धनबाद में नाबालिग से छेड़खानी के आरोप में अधिवक्ता अश्विनी कुमार को भेजा गया था जेल
गढ़वा में अधिवक्ता आशीष दुबे की पुलिस द्वारा की गयी थी पिटाई
रांची : अधिवक्ताओं को पुलिस द्वारा प्रताड़ित किये जाने के मामले में गढ़वा और धनबाद पुलिस को एक तरह से क्लीन चिट दे दिया गया है. विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक दो सदस्यीय जांच टीम की रिपोर्ट में यह बात सामने आयी है कि धनबाद में अधिवक्ता को गिरफ्तार करने को लेकर पुलिस ने जो कार्रवाई की, वह कानूनी रूप से सही था. वहीं गढ़वा में अधिवक्ता आशीष दुबे पुलिस द्वारा किये जा रहे सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न कर रहे थे.
धनबाद में अधिवक्ता अश्विनी की गिरफ्तारी कानून के दायरे में हुई
जांच में यह बात सामने आयी है कि घटना के दिन मामले को लेकर सैकड़ों स्थानीय लोग अधिवक्ता अश्विनी कुमार के घर के पास जुट गये थे. वे लोग अधिवक्ता की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. इसी क्रम में रात 10 बजे के करीब पुलिस मौके पर पहुंची.
अधिवक्ता को घर से बाहर आने के लिए पुलिस ने कई बार अनुरोध किया. लेकिन रात एक बजे तक भी अधिवक्ता घर से बाहर नहीं आये. इसके बाद पुलिस द्वारा हथौड़ा से अधिवक्ता के घर का दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया गया. लेकिन इसमें पुलिस को सफलता हाथ नहीं लगी. इसके बाद पुलिस द्वारा गैस कटर मंगवाकर अधिवक्ता के घर का गेट काटा गया. इसके बाद उन्हें घर से निकालकर पुलिस अपने साथ ले गयी.
सुबह में 27 अप्रैल को कोर्ट में पेश करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. यह सब सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुआ. पुलिस द्वारा उन्हें किसी तरह से शारीरिक तौर पर प्रताड़ित नहीं किया गया. ऐसा किया गया होता, तो पेशी के दौरान अधिवक्ता कोर्ट को जरूर बताते. इस मामले में अधिवक्ता का आरोप था कि नाबालिग से छेड़छाड़ के आरोप में पोक्सो एक्ट लगाकर पुलिस ने उन्हें बिना जांच किये जबरन जेल भेजा.
जबकि पुलिस को आरोपों की जांच के बाद कार्रवाई करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. गैस कटर से घर का दरवाजा काटकर पुलिस जबरन घर से गिरफ्तार कर उन्हें अपराधी और आतंकी की तरह घर से ले गयी. बता दें कि पुलिस ने नाबालिग का 164 के तहत कोर्ट में बयान भी दर्ज करा दिया है.
सरकारी काम में बाधा उत्पन्न कर रहे थे अधिवक्ता आशीष दुबे
जांच टीम ने पाया है कि हादसे के बाद पुलिस बल राहत कार्यमें लगी थी. लेकिन मौके पर पहुंच कर अधिवक्ता पुलिस के कार्य में बाधा पहुंचा रहे थे.बार-बार आग्रह करने और चेतावनी देने के बाद भी वे मान नहीं रहे थे. इसलिए पुलिस उन्हें हिरासत में लेकर गयी थी. हालांकि मारपीट किसने की, इसके बारे में सूत्र विशेष जानकारी नहीं दे पाये. इस मामले में पुलिस ने आरोपी पक्ष के अलावा कई गवाहों का बयान भी लिया था.
उधर, अधिवक्ता आशीष दुबे का जो बयान मीडिया में आया था, उसमें कहा गया था कि वे जाम में फंसे थे. वे खुद वहां की वीडियोग्राफी करने लगे. इसी क्रम में एसपी मो. अर्शी का काफिला वहां पहुंचा. एसपी के काफिले से सुरक्षा गार्ड ने उतरकर उनका मोबाइल छीन लिया.
इसके बाद उसके साथ सरेआम मारपीट की. फिर मौके से पकड़कर उन्हें थाना लाया गया. वहां भी बेरहमी से पुलिसवालों ने उनकी पिटाई की. रातभर हाजत में बंद रखा गया. घटना की सूचना मिलने पर दूसरे दिन मंगलवार को अधिवक्ता संघ के सदस्य सदर थाना पहुंचे. उन्होंने मारपीट की घटना का विरोध किया. भारी दबाव को देखते हुए पुलिस ने उन्हें बांड लिखवाकर छोड़ दिया.
पेश की गयी सीलबंद रिपोर्ट
रांची : हाइकोर्ट में मंगलवार को गढ़वा, बोकारो, धनबाद, गिरिडीह व रांची के अधिवक्ता की पुलिस पिटाई को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने प्रार्थी की दलील को देखते हुए सुनवाई स्थगित कर दी. विस्तृत सुनवाई के लिए नाै मई की तिथि निर्धारित की. खंडपीठ ने सरकार की अोर से प्रस्तुत सीलबंद रिपोर्ट को खोल कर देखा.
इसके बाद वापस कर दिया. इससे पूर्व सरकार की अोर से महाधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा कि रिपोर्ट की बातें मीडिया में नहीं आ पाये. प्रार्थी अधिवक्ता राजीव कुमार ने विरोध करते हुए कहा कि उन्होंने आइए दायर किया है. केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय व एनआइए को प्रतिवादी बनाया गया है. पूरक शपथ पत्र दायर कर छेड़खानी मामले में गढ़वा के निलंबित वरीय न्यायिक अधिकारी के मामले को लव जिहाद बताते हुए उक्त मामले की एनआइए से जांच कराने का आग्रह किया.
बताया कि जिस वकील की पिटाई की गयी, वह पीड़िता के वकील हैं. उल्लेखनीय है कि राजीव कुमार ने जनहित याचिका दायर की है. उन्होंने गढ़वा के वकील आशीष दुबे सहित विभिन्न जिलों के वकीलों की पिटाई का विरोध किया है.
