मन जैसा हो, वैसी ही गति हो जाती है (फोटो हैरी की होगी)लाइफ रिपोर्टर@जमशेदपुर मन जैसा हो वैसी ही गति हो जाती है. जड़ भरत ने अंतिम समय में हिरण के बच्चे का ख्याल किया, तो उन्हें दूसरा जन्म हिरण का मिला. इसी तरह हमारा अंतिम क्षण ही हमारे अगले जन्म का कारण बनता है. और अंतिम समय चूंकि कभी भी आ सकता है, इसलिए मनुष्य को प्रति क्षण स्वयं को भक्ति में लगाये रखना चाहिए. उक्त बातें स्वामी दिव्यानंद जी ने मंगलवार को माइकल जॉन ऑडिटोरियम में आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कही. उन्होंने कहा कि हम प्रति क्षण जन्म लेते हैं, क्योंकि सांस लेने का मतलब है जीवन और सांस छोड़ने का अर्थ है मृत्यु. भक्त राज प्रह्लाद के चरित का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भक्ति करो तो प्रह्लाद की तरह. उन्होंने कहा कि बचपन हम खेलकूद में गंवा देते हैं और जवानी नींद और अर्थोपार्जन में, और बुढ़ापे में जब हमारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं तब भक्ति करने की सोचते हैं, लेकिन तब क्या यह संभव है? उन्होंने कहा कि अध्यात्म और विज्ञान बचपन से ही जीवन में उतारें तभी हम व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का जीवन शत प्रतिशत जी सकते हैं. सेवा की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि सेवा निष्काम भाव से की जानी चाहिए, किसी लोभ, स्वार्थ या अहंकार के भाव से की गयी सेवा से कभी अखंड भक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती. बल्कि ऐसे व्यक्ति का पतन हो जाता है. स्वामी जी ने आज जड़ भरत एवं नृसिंहावतार की कथा सुनायी. स्वामी जी एवं उनके ने प्रवचन के दौरान बीच-बीच में सुमधुर भजनों से श्रद्धालुओं को मुग्ध भी किया.
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माइकल जॉन ऑडिटोरियम में आर्ट ऑफ लिविंग का भागवत कथा ज्ञान यज्ञ
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