!!संजय!!
रांची : झारखंड राज्य पोषण मिशन ने राज्य भर के अति कुपोषित बच्चों को चिह्नित किया था. बेसलाइन सर्वे के दौरान ऐसे चार लाख बच्चे चिह्नित किये गये थे, जिनकी जिंदगी को सर्वाधिक खतरा है. कुपोषण से मरने वाले भी यही बच्चे हैं. इन्हें बचाने के लिए पोषण मिशन की रणनीति आंगनबाड़ी केंद्रों को सुदृढ़ करने सहित कुपोषण उपचार केंद्रों (एमटीसी) के अधिकतम सदुपयोग की थी. पर इन दोनों मोर्चे पर गंभीरता नहीं दिख रही है. प्रभात खबर में 27 अगस्त को छपी आंगनबाड़ी केंद्रों के बंद रहने की खबर से पहले भी ऐसी शिकायत मुख्यमंत्री जनसंवाद केंद्र में की गयी थी.
दरअसल, तीन वर्ष पहले महालेखाकार की रिपोर्ट ने भी आंगनबाड़ी केंद्रों की बदहाल स्थिति स्पष्ट कर दी थी. फिर भी हालत नहीं सुधर रही है. उधर राज्य भर में बने कुल 87 एमटीसी का संचालन तो हो रहा है. पर इनकी संख्या अति कुपोषित बच्चों की बड़ी संख्या के लिहाज से अपर्याप्त है. जो हैं उनका भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता. धनरोपनी, धनकटनी व त्योहार के समय माताएं बच्चे के साथ केंद्र में अौसतन 15 दिन नहीं रहना चाहती. हालांकि, माताओं को केंद्र में रहने के दौरान खाने-पीने के अलावा रोजाना सौ रुपया मानदेय भी मिलता है. उधर एक से अधिक बच्चे वाली माताएं, जिनका एक बेटा सामान्य है, वह भी स्वस्थ बच्चे को छोड़ केंद्र में नहीं रहना चाहती. उधर मुखिया सहित पंचायती राज प्रतिनिधि भी इस गंभीर मुद्दे पर चिंतित नहीं दिखते. इन्हें आंगनबाड़ी केंद्रों के बेहतर संचालन से मतलब नहीं है.
प.सिंहभूम में 42 वर्षों से मिल रहा पोषाहार पर सबसे अधिक कुपोषण इसी जिले में : भारत सरकार ने करीब 42 वर्ष पहले समेकित बाल विकास परियोजना (अाइसीडीएस) की शुरुआत की थी. वर्ष 1975 में देश के जिन 33 प्रखंडों में यह योजना शुरू हुई थी, उनमें झारखंड (तत्कालीन बिहार) के पश्चिम सिंहभूम जिले का नोवामुंडी प्रखंड भी था. इसके बाद 1989 तक पूरे जिले में यह योजना शुरू हो चुकी थी. इधर, अधिकतम 42 व न्यूनतम 28 वर्षों बाद भी पश्चिम सिंहभूम जिले में बच्चों की हालत बदतर है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) की रिपोर्ट के मुताबिक उम्र के हिसाब से इस जिले में राज्य भर में सर्वाधिक नाटे (59.4 फीसदी) व कुपोषित (66.9 फीसदी) बच्चे हैं. जबकि झारखंड का यह अौसत क्रमश: 45.3 फीसदी तथा 47.8 फीसदी है. उधर, उम्र के हिसाब से नाटे व कमजोर बच्चों का राष्ट्रीय अौसत क्रमश: 35.4 फीसदी तथा 35.7 फीसदी है. यानी 42 वर्षों से पोषाहार देने के बावजूद प.सिंहभूम की स्थिति बाल स्वास्थ्य के मुद्दे पर शर्मनाक है. अति कुपोषित बच्चों के उपचार के लिए बने कुपोषण उपचार केंद्र में वित्तीय वर्ष 2015-16 के दौरान सबसे अधिक प.सिंहभूम के 603 बच्चे भरती कराये गये थे.