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सरना धर्म को मान्यता दे सरकार (दुबे 6, 7)

सरना धर्म को मान्यता दे सरकार (दुबे 6, 7)- सिदगोड़ा टाउन हॉल में राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन का दूसरा दिन – सरना धर्म की सरकारी मान्यता, जनगणना में कॉलम कोड व अादिवासी स्वशासन विषय पर हुआ मंथनसंवाददाता, जमशेदपुरसिदगोड़ा स्थित बिरसा मुंडा टाउन हॉल चल रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन के दूसरे दिन बुधवार को आदिवासियों […]

सरना धर्म को मान्यता दे सरकार (दुबे 6, 7)- सिदगोड़ा टाउन हॉल में राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन का दूसरा दिन – सरना धर्म की सरकारी मान्यता, जनगणना में कॉलम कोड व अादिवासी स्वशासन विषय पर हुआ मंथनसंवाददाता, जमशेदपुरसिदगोड़ा स्थित बिरसा मुंडा टाउन हॉल चल रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी सम्मेलन के दूसरे दिन बुधवार को आदिवासियों की प्रकृति पूजा, सरना धर्म को सरकारी मान्यता, जनगणना में कॉलम कोड व अादिवासी स्वशासन विषय पर मंथन किया गया़ सम्मेलन में पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा कि प्रकृति पूजा धर्म ही सरना धर्म है़ आदिवासी प्रकृति को ही ईश्वर मानते है़ं सरना धर्म को मान्यता देना प्रकृति-पर्यावरण को मान्यता देने के समान है़‍ वर्तमान में प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी की जा रही है. जलवायु परिवर्तन पर 190 से ज्यादा देश चिंतन-मंथन कर मानवता और धरती की सुरक्षा में जुटे हैं. सरकार को आदिवासियों का अस्तित्व बचाने के लिए सरना धर्म को मान्यता देनी चाहिए़ आदिवासी बचेंगे तो प्रकृति भी बचेगा़ आदिवासी जहां रहते हैं, वहां पर्यावरण को हरा-भरा रखते हैं. सम्मेलन में झारखंड, बंगाल, बिहार, ओड़िशा व असम से आये वक्ताओं ने भी उक्त विषय पर सुझाव दिया़ इस अवसर पर ऑल इंडिया सरना धर्म माडवा के केंद्रीय अध्यक्ष सोनाराम सोरेन, कविराज मुर्मू, विमो मुर्मू, सुमित्रा मुर्मू, हराधन मार्डी, बिरसा मुर्मू, जोबारानी बास्के आदि मौजूद थे़ भाषा-संस्कृति से दूर हो रही नयी पीढ़ी सम्मेलन में सालखन मुर्मू ने कहा कि नयी पीढ़ी आदिवासी भाषा-संस्कृति से दूर हो रही है़ यह चिंता का विषय है़ उन्हें अपनी भाषा व संस्कृति से जोड़े रखने की जरूरत है़ यह समस्या शहर में बसे आदिवासियों के साथ ज्यादा है़ माता-पिता अपने बच्चे को मातृभाषा व संस्कृति से दूर करने के लिए जिम्मेवार है़ शहर में रहने वाले अधिकांश आदिवासी अपनी पहचान और भाषा छिपाने का प्रयास करते है़ं जाहेरथान जाकर अपनी भाषा-संस्कृति से जुड़ना चाहिए़ नयी पीढ़ी को इससे जोड़ना चाहिए़ संताली भाषा व लिपि के पुस्तकों का पठन-पाठन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए़ बैद्यनाथ हांसदा दिशोम परगना बने आदिवासी सेंगेल अभियान ने सरना धर्म और आदिवासी स्वशासन को समृद्ध करने के लिए कई पदाधिकारियों का नियुक्त किया़ इसमें पश्चिम बंगाल (पुरुलिया) के रहने वाले बैद्यनाथ हांसदा को दिशोम परगना, ओडिशा पोनोत परगना- बैजू मुर्मू, झारखंड पोनोत परगना-हराधन मार्डी, पश्चिम बंगाल पोनोत परगना- धनेश्वर हांसदा, असम पोनोत परगना-बाजून टुडू को बनाया गया़ इनका कार्यकाल एक वर्ष का होगा़ ये प्रस्ताव पारित – सरना धर्म को सरकारी मान्यता के लिए आदिवासी को अपना धर्म सरना ही लिखना चाहिए- सेंगेल अभियान की ओर से प्रायोजित सरना धर्म प्रतीक या लोगो (मरांगबुरू और सिंगबोगा का प्रतीक चिह्न) को स्वीकार किया जायेगा-अशिक्षा, गरीबी और प्रलोभन आदि से धर्म परिवर्तन पर रोक लगायेंगे-धर्म के नाम पर डायन-भूत, पिशाच और झाड़ फूंक पर रोक – सरना धर्म व पूजास्थल को सुरक्षित, विकसित करने में हर व्यक्ति अपना योगदान दें- सरना धर्म के लिए बने एकता प्रार्थना को सर्वत्र अंगीकार करना होगा- सरना धर्म के मानने वाले को हर रविवार को एक घंटे के लिए जाहेरथान जाना चाहिए- आदिवासी प्रकृति पूजा धर्म को केवल सरना धर्म बोलना चाहिए

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