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कुंडा का फातिहा, सिरनी खायी लोगों ने असंपादित

जमशेदपुर : रज्जवल की 22 की तारीख को हजरत इमाम जाफर (रजि) के नाम से फातिहा किया गया. जिसे कुंडा के फातिहा के नाम से भी जाना जाता है. सूरज निकलने के पहले फातिहा होता है. सूरज डूबने से पहले जिस हांडी में उसे तैयार किया जाता है, उसे नदी में प्रवाह कर दिया जाता […]

जमशेदपुर : रज्जवल की 22 की तारीख को हजरत इमाम जाफर (रजि) के नाम से फातिहा किया गया. जिसे कुंडा के फातिहा के नाम से भी जाना जाता है. सूरज निकलने के पहले फातिहा होता है. सूरज डूबने से पहले जिस हांडी में उसे तैयार किया जाता है, उसे नदी में प्रवाह कर दिया जाता है और सुबह बनाये गये सामान को भी खाकर खत्म कर दिया जाता है. इसे मुसलिम समुदाय में अहले सुन्नत माना जाता है. कुंडा का पर्व मन्नत पूरी होने पर लोग आयोजित करते हैं. इस दिन सुबह मिट्टी के बरतन में फातिहा किया गया. जहां इसे तैयार(रसोई) किया गया, वहीं बैठकर सभी ने सिरनी खायी. फातिहा में खीर-पुड़ी बनती है. इसे बांटा नहीं जाता है, लोग एक-दूसरे घरों में जाकर काफी सम्मान से इसे उसी स्थान पर बैठकर ग्रहण जरूर करते हैं. जुगसलाई, मानगो, टेल्को, धातकीडीह, गोलमुरी में काफी घरों में कुंडा का फातिहा किया गया.

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