प्रकृति के साथ संतुलन ही भविष्य की असली कुंजी है : शुभांशी रजरप्पा. भारत के लिए गर्व का क्षण बना जब झारखंड की 18 वर्षीय लेखिका, फिल्मकार और पर्यावरण कार्यकर्ता शुभांशी चक्रवर्ती ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में आयोजित वन मिलियन फॉर वन बिलियन (वनएमवनबी ) एक्टिवेट इम्पैक्ट समिट के नौवें संस्करण में भारत का प्रतिनिधित्व किया. शुभांशी ने अपने प्रभावशाली भाषण से न केवल भारत का मान बढ़ाया, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर और आदिवासी समाज की समृद्ध परंपराओं को भी विश्व मंच पर गौरवान्वित किया. इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र जिनेवा की महानिदेशक तातियाना वालोवाया, गांबिया के राजदूत एवं संयुक्त राष्ट्र जिनेवा तथा विश्व व्यापार संगठन के स्थायी प्रतिनिधि मुहम्मदौ सहित कई राजनयिक, विद्वानों और अंतरराष्ट्रीय अधिकारी उपस्थित थे. शुभांशी ने कहा कि आधुनिक सतत विकास का समाधान हमारे आदिवासी समुदायों की परंपराओं और उनके प्रकृति-संगत जीवन दर्शन में छिपा है. उन्होंने झारखंड की हो जनजाति की लिपि वरंग क्षिति का उदाहरण देते हुए बताया कि प्रकृति के साथ संतुलन ही भविष्य की असली कुंजी है. शुभांशी ने अपनी पुस्तक पास्ट इज फॉरवर्ड : अ जर्नी बैक टू हील द फ्यूचर भी प्रस्तुत किया. इसमें परंपरा और आधुनिकता के सामंजस्य को दर्शाया गया है. शुभांशी फिल्मकार भी है. उनकी लघु फिल्म नाटक को अब तक 17 अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सराहना मिल चुकी है. शुभांशी ने कहा कि मैं मानती हूं कि असली प्रगति तब संभव है, जब हम अपनी जड़ों से जुड़ कर प्रकृति के साथ तालमेल बनाये.
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