पाकुड़. समय के साथ मिट्टी के घड़ों में भी अपडेट होने लगा है. पारंपरिक घड़ा में अब आधुनिक तकनीक और डिजाइन शामिल किए गए हैं, जो उन्हें और अधिक उपयोगी और आकर्षक बना रहा है. लोग मिट्टी के घड़े में प्राचीन काल से ही पानी का सेवन करते आ रहे हैं. आज भी उसकी डिमांड कम नहीं हुई है. घड़े को आकार देने वाले जतिन पाल ने बताया कि समय के साथ हमारी दुनिया में बदलाव हो रहा है, जिस कारण हमने भी घड़ों की डिजाइन में बदलाव के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. पहले घड़ों में नल लगा हुआ नहीं होता था. लोगों को घड़ों से पानी डाल कर लेना पड़ता था, जिस कारण कभी घड़ा फिसलने से वह टूट भी जाता था. इस कारण कई लोग मिट्टी के घड़ों से दूरी बना लेते थे. पर अब मिट्टी के घड़ों में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. घड़ों में नल लगाए गए है, जिससे घड़ा और भी आकर्षिक दिख रहा है. लोग नल लगा हुए घड़ों को पसंद भी कर रहे हैं. उत्तम पाल ने बताया कि घड़ों में आधुनिकीकरण तो किया गया है, पर उसकी गुणवत्ता में किसी प्रकार का बदलवा नहीं है. प्राचीन तकनीक का इस्तेमाल कर ही घड़े को आकर दिया गया है, ताकि गुणवत्ता बरकरार रहे. बताया कि मिट्टी के घड़े में रखा पानी एक तो कुदरती तौर पर शुद्ध होता है और मटके के अंदर की सतह पानी के दूषित कणों को सोख लेती है.
चिकित्सकों ने भी मिट्टी के घड़े का पानी माना बेहतर
सीएस डॉ. मंटू कुमार टेकरीवाल ने बताया कि मिट्टी के घड़े में पानी न केवल प्राकृतिक तरीके से ठंडा रहता है, बल्कि इसमें भरा पानी पीने से कई लाभ भी होते हैं. इसका पानी पीने से पाचन तंत्र में सुधार होता है और एसिडिटी से राहत मिलती है. इससे शरीर को गर्मी से राहत मिलती है और लू से बचाव होता है. मिट्टी से बने घड़े या मटके में मृदा के खास गुण होते हैं, जो पानी की अशुद्धियों को दूर करते हैं और शरीर को लाभकारी मिनरल्स प्रदान करते हैं.
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