कार्तिक उरांव ने दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमैटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को दिया था, जो आज हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट के नाम से विद्यमान है. कार्तिक उरांव की उपलब्धियों के कारण ही उन्हें छोटानागपुर का काला हीरा व आदिवासियों के मसीहा की उपाधि दी गयी.
रांची : अशिक्षा, अंधविश्वास व पिछड़ेपन से जूझ रहे गुमला जिला के लिटा टोली गांव में 29 अक्तूबर 1924 को जन्मे कार्तिक उरांव ने 1959 में दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमैटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को दिया था, जो आज हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट के नाम से विद्यमान है. 1968 में जब भूदान आंदोलन तेज था, आदिवासियों की जमीन कौड़ी के भाव बिक रही थी.
स्व कार्तिक उरांव को दिया भगवान का दर्जा
ऐसे समय में उन्होंने इंदिरा गांधी से अपील की कि आदिवासियों की जमीन लूटने व भूमिहीन होने से बचायें. कार्तिक उरांव का प्रयास सफल रहा. इंदिरा गांधी ने भूमि वापसी अधिनियम बना कर आदिवासियों की खोयी जमीन वापस कराने की व्यवस्था की. रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना कार्तिक उरांव की देन है. ट्राइबल सब प्लान कार्तिक ने ही बनाया था.
इसी प्लान के आधार पर आज केंद्र व राज्य सरकार आदिवासियों के विकास के लिए विविध प्रकार की विकास योजनाएं चला रही है. ऐसे महान पुरुष आज हमारे बीच नहीं हैं. आठ दिसंबर 1981 को संसद भवन के गलियारे में फर्श पर गिर गये. बेहोशी की हालात में डॉ राममनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती किया गया. वहीं उनकी मृत्यु ह्रदय गति रूक जाने से हो गयी. कार्तिक उरांव जौरा उरांव व बिरसो उरांव की चौथी संतान थे. उनका जन्म कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन हुआ था, इसलिए उनका नाम कार्तिक रखा गया.
युवाओं के प्रेरणास्रोत थे कार्तिक बाबू :कार्तिक उरांव का जन्म ऐसे समय हुआ था, जब शिक्षा को लोग ज्यादा महत्व नहीं देते थे. बालपन से ही प्रतिभा के धनी व कुशाग्र बुद्धि के कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिक के क्षेत्र में महारत हासिल कर न इस देश का बल्कि जंगल, झाड़ व पहाड़ों के बीच स्थित गुमला जिले का नाम रोशन किया. कार्तिक उरांव ने छोटानागपुर व इस क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए जो सपना देखा था, आज भी गुमला जिले के जंगल व पहाड़ में बसे लोग इस सपने को संजोय हुए हैं. कार्तिक उरांव आज भी इस क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं.
एचइसी छोड़ राजनीति में कूदे : कार्तिक उरांव नौ वर्षों तक विदेश में रहे. विदेश प्रवास के बाद 1961 के मई माह में एक कुशल व दक्ष अभियंता के रूप में स्वदेश लौटे. भारत लौटने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कार्तिक उरांव की प्रतिभा को सराहा और एचइसी में सुपरिटेंडेंट कंस्ट्रक्शन डिजाइनर के पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की. बाद में उन्हें डिप्टी चीफ इंजीनियर डिजाइनर के पद पर प्रोन्नति मिली, परंतु उस समय छोटानागुपर के आदिवासियों की हालत को देख उन्होंने समाज के लिए काम करने का संकल्प लिया और 1962 में राजनीति में प्रवेश किया.
पहले हारे, दूसरी बार में जीते : जवाहर लाल नेहरू के मार्गदर्शन में कार्तिक उरांव ने 1962 में लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव में खड़े हुए. चुनाव हार गये, पर हिम्मत नहीं हारी. 1967 के चुनाव में पुन: वे लोस चुनाव में कूद पड़े और भारी मतों से विजयी हुए. इसी दौरान उन्होंने रांची में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की आधारशिला रखी.
शक्ति निकेतन विवि की स्थापना का सपना अधूरा : कार्तिक उरांव का सपना था कि छत्तीसगढ़ राज्य (उस वक्त मध्य प्रदेश) से सटे रायडीह प्रखंड के मांझाटोली के समीप एक शक्ति निकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना हो. यहां सभी विषयों की पढ़ाई हो, पर उनका सपना आज भी अधूरा है. हालांकि गुमला जिले के लोग अभी भी शक्ति निकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और हर वर्ष मांझाटोली में मांग को लेकर कार्यक्रम भी होता है.