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दिव्यांग रहमान मियां पत्नी के साथ कैंसर पीड़ित 13 वर्षीय पुत्र की जान बचाने के लिए खा रहा है दर-दर की ठोकरें

चैनपुर (पलामू) : चैनपुर के बंदुआ गांव का दिव्यांग रहमान मियां दोनों पैर से लाचार है. वह खिसक-खिसक कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंच पाते हैं. विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपने परिवार का पालन पोषण किसी तरह से कर रहे हैं. इसमें उनकी पत्नी जोहरा बीबी भी साथ देती है. […]

चैनपुर (पलामू) : चैनपुर के बंदुआ गांव का दिव्यांग रहमान मियां दोनों पैर से लाचार है. वह खिसक-खिसक कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंच पाते हैं. विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. अपने परिवार का पालन पोषण किसी तरह से कर रहे हैं. इसमें उनकी पत्नी जोहरा बीबी भी साथ देती है.

वह भी मेहनत मजदूरी कर घर को चला रही है. लेकिन इनके परिवार पर दुख का पहाड़ तब टूट पड़ा जब यह पता चला कि उनके 13 वर्षीय पुत्र अरमान को कैंसर हो गया है. कैंसर का इलाज हो सके, इसके लिए रहमान ने काफी प्रयास किया. उसे बताया गया कि इस बीमारी के इलाज के लिए सरकार द्वारा सहायता दी जाती है. लेकिन इसके लिए आवश्यक कागजात बनाने होंगे. रहमान ने जाति, आवासीय, आय प्रमाण पत्र बनाने के लिए जल्द ही फार्म खरीदा और उसे भरकर प्रज्ञा केंद्र के संचालक को दिया. लेकिन प्रज्ञा केंद्र के संचालक द्वारा यह कहकर लौटा दिया गया कि प्रमाण पत्र तभी बनेगा जब इस पर अंचल राजस्व कर्मचारी की अनुशंसा होगी.
इसके बाद वह कर्मचारी से मिलने के लिए दर-दर भटक रहा है. कभी वह प्रखंड सह अंचल कार्यालय तो कभी पदाधिकारियों के आवास तक का चक्कर लगा रहा है. इस चिलचिलाती धूप में वह पत्नी की मदद से ट्राइसाइकिल पर बैठकर कार्यालय का चक्कर लगा रहा है. लेकिन उसकी सुध कोई नहीं ले रहा है.
दिव्यांग रहमान काफी टूट चुका है. रो रोकर उसने बताया कि उसका एक मात्र सहारा उसका पुत्र अरमान ही है, पुत्र से उन्हें काफी उम्मीद है. वह बंदुआ के राजकीय मध्य विद्यालय कक्षा चार में पढ़ता है. वह स्वयं तो विकलांग है लेकिन इस बात का भरोसा है कि उनका पुत्र उनके लिए सहारा बनेगा. जब पता चला है कि उसके पुत्र को कैंसर है तो वह काफी विचलित हो गया है. उसे बस इसी बात की चिंता है कि किसी तरह से उसका पुत्र स्वस्थ हो जाये. इसलिए वह किसी भी परिस्थिति में अपने पुत्र का इलाजा कराना चाहता है. उसे जब यह बताया गया कि उसे सरकारी प्रावधान के तहत इलाज के लिए सहायता राशि मिल सकती है तो उसे विश्वास जगी है कि वह अपने पुत्र के इलाज करा सकेगा. लेकिन जब उसे प्रमाण पत्र बनाने के लिए ही इतनी भागदौड़ करनी पड़ रही है तो वह भला कैंसर पीड़ित पुत्र की जान कैसे बचा सकेगा.
सहायता राशि पाने के लिए प्रमाण पत्र बनाने के लिए लगा रहा है कार्यालयों के चक्कर
चिलचिलाती धूप में भी वह ट्राइसाइकिल से पत्नी के साथ जाता है प्रखंड कार्यालय

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