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प्रगतिवादी काव्य के प्रवर्तक हैं सुमित्रानंदन पंत : डॉ सिद्धेश्वर
रांची. हिंदी विभाग में मंगलवार को प्रगतिशील और हिंदी काव्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर बीएन मंडल विवि मधेपुरा के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ सिद्धेश्वर कश्यप मौजूद थे. उन्होंने कहा कि वर्ष 1935 में मुल्क राज आनंद व सज्जाद जहीर के प्रयत्न से लखनऊ में प्रगतिशील […]
रांची. हिंदी विभाग में मंगलवार को प्रगतिशील और हिंदी काव्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर बीएन मंडल विवि मधेपुरा के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ सिद्धेश्वर कश्यप मौजूद थे. उन्होंने कहा कि वर्ष 1935 में मुल्क राज आनंद व सज्जाद जहीर के प्रयत्न से लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई.
इसका पहला अधिवेशन 1936 में हुआ, जिसकी अध्यक्षता मुंशी प्रेमचंद ने की थी. वहीं, दूसरा अधिवेशन वर्ष 1938 में हुआ, जिसकी अध्यक्षता विश्व कवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने की. उन्होंने कहा कि प्रगतिवादी साहित्य वह है, जिसकी रचना मार्क्सवादी अथवा साम्यवादी विचारधारा को ध्यान में रख कर की गयी थी. उन्होंने सुमित्रानंदन पंत द्वारा कही गयी बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रगतिवाद, उपयोगितावाद का दूसरा नाम है.
उन्होंने कहा कि हिंदी में प्रगतिवादी काव्य के प्रवर्तन का श्रेय सुमित्रानंदन पंत को है. संगोष्ठी के दूसरे सत्र में कविता पाठ हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता डाॅ हरेराम त्रिपाठी ने की. कार्यक्रम में डॉ सिद्धेश्वर कश्यप की प्रकाशित पुस्तक अजनबी बन गयी जिंदगी का लोकार्पण भी हुआ. इस पर डॉ जेबी पांडेय ने गहनता से प्रकाश डाला. मौके पर काफी संख्या में विद्यार्थी मौजूद थे.
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