बतौर बैंकर इस तरह की स्वीकारोक्ति का साहस शायद पहले किसी ने नहीं किया. उन्होंने बतौर चेयरमैन अपने पहले संबोधन में कहा कि देश के बाहर विस्तार की बजाय देश के बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाना बैंक की प्राथमिकता होगी. उन्होंने बैंक के नये साझेदार खोजे और राजस्व बढ़ाने की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. एसबीआइ ने गैर जीवन बीमा के लिए इंश्यूरेंस ऑस्ट्रेलिया ग्रुप से समझौता किया. कस्टोडियल सेवाओं के लिए सोसिएट जेनरल से संधि की. उनके कार्यकाल के दौरान कुछ मुश्किल वक्त भी आये. एसबीआइ उस समय सबसे अधिक ब्याज दर दे रहा था और 2006 में दिसंबर आते-आते इसकी बाजार हिस्सेदारी 24.4 फीसदी पहुंच गयी.
गलती यह हुई कि वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद इसने अपनी उच्च ब्याज दरें बरकरार रखीं. इससे लिक्विडिटी बढ़ गयी और ऋण की मांग बेहद कम हो गयी जिससे मुनाफा काफी नीचे आ गया. एसबीआइ को अपने डिपोजिट में कमी करनी पड़ी और उसकी बाजार हिस्सेदारी 22 फीसदी पर आ गयी, जो भट्ट के कार्यकाल संभालने के दौरान थी. हालांकि गृह ऋण के लिए आठ फीसदी का ब्याज दर मंदी के दौर में भी बरकरार रखने के कारण सभी का ध्यान उन्होंने अपनी ओर खींचा. प्रतिस्पर्धी बैंक इसे उनकी नौटंकी करार देते रहे. लेकिन बाद में उन्हें भी इसी तरह की स्कीम बाजार में लेकर आनी पड़ी. हालांकि इस दौरान उनका आरबीआइ से भी कई बार विवाद होता रहा. श्री भट्ट अपने तीस साल के एसबीआइ के कैरियर में अपनी सुक्तियों के लिए भी जाने जाते रहे, उनमें से एक उनकी प्रसिद्ध सुक्ति यह है कि हम अपने सभी खराब ऋण अपने अच्छे समय में लेते हैं. एसबीआइ में ओपी भट्ट यदि सबसे ज्यादा याद किये जायेंगे तो अपने कर्मचारियों के लिए लाये गये स्टॉक खरीद योजना के लिए. यह पहले किसी भी बैंकिंग कंपनी ने नहीं किया था.