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ड्राइजोन होते इलाके, निरंतर बढ़ रही है गर्मी, लोग हो रहे परेशान

मेदिनीनगर : पलामू में पानी की कमी हो रही है. इलाके ड्राइजोन हो रहे हैं और निरंतर गर्मी का बढ़ रही है. ऐसा इसलिए कि वन कट रहे हैं. औसत वर्षापात से कम बारिश हो रही है. बारिश हो भी रही है, तो असामान्य. जानकार बता रहे हैं कि न्यूनतम तापमान घट रहा है और […]

मेदिनीनगर : पलामू में पानी की कमी हो रही है. इलाके ड्राइजोन हो रहे हैं और निरंतर गर्मी का बढ़ रही है. ऐसा इसलिए कि वन कट रहे हैं. औसत वर्षापात से कम बारिश हो रही है. बारिश हो भी रही है, तो असामान्य. जानकार बता रहे हैं कि न्यूनतम तापमान घट रहा है और अधिकतम तापमान बढ़ रहा है. अगर यही स्थिति रही तो आने वाला कल काफी संकट से भरा होगा.

कृषि वैज्ञानिक डॉ डीएन सिंह बताते है कि बरसात के मौसम में भी पलामू में नियमित बारिश नहीं होती. कभी – कभी एक दिन में 200 मिलीमीटर बारिश हो जाती है, तो कभी 20 दिन तक पानी का एक बूंद भी नहीं बरसता, ऐसी स्थिति में जुलाई व अगस्त में देखने को मिलती है, जो मौसम के दृष्टिकोण से बरसात के लिए सबसे उपयुक्त महीना होता है.
वैसे पलामू को सुखाड़ व अकाल का स्थायी घर माना जाता है. इससे लोगों को निजात मिले, इसके लिए अपेक्षित पहल नहीं हो पा रही है. पहले पानी की कमी के कारण खेती का संकट शुरू हुआ. अब पीने के पानी पर भी संकट उत्पन्न हो गया है. बात जिला मुख्यालय मेदिनीनगर की ही हो तो निमियां, आबादगंज, हमीदगंज, सुदना पश्चिमी, बैंक कॉलोनी इलाके ड्राइजोन हो चुके हैं. तेजी से कई इलाकों में जल स्तर नीचे जा रहा है.
पलामू की लाइफ लाइन कोयल नदी भी पूरी तरह से सूख चुकी है. इस साल 2019 में पलामू के पारा 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है. तमाम प्रयास के बाद भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता का अभाव दिखता है. अभी हाल के ही 20 मई की बात है. जब सुदना इलाके में पीपल का एक हरा वृक्ष काट लिया जाता है और कही कोई विरोध नहीं होता. कुछ लोग गोलबंद होते हैं लेकिन अभी तक यह शिनाख्त नहीं हो पायी.
आखिर पेड़ किसके इशारे पर कटा, पर्यावरण के प्रति समाज की यह चुप्पी भी खतरनाक है. सवाल एक पेड़ का नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति लोगों के सोच को भी दर्शाता है. ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्थिति ऐसी रही तो आखिर कैसे बदलेंगे हालात. आज स्थिति यह है कि मेदिनीनगर शहर में मास्क लगाकर चलने वालों की संख्या बढ़ रही है. हालात ऐसे रहे तो आनेवाले दिनों में अॉक्सीजन लेकर चलना पड़ सकता है. इसलिए पर्यावरण के क्षेत्र में लगे डॉ कौशिक मल्लिक कहते है कि सोचने नहीं अब करने का वक्त है.

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