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कुम्हारों ने चाक की बढ़ाई रफ्तार, मिट्टी के दीये से लाएंगे खुशहाली

महेशपुर. दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं. बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये बनाने का कार्य कुम्हारों ने शुरू कर दिया है.

देवब्रत दास, महेशपुर. दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं. बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये बनाने का कार्य कुम्हारों ने शुरू कर दिया है. बताते चलें कि इस बार दीपावली 20 अक्तूबर को मनाई जायेगी. लोगों ने दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने, घरों की रंगाई-पोताई की तैयारी शुरू कर दी है. बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइनर दीये भी खूब पसंद करने लगे हैं. वहीं, चाइनीज दीयों से मोहभंग होने के चलते मिट्टी के दीयों की मांग इस साल कुछ बढ़ी है. कुम्हार राजू पाल, आनंदो पाल, निशा पाल, फुलटूसी पाल, सुभाष पाल, गणेश पाल, आशीष पाल, सुस्मिता पाल, दिनेश पाल, साधीन पाल, निताय पाल, दुलाल पाल आदि ने बताया कि जिला प्रशासन ने सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक चाक देने की बात कही थी. यहां फॉर्म भी भराया गया. बताया गया था कि अकाउंट में सीधे इलेक्ट्रिक चाक मशीन की राशि आ जायेगी, लेकिन कई साल बीत गये. अभी तक चाक नहीं मिली. घर की महिलाओं के नाम से ग्रुप लॉन लेकर अपने पैसे से इलेक्ट्रिक चाक खरीदकर काम कर रहे हैं. बताया कि दुर्गापूजा के बाद अब दीपावली और छठ पर्व आने वाला है, जिसको लेकर पूरा परिवार दिन रात एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर मिट्टी के सामान बना रहे हैं. और उसे पका कर रंग रोगन कर तैयार कर रहे हैं. कुम्हार राजू पाल ने बताया कि इलेक्ट्रिक चाक किश्तों के पैसों से खरीदकर दीया व अन्य सामान बना रहे हैं. बताया कि दीपक तैयार कर ठेले पर लादकर महेशपुर हाट व महेशपुर मुख्यालय में घुम-घुमकर बेचने का काम करते हैं.

कुम्हारों को अच्छी आय की उम्मीद

दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने रफ्तार पकड़ ली है. उन्हें इस बार अच्छी बिक्री की उम्मीद है. परिवार के सदस्यों में से कोई मिट्टी गूंथने में लगा है, तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के दीपक व बर्तनों को आकार दे रहे हैं. राजू पाल बताते हैं कि इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी. क्योंकि चाइना के बने सामना की खरीदारी लोग ना के बराबर कर रहे हैं. पिछले साल अच्छे खासे दीपक व मिट्टी के अन्य सामग्री बेची थी. इस साल उससे ज्यादा दीपकों की बिक्री होगी.

चाक से बनती है कई चीजें

अब इलेक्ट्रिक चाक होने से काम तेजी से होता है. पहले हाथ का चाक होता था. अब इलेक्ट्रिक चाक से फटाफट दीपक व अन्य सामान तैयार किया जाता है. बिजली न आने की स्थिति में हाथ का चाक भी तैयार रखा जाता है, ताकि काम प्रभावित न हो. इस पर दीपक, घड़ा, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी आदि भी बनाए जाते हैं. कुम्हारों को ईंधन पड़ता है महंगा. मिट्टी चाक पर चढ़ने के बाद एक रूप दे देते हैं पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है. पहले ईंधन महंगा नहीं था पर अब ईंधन ने भी कुम्हारों का पसीना छुड़ा देता है.

100 रुपए सैकड़ा बिकते हैं दीये

कुम्हार बिक्री के लिए दीये की अलग-अलग वैरायटी बनाने लगे हैं. कुम्हारों ने बताया कि 100 रुपए सैकड़ा में दीये बेचे जाते हैं. दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है. धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक दीये की बिक्री करते हैं.

मिट्टी का ही जलाएंगे दीपक

प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपक का ही दीपावली में महत्व होता है. इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं. यही वजह है कि अब चाइना के उत्पादों को छोड़कर देसी दीपकों की मांग बढ़ रही है. संदीप भगत, गोपाल भगत, राहुल भट्टाचार्य, मृत्युंजय दास, रिजु सिंह, कल्याण मोदक, बमबम सिंह आदि कहते हैं कि वे कुम्हारों से बने मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे. अन्य लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं.

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