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नक्सलवाद से मुक्त, पर विकास से वंचित लात पंचायत

नक्सलवाद से मुक्त, पर विकास से वंचित लात पंचायत

बरवाडीह़ प्रखंड मुख्यालय से 40 किलोमीटर और जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर लात पंचायत में कुल 13 गांव बसे हैं, जिनकी आबादी 10 हजार से अधिक है. जंगल और पहाड़ों के बीच बसे इस पंचायत में कभी नक्सलवाद का गहरा प्रभाव था. हालांकि पुलिस पिकेट की स्थापना के बाद अब यहां शांति कायम है और उग्रवाद का साया पूरी तरह खत्म हो चुका है. इसके बावजूद लात पंचायत आज भी सड़क, बिजली और अन्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. अधूरा सड़क निर्माण : करीब दो वर्ष पूर्व छिपादोहर-गारु मार्ग से लाभर पिकेट होते हुए टोंगरी रोड तक 6.5 किलोमीटर लंबी सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत स्वीकृत हुई थी. विधायक रामचंद्र सिंह ने इसका शिलान्यास भी किया था. शुरुआती दौर में कुछ जगहों पर एक-दो किलोमीटर सड़क निर्माण का कार्य हुआ भी, लेकिन बाद में वन विभाग की अड़चन और पीटीआर क्षेत्र बताकर कार्य को रोक दिया गया. नतीजतन आधे से अधिक हिस्से में सड़क आज भी अधूरी है. वर्तमान हालात यह है कि सड़क पर कीचड़ जमा रहने के कारण दोपहिया वाहन तक चलाना मुश्किल हो गया है. लोग काफी मशक्कत से लाभर मुख्य सड़क तक पहुंच पाते हैं. एक साल से अंधेरे में पंचायत : लात पंचायत के सभी गांवों में एक वर्ष पूर्व ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के तहत बिजली पोल और तार लगाये गये थे. शुरुआत में दो-चार गांवों में बिजली की झलक दिखी, लेकिन इसके बाद से अब तक आपूर्ति पूरी तरह बंद है. एक वर्ष से अधिक समय से ग्रामीण अंधेरे में जीने को विवश हैं. हालात यह है कि मोबाइल चार्ज करने तक के लिए लोगों को 30 किलोमीटर दूर छिपादोहर जाना पड़ता है. नल-जल योजना भी अधूरी : नल-जल योजना के तहत जलमीनार तो स्थापित किया गया, लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण आज तक ग्रामीणों को नियमित पानी उपलब्ध नहीं हो सका है. लोग अब भी पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ग्रामीणों की नाराजगी : पूर्व मुखिया जगसहाय सिंह, सतीश प्रसाद, रामप्रताप तिवारी, चंद्ररु उरांव, गुलाब चंद प्रसाद, रितेश कुमार, विवेक कुमार, सुनील कुमार, सहादुर सिंह सहित अन्य ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलवाद खत्म होने के बाद उन्हें उम्मीद थी कि सरकार विकास योजनाएं लेकर आयेगी. पहले नक्सलियों के नाम पर पंचायत में विकास कार्य अवरुद्ध रहते थे, लेकिन अब वन विभाग की अड़चन के कारण योजनाएं पूरी नहीं हो पा रही हैं. इससे ग्रामीण निराश और मायूस हैं.

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