प्रतिनिधि, पाकुड़. जिला मुख्यालय सहित प्रखंड क्षेत्र में काली पूजा की तैयारी जोरों पर है. मंदिरों की रंगाई-पुताई का कार्य चल रहा है. इसी क्रम में शहर के राजापाड़ा स्थित शमशान काली मंदिर का भी रंग-रोगन किया जा रहा है. यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा और रहस्यमय पूजा विधि के लिए प्रसिद्ध है. मंदिर के सेवायत मीरा प्रवीण सिंह उर्फ डोली पांडे के अनुसार, यहां करीब 300 वर्षों से पूजा-अर्चना की जा रही है. स्थानीय लोग मां को पहाड़िया काली के नाम से भी जानते हैं. बताया जाता है कि बहुत पहले एक साधु यहां आए थे, जिन्होंने पंचमुंडी आसन बनाया था. उसके बाद राजा पृथ्वी चंद शाही ने इस स्थान को विकसित किया था. पूजा-अर्चना की परंपरा की शुरुआत हुई. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पूजा के दौरान कभी भी बिजली के उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया जाता. मां काली की आराधना पूरी तरह तांत्रिक विधि से की जाती है. मंदिर परिसर में करीब सौ मशालें जलाई जाती हैं और हजारों मिट्टी के दीपक रोशनी बिखेरते हैं. इन्हीं की ज्योति में मां काली की पूजा संपन्न होती है. सेवायत ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व एक बार बिजली के उपकरण इस्तेमाल की कोशिश की गयी थी. इसके लिए नया जनरेटर खरीदा गया, लेकिन जब तक मां की प्रतिमा मौजूद रही, जनरेटर चालू नहीं हुआ. प्रतिमा विसर्जन के बाद ही वह चालू हुआ. आसपास के लोगों का भी मानना है कि जैसे ही बिजली के उपकरणों का उपयोग किया जाता है, किसी न किसी प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है. इसी कारण आज भी परंपरा के अनुसार मशाल और दीपों की रोशनी में ही पूजा होती है. यहां पूजा तांत्रिक विधि से मल्लारपुर बामाखेपा के गुरु के वंशज प्रदीप भट्टाचार्य और उनके सहयोगी तरुण पांडे द्वारा कराई जाती है. पूजा आधी रात के बाद प्रारंभ होती है. इस दौरान पाठा की बलि देने की भी परंपरा है. मां काली की प्रतिमा विसर्जन भी अनोखे अंदाज से किया जाता है. सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिमा को कंधे पर उठाकर स्थानीय तालाब तक ले जाते हैं और वहां विसर्जन करते हैं. इस अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है. काली पूजा के अवसर पर मंदिर परिसर में मेला भी आयोजित होता है. श्रद्धालु मां काली के दर्शन और मेले के आनंद के लिए यहां पहुंचते हैं. श्रद्धा, परंपरा और आस्था का यह संगम श्मशान काली मंदिर को जिले के प्रमुख धार्मिक स्थलों में एक अलग पहचान देता है.
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