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मेदिनीनगर : लोकसभा के चुनावी परिदृश्य से गायब है कुंदरी लाह बगान
अविनाश मुद्दा बरकरार है . गुम हो रहा है पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ रोजगार सृजन का संदेश मेदिनीनगर : चुनाव के मुद्दे क्या हो, यह एक बड़ा सवाल है. जिसे मुद्दा बनना चाहिए वह मुद्दा बन नहीं पाता. जिससे समाज संवर सकता है, इलाके की तस्वीर बदल सकती है. वैसे मामले न तो चुनावी […]
अविनाश
मुद्दा बरकरार है . गुम हो रहा है पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ रोजगार सृजन का संदेश
मेदिनीनगर : चुनाव के मुद्दे क्या हो, यह एक बड़ा सवाल है. जिसे मुद्दा बनना चाहिए वह मुद्दा बन नहीं पाता. जिससे समाज संवर सकता है, इलाके की तस्वीर बदल सकती है.
वैसे मामले न तो चुनावी चर्चा में शामिल होते हैं और ना ही कोई राजनीतिक दल इसे मुद्दा बनाता है. बात अगर एशिया फेम कुंदरी लाह बगान की करें, तो कुछ ऐसी ही स्थिति है. संभावनाओं से भरा लाह बगान जो कभी पलामू की पहचान थी. लोकसभा के दृष्टिकोण से देखे तो कुंदरी लाह बगान चतरा संसदीय क्षेत्र की परिधि में आता है.
2017-18 में देश भर के चुनींदे इनोवेटिव आइडिया में कुंदरी का लाह बगान शामिल हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी पार्थवे नामक पुस्तिका का विमोचन किया था, जिसमें देश भर में किये जा रहे इनोवेटिव आइडिया में पलामू के कुंदरी लाह बगान ने भी जगह पायी थी. क्योंकि यहां पर जो प्रयोग शुरू किया गया था. वह पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ रोजगार सृजन का संदेश दे रहा था.
आज वैसे दौर में जब रोजगार एक बड़ा मुद्दा हो खास कर पलामू-चतरा जैसे इलाके के लिए जहां पानी, पलायन व सूखा चुनाव का बड़ा मुद्दा बनता है वैसे दौर में पर्यावरण की रक्षा करते हुए रोजगार सृजन करने का जो प्रयास शुरू किया गया था, उसे गति नहीं मिल सकी. लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है. लेकिन चुनाव प्रचार में न तो कुंदरी लाह बगान का जिक्र हो रहा है और ना ही किसी नेता को भी याद है कि कुंदरी लाह बगान को पुनर्जीवित करना है. भले ही दूर बैठे लोगों को यह इनोवेटिव आइडिया है.
पलामू की पहचान पलाश : पलामू की पहचान पलाश की खूबसूरती है. पलाश की खूबसूरती से रोजगार के अवसर पैदा हो. इसके लिए पलाश के फूलों से हर्बल गुलाल बनाने का काम भी शुरू हुआ. तय किया गया था कि रोजगार सृजन होंगे, जो संभावना है उसमें लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है.
क्योंकि कुंदरी लाह बगान एशिया का सबसे बड़ा बगान माना जाता है. इसकी परिधि लगभग 421 एकड़ में है. तय था कि यहा इको फ्रेडली पार्क बनेगा. लाह उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा. जिस तरह आज बीड़ी पत्ता को लोग रोजगार का साधन बना कर बेहतर आय कर रहे हैं. उसी तरह पलाश के फूलों का दर निर्धारित किया गया था, ताकि लोग उसे चुने और जीविका का साधन बनाये.
यह मॉडल अलग था. क्योंकि यहां पर्यावरण की रक्षा के साथ रोजगार को जोड़ा जा रहा था. पर ऐसे मामले आज राजनीतिक मुद्दे नहीं बनते. ऐसे में सुलगता सवाल यह है कि कुंदरी लाह बगान पुनर्जीवित होगा या फिर ऐसे ही इतिहास के पन्नों में दम तोड़ देगा.
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