बेतला़ लातेहार जिले के बेतला और पोखरी में मुहर्रम के अवसर पर निकाले जाने वाले ताजिया बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. हजरत-इमाम-हुसैन की शहादत की याद में बनने वाले ताजिया को लेकर लोगों में उत्साह तो है साथ ही ताजियेदारों के बीच प्रतियोगिता भी हो रही है. एक-दूसरे से अधिक आकर्षक ताजिया बनाने की होड़ है. कई ताजियेदार तो अपनी ताजिया को बंद कमरे में निर्माण करते हैं ताकि दूसरे उसकी नकल नहीं कर सके. कई युवा अन्य प्रदेशों में जाकर काम करते हैं लेकिन मुहर्रम में सभी लोग वापस लौट आते हैं. उनके द्वारा भी ताजिया को अलग-अलग रूप देने का आईडिया दिया जाता है. बांस की कमाचियों की मदद से रंग-बिरंगे कागजों, पन्नी, मखमली कपड़े आदि चिपका कर बनाया हुआ बेतला पोखरी के ताजिया देखने के लिए पलामू प्रमंडल के लातेहार, पलामू और गढ़वा जिले के 30 से अधिक गांव के लोग यहां पहुंचते हैं. ताजिया बनाने में स्थानीय लोगों के अलावे बाहरी कारीगरों से भी मदद ली जाती है. मकबरे के आकार में बनं ताजिया की ऊंचाई 20 से 30 फीट तक होती है. करीब 150 वर्षो से परंपरागत तरीके से यहां ताजिया निकालने का सिलसिला जारी है. हिंदू समुदाय की भी होती है भागीदारी : मुहर्रम का पर्व आपसी भाईचारे और प्रेम की मिसाल है. वैसे तो यह त्योहार मुस्लिम समुदायों का है लेकिन हिंदू समुदाय के लोग भी इस पर्व में अपनी बड़ी भूमिका निभाते हैं. पूर्व में ताजिया बनाने का काम हिंदुओं के द्वारा भी किया जाता था. लेकिन जब हिन्दू बुजुर्ग गुजर गये तब बीते कुछ वर्षों से हिंदुओं के द्वारा ताजिया नहीं बनायी जा रही है. 100 से अधिक वर्षों तक कुटमू, सरईडीह, केचकी, कोलपुरवा आदि गांवों में हिंदू भी ताजिया बनाते थे और जुलूस में शामिल होते थे.
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