होगा. 10 दिन यही स्थिति रही, तो धान की फसल नहीं लग पायेगी. रामगढ़ के सहायक जिला सांख्यिकी पदाधिकारी संजय कुमार के अनुसार इसे सूखा कहा जा सकता है. किसानों द्वारा लगाये गये धान के लगभग सारे बिचड़े जल कर पीले पड़ चुके हैं. हालात यह है कि केवल पांच प्रतिशत किसानों ने अपने पंप आदि के बल पर धान के बिचड़ों को जिंदा रखा है.
खूंटी : सिर्फ दो प्रतिशत भूमि पर हुई बुआई
जिले में एक लाख चार हजार हेक्टयर भूमि में खरीफ फसल की खेती होती है. जिसमें धान की खेती किसान कुल 76 हजार हेक्टयर भूमि में करते हैं.
वर्षा की कमी के कारण अब तक दो प्रतिशत भूमि पर भी धान की बोआई नहीं हुई है. किसान बिचड़ा भी तैयार नहीं कर पा रहे हैं. इस वर्ष इस माह में 54 मिमी वर्षा हुई है. जबकि धान की खेती के लिए सामान्य वर्षा पूरे माह में 334 मिमी होना जरूरी है. जिला कृषि विभाग के आत्मा के उपनिदेशक अमरेश कुमार ने बताया कि वर्षा की कमी को देखते हुए इस बार किसानों को दलहनी फसल लगाने को प्रेरित किया जा रहा है.
अतिरिक्त वैकल्पिक फसल के लिए किसानों के बीच धान, मूंगफली के अलावा कुल्थी, तोरी, सोयाबीन आदि बीज का वितरण किया जा रहा है. मारंहादा के किसान सोमरा मुंडा जिसके पास एक नंबर का दोन है, उसने जून माह की वर्षा को देखकर धान का बिचड़ा लगा दिया है. लेकिन बारिश नहीं होने के कारण बिचड़ा अब नष्ट होने की कगार पर है.
लोहरदगा : सूख रहे हैं बिचड़े, पांच फीसदी ही हुई रोपनी
जिले में अब तक पांच फीसदी ही धान की रोपनी हो पायी है. धान का बिचड़ा रोपा के पूर्व ही खेतों में सूखने लगा है. लोहरदगा जिला में 15 जुलाई तक लगभग पांच प्रतिशत रोपनी हुई है. पिछले वर्ष 15 जुलाई तक 80 प्रतिशत रोपनी हो चुकी थी.
इस वर्ष जिले में बारिश 91.9 मिलीमीटर हुई है. 2017 में 15 जुलाई तक 173.9 मिलीमीटर बारिश हुई थी. किसानों द्वारा लगाये गये बिचड़ा खेत में ही सूख रहे हैं. कुडू प्रखंड के सलगी निवासी किसान राजकेश्वर प्रजापति का कहना है कि बड़ी उम्मीद थी कि इस वर्ष बेहतर पैदावार होगी. धान की खेती की पूरी तैयारी हो चुकी है.
बीज भी खरीद कर खेत में बीड़ा के लिए लगा दिया. बारिश का इंतजार था, लेकिन बरसात नहीं हुई. कृषि वैज्ञानिक डा. शंकर सिंह का कहना है कि 10 अगस्त तक रोपनी होता है. 20 दिनों से पहले किया गया बिचड़ा लगाने से अच्छी फसल नहीं होगी. किसान सीधी बुआई भी कर सकते हैं.
कोडरमा : स्थिति हुई खराब, बिचड़ा अब हरा से हो रहे हैं काले
अप्रैल से जुलाई तक 109.6 एमएम ही बारिश
जिले में इस बार अच्छी बारिश नहीं होने के कारण सुखाड़ की स्थिति है. 15 जुलाई के बाद भी धान की रोपनी शुरू नहीं हो सकी है. धान के बिचड़े तक तैयार नहीं हो सके हैं.
जिन खेतों में बिचड़े लगे हुए हैं, वहां भीषण गर्मी व धूप के कारण बिचड़े अब हरा से काला होने लगे हैं. पिछले वर्ष जुलाई माह तक लगभग 45 प्रतिशत धान की रोपनी हो चुकी थी, मगर इस वर्ष अभी तक कहीं रोपा नहीं हुआ है. अप्रैल से जुलाई तक सामान्य वर्षा 521.1 एमएम होना चाहिए था, जबकि अभी तक 109.6 एमएम ही बारिश दर्ज की गयी है.
जुलाई में सामान्य बारिश 323.7 एमएम की जगह अब तक 34.8 एमएम ही हुई है. जयनगर प्रखंड के कंद्रपडीह के किसान तिलक यादव ने बताया कि धान की खेती करने से एक वर्ष के लिए पर्याप्त रूप से चावल उपलब्ध हो जाता था.
मगर इस बार बारिश ने धोखा दिया और अकाल का आना तय है. उन्होंने कहा कि पहले लोग नदी ताल-तलैया से पंप लगाकर खेतों तक पानी पहुंचाते थे. मगर इस बार नदी व ताल-तलैया में भी पानी नहीं है.
गढ़वा : बिचड़े हो रहे हैं नष्ट, अब तक कहीं नहीं हुआ रोपा
15 जुलाई तक कहीं नहीं हुआ है धान का रोपा
गढ़वा जिले में मानसून की बारिश नहीं होने के कारण किसानों द्वारा डाले गये धान के बिचड़े नष्ट हो रहे हैं. 15 जुलाई तक गढ़वा जिले में धान का कहीं भी रोपा नहीं हुआ है. पिछले साल अब तक 60 प्रतिशत रोपा हो चुका था़
बारिश नहीं होने के कारण किसानों के माथे पर चिंता की लकीर बढ़ती जा रही है़ जून माह में सामान्य वर्षपात 138.8 मिलीमीटर के विरुद्ध मात्र 96.4 मिलीमीटर बारिश हुई है़ जुलाई में अब तक 363 मिलीमीटर के विरुद्ध महज 20 मिमी बारिश हुई है. जिले में धान के रोपा के लिए 54 हजार हेक्टयर में रोपा के विरुद्ध अभी तक कहीं रोपा नहीं हुआ है.
चतरा : बारिश नहीं होने से सुखाड़ के बन रहे हालात
मात्र 58.2 मिमी बारिश हुई है अब तक जिले में
जुलाई माह में 308.2 मिमी वर्षा की जगह मात्र 58.2 मिमी बारिश हुई. इस कारण जिले में रोपा कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है. किसान दूर-दूर से पानी लाकर खेतों में बिचड़ा बचाने की कोशिश कर रहे हैं. बारिश के अभाव में बिचड़ा पीला पड़ रहा है. खेतों में दरारें दिखने लगी है. इस वर्ष के जून माह में 167.1 मिमी बारिश के जगह 99.9 मिमी वर्षा हुई. चतरा एक कृषि जिला है.
बारिश के अभाव में खेतों में धूल उड़ रहा है. तालाब, पोखर, नदी व नाला सब सूखा पड़ा है. किसान हर रोज आसमान की ओर टकटकी लगाये हुए हैं. सिमरिया, टंडवा, पत्थलगड्डा, गिद्धौर, इटखोरी, मयूरहंड, हंटरगंज, कुंदा, प्रतापपुर, लावालौंग, कान्हाचट्टी में कई किसानों ने बिचड़ा तैयार कर लिया है, लेकिन बारिश के अभाव में पूरी फसल पीली पड़ गयी है. जिले में अब तक 30 प्रतिशत किसानों ने ही बिचड़ा लगाया है. इस बार 36 हजार हेक्टेयर में धान फसल लगाने का लक्ष्य कृषि विभाग द्वारा निर्धारित किया गया है. लेकिन बारिश के अभाव में बिचड़ा तैयार नहीं हो पाया है.
पलामू : सिर्फ पांच प्रतिशत ही हुई धान की रोपनी
4700 हेक्टेयर की जगह 3354 हेक्टेयर में ही बिचड़ा लगाया गया
पलामू को सुखाड़ और अकाल का घर माना जाता है. इस साल भी जो हालात बन रहे हैं, वह सुखाड़ के संकेत दे रहे हैं. आंकड़ों पर गौर करें, तो 14 जुलाई तक पलामू में लक्ष्य के विरुद्ध मात्र पांच प्रतिशत धान की रोपनी हुई है.
आंकड़ों के मुताबिक पलामू में 47 हजार हेक्टेयर में धानरोपनी का लक्ष्य रखा गया है. धान का बिचड़ा 4700 हेक्टेयर में किया जाना था. लेकिन, पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण 3354 हेक्टेयर में ही धान का बिचड़ा लगाया गया है. पलामू के पड़वा प्रखंड के किसान श्रीकांत मिश्रा निराश हैं. उन्होंने शुरुआती दौर में ही हाइब्रिड धान का बीज-250 और 280 रुपये प्रतिकिलो की दर से खरीदा था और उसका बिचड़ा लगाया था. वह सूख रहा है.
लातेहार : खेतों में दरार, सूखे जैसे हालात
विगत तीन सप्ताह से लातेहार एवं आसपास के क्षेत्रों में बारिश का नामोनिशान नहीं है. किसानों के चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती है. मई के पहले सप्ताह में यहां लगातार कई दिनों तक बारिश हुई थी. निचली जमीन पर किसानों ने धान का बिचड़ा लगाया था. इसमें दरारें पड़ने लगी है.
किसान उमेश प्रसाद गुप्ता ने बताया कि अगर अगले दो- तीन दिनों में बारिश नहीं हुई, तो सूखे जैसे आसार होंगे. बहरहाल किसान टैंकर से पानी पटा रहे हैं. जिला कृषि पदाधिकारी मार्शल खलखो ने बताया कि जिले में पिछले चार दिनों में 11 से 15 मिलीमीटर बारिश रिकाॅर्ड की गयी है. पिछले वर्ष जुलाई माह में 268 मिलीमीटर बारिश हुई थी.
हजारीबाग : 77 प्रतिशत वर्षा कम, खेतों में हर तरफ सूखा ही सूखा
हजारीबाग जिले में जुलाई माह में 77 प्रतिशत कम वर्षा होने से बिचड़ा सूखने की स्थिति में है. जिले में एक जून से 30 जून 2018 तक 194 मिलीमीटर वर्षा की तुलना में 142 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड किया गया. यह सामान्य से 27 प्रतिशत कम है. एक जुलाई से 14 जुलाई 2018 तक 301 मिलीमीटर औसतन वर्षा का लक्ष्य था. लेकिन मात्र 66.7 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड हुआ है, जो 77 प्रतिशत कम आंका गया है. वर्षा कम होने से खरीफ, दलहन और मोटा अनाज की भी बोआई भी औसतन नहीं हो पा रही है.
जिले में 84 हजार हेक्टेयर भूमि में धान लगाने का लक्ष्य है. अभी तक धान की बुआई मात्र तीन प्रतिशत भी नहीं हुई है. जबकि 2017 में 80976 हेक्टेयर में रोपा हुआ था. जिला कृषि पदाधिकारी एके झा ने बताया कि बारिश कम होने के कारण रोपनी का काम शुरू नहीं हो पाया है. एक सप्ताह तक बिचड़ा को बचाने का प्रयास हो रहा है.
सदर प्रखंड डुमर के किसान बृजलाल राणा ने बताया कि अाद्रा नक्षत्र पड़ते ही बारिश अच्छी हुई. खेतों में बिचड़ा लगाया. लेकिन, बारिश नहीं होने से नुकसान हो रहा है. केरेडारी प्रखंड के किसान किशोर ने बताया कि धान के बिचड़े अंकुरित होकर तेज धूप से मर रहे हैं.

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