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सरस्वती विद्या मंदिर में मनायी गयी भगवान महावीर की जयंती

भगवान महावीर ने धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और क्षमा पर सबसे अधिक बल दिया. उनके अनुसार अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है.

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विद्यासागर. सरस्वती विद्या मंदिर में जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर ”भगवान महावीर”” की जयंती मनायी गयी. कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य कृष्णकांत दुबे व संतोष कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. भगवान महावीर ने धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और क्षमा पर सबसे अधिक बल दिया. उनके अनुसार अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है. किसी के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और स्वयं भी शांति से जियो, इसी में सभी का कल्याण है. विद्यालय में जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों में भी महापुरुषों के आचरण और संदेश से चारित्रिक निर्माण हो. तत्पश्चात कक्षा सप्तम के बलजीत कुमार यादव ने हिन्दी में भगवान महावीर का जीवन वृत्तांत सुनाया. प्रधानाचार्य कृष्णकांत दुबे ने भगवान महावीर के जीवन से संबंधित प्रसंग प्रस्तुत किये. भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे. भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) वैशाली गणराज्य के क्षत्रियकुंड में क्षत्रिय परिवार हुआ था. तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये. प्रधानाचार्य ने पूरे कार्यक्रम के औचित्य पर प्रकाश डाला. जयंती प्रमुख मदन तुरी के नेतृत्व में सभी आचार्य के सहयोग से कार्यक्रम संपन्न हुआ. मौके पर आचार्य बलबीर कुमार यादव, संतोष कुमार मंडल, अशोक कुमार मंडल, रमेश मंडल, जयप्रकाश भवानी, सुनील पंडित, अभिषेक कुमार, लक्ष्मी आदि आचार्य उपस्थित थे. मिहिजाम में महावीर जयंती पर श्रद्धा व संयम का मिला संदेश : जामताड़ा. स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी के प्रतिनिधि मो अजहरुद्दीन मिहिजाम पहुंचे. इसी क्रम में मिहिजाम स्थित जैन मंदिर पहुंचकर श्रद्धालुजनों से भेंट की और उन्हें महावीर जयंती की शुभकामनाएं दी. कहा कि भगवान महावीर स्वामी के उपदेशों का स्मरण करना हम सभी के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है. महावीर स्वामी ने करुणा, प्रेम और आत्मसंयम का संदेश देकर समाज को एक आदर्श मार्ग दिखाया. उन्होंने बताया कि सच्चा सुख बाहरी भोग-विलास में नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और संयमित जीवन में निहित है. उनका सम्पूर्ण जीवन अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे महान सिद्धांतों पर आधारित था, जो आज भी हमें नैतिकता, शांति और सदाचार की ओर अग्रसर करता है. यह अवसर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि मानवता और नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना का भी एक सशक्त माध्यम है.

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