संवाददाता, पाकुड़. पाकुड़िया प्रखंड क्षेत्र के आसपास के इलाकों में इन दिनों आसमान में छाए सफेद बादलों के साथ धरती पर चारों तरफ फैले सफेद काश (कांश) के फूल देवी के शारदीय नवरात्र आगमन का एहसास करा रहे हैं. जहाँ भी नजर दौड़ाएं, लंबे-लंबे काश के फूल मंद-मंद बहती हवाओं के साथ अठखेलियां करते हुए मन को प्रफुल्लित कर रहे हैं, मानो पूरी प्रकृति देवी दुर्गा के स्वागत के लिए आतुर हो रही हो. वास्तव में, वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के आगमन के दौरान ऊंचे पहाड़ी इलाकों, खेतों की मेढ़ों और नदियों के तट पर काश के फूल लहराते हुए दिखाई देते हैं. काश के फूल नदी किनारे जलीय भूमि, बलूई सूखे इलाकों, पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में टीले जैसे हर स्थान पर देखे जा सकते हैं, लेकिन नदी के तटीय इलाकों में ये फूल अधिक मात्रा में उगते हैं. काश फूल घास की एक प्रजाति है, जिसका आयुर्वेद में कई रोगों के उपचार में औषधीय महत्व है. शरद ऋतु के आगमन पर, जब नीले आसमान में सफेद बादल अठखेलियां कर रहे होते हैं, तब धरती पर सफेद काश के फूल धीरे-धीरे हिलते हुए अपने अस्तित्व को बयां करते हैं, मानो धरती और आसमान सादगी से नहा उठे हों. शरद ऋतु का वर्णन करते हुए कवि कल्पनाओं की उज्जवलता प्रस्तुत करते हैं. बांग्ला साहित्य में दुर्गापूजा और शरद ऋतु का विशेष महत्व है, जो काशफूल के बिना अधूरा माना जाता है. कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने ”शापमोचन” नृत्य नाट्य में काश फूल के संबंध में कहा है कि यह मन की कालिमा दूर करता है, शुद्धता लाता है, भय हटाकर शांति और वार्ता का संदेश देता है. शुभ कार्यों में काश फूल और इसके पत्तों का उपयोग किया जाता है. बंगाल के दुर्गापूजा महोत्सव में काश के फूल को खास महत्व दिया जाता है. यहां दुर्गापूजा से संबंधित कोई भी रचना, पुस्तिका या विज्ञापन हो, उसमें माता की तस्वीर के साथ काश फूल और ढाकी अवश्य होती है.
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