नारायणपुर. अंचल सभागार में गुरुवार को सीओ देवराज गुप्ता की अध्यक्षता में संथाल सिविल रूल्स एवं संथाल जस्टिस रेगुलेशन 1893 के प्रावधानों के संदर्भ में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी में विभिन्न ग्रामों के ग्राम प्रधान एवं उनके सहयोगी मौजूद थे. सीओ देवराज गुप्ता ने कहा कि संथाल सिविल नियम, संथाल परगना अधिनियम 1855 के तहत, संथाल परगना में सिविल न्याय के प्रशासन के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देश हैं, जिन्हें नियुक्त अधिकारियों द्वारा पालन करना होता है. कहा कि संथाल परगना अधिनियम 1855 को ब्रिटिश सरकार द्वारा संथाल और अन्य जनजातियों द्वारा बसे हुए कुछ जिलों को सामान्य कानूनों और विनियमों से हटाने और उन्हें विशेष रूप से नियुक्त अधिकारियों के अधीन रखने के लिए बनाया गया था. संथाल परगना अधिनियम 1855 की धारा-1 के खंड (2) के तहत नियुक्त अधिकारियों द्वारा संथाल परगना में सिविल न्याय के प्रशासन में अनुपालन के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देश हैं. इन नियमों का उद्देश्य संथाल परगना में सिविल न्याय के प्रशासन को सुव्यवस्थित करना और सुनिश्चित करना था कि यह क्षेत्र के लोगों की विशिष्ट परिस्थितियों और जरूरतों के अनुरूप हो.
संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1876 (एसपीटी एक्ट) :
यह अधिनियम अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था, जो आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाता है. संथाल विद्रोह जिसे संथाल हूल के नाम से भी जाना जाता है, वर्तमान झारखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी (ईआईसी) और जमींदारी प्रथा के खिलाफ संथालों द्वारा किया गया विद्रोह था. कहा कि संथाल परगना के छह में से चार जिलों को नीति आयोग द्वारा ””आकांक्षी जिलों”” के रूप में वर्गीकृत किया गया. संथाल न्याय विनियमन 1883 का तात्पर्य 1876 के संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम से है, जो ब्रिटिश शासन द्वारा बनाया गया एक कानून था, जो संथाल जनजातियों के भूमि स्वामित्व के अधिकारों की रक्षा करता था तथा गैर-संथालों को भूमि हस्तांतरण पर रोक लगाता था. सन 1876 का संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (जिसे एसपीटी अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है) संथाल विद्रोह (1855-56) का प्रत्यक्ष परिणाम था और इसका उद्देश्य गैर-आदिवासी ज़मींदारों द्वारा संथाल जनजातीय भूमि के शोषण को रोकना था.
भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध :
इस अधिनियम ने संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचने या हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगा दिया. अधिनियम के अनुसार भूमि केवल उत्तराधिकार में ही प्राप्त की जा सकती थी, जिससे संथालों को अपनी भूमि पर स्वयं शासन करने का अधिकार सुनिश्चित हो गया. बताया कि नारायणपुर झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में स्थित है. यही वह क्षेत्र है, जहां 1876 का संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम मुख्य रूप से लागू किया गया था. मौके पर सीआई निरंजन मिश्रा, हल्का राजस्व कर्मचारी मिहिर सोरेन, विभिन्न ग्रामों के ग्राम प्रधान एवं उनके सहयोगी मौजूद थे.
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