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बुलंद हौसले से मुकद्दर को बदल रहे सिकंदर

जमशेदपुर:सरायकेला के धोबीडीह गांव निवासी 38 वर्षीय सिकंदर कुदादा हौसले और हिम्मत की मिसाल हैं. छह साल पहले वे सामान्य युवाओं की तरह ही थे, लेकिन अचानक शुरू हुई पैर की तकलीफ ने इस कदर परेशान किया कि अंतत: वर्ष 2012 में दोनों पैर घुटने तक काटने की नौबत आ गयी. ऐसा लगा कि जीवन […]

जमशेदपुर:सरायकेला के धोबीडीह गांव निवासी 38 वर्षीय सिकंदर कुदादा हौसले और हिम्मत की मिसाल हैं. छह साल पहले वे सामान्य युवाओं की तरह ही थे, लेकिन अचानक शुरू हुई पैर की तकलीफ ने इस कदर परेशान किया कि अंतत: वर्ष 2012 में दोनों पैर घुटने तक काटने की नौबत आ गयी. ऐसा लगा कि जीवन में सबकुछ खत्म हो गया. एक साल तक निराशा और नाउम्मीदी के बीच जीवन गुजारते हुए सिकंदर ने आत्मविश्वास जगाया और बच्चों को पढ़ा कर अपनी आजीविका चलाने का संकल्प लिया.

परिवार का भरण भी कर रहे सिकंदर. आज सिकंदर न सिर्फ एक सफल प्राइवेट शिक्षक के रूप में अपनी पहचान बन चुके हैं, बल्कि इसके जरिये अपने परिवार का भरण पोषण भी कर रहे हैं. सिकंदर का सपना एक स्कूल खोलने की है जिसमें गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा दी जा सके. साथ ही वे चाहते हैं कि शारीरिक रूप से कमजोर लोगों की वे मदद कर सकें.

मतलाडीह के स्लम एरिया के बच्चों को कर रहे शिक्षित

सिकंदर बी. कॉम ग्रेजुएट हैं. उन्होंने केएमपीएम से इंटर व एलबीएसएम कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है. फिलहाल सिकंदर मतलाडीह स्थित अपने घर पर आसपास के करीब 100 बच्चों को पढ़ाते हैं. कक्षा प्रथम से लेकर दशम तक के बच्चों को ये शिक्षित कर रहे हैं. ये बच्चों को पढ़ायी के साथ-साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करने की सीख भी देते हैं.

प्रधानाध्यापक भी रह चुके हैं सिकंदर

सिकंदर कुदादा जब शारीरिक रूप से कमजोर नहीं थे और उनका पैर नहीं कटा था तब वे सरायकेला क्षेत्र के जामजोड़ा बाहागढ़ आवासीय एवं उच्च विद्यालय (प्राइवेट) में प्रधानाध्यापक रह चुके थे. तब पारिवारिक कारणों से उन्होंने यह पद छोड़ दिया था. लेकिन पठन-पाठन के प्रति लगाव और शारीरिक नि:शक्तता ने उन्हें एक बार फिर पठन-पाठन से जुड़ने को प्रेरित किया. आज वे पूरी तरह से पठन-पाठन के प्रति समर्पित हैं.

शिक्षित समाज बनाना लक्ष्य

सिकंदर कुदादा ने बताया कि जब तक समाज शिक्षित हो तभी हर तरह के विकास के रास्ते खुलेंगे. इसी उद्देश्य से उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प लिया है. खास कर वैसे बच्चे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उन्हें शिक्षित करना और आदर्श नागरिक बनाना उनका लक्ष्य है.

आत्मविश्वास से सफलता

सिकंदर का कहना है कि सफल होने के लिए मनोबल और आत्मविश्वास ऊंचा होना चाहिए. अगर संकल्प शक्ति मजबूत है तो उसके आगे शारीरिक कमजोरियां भी बाधक नहीं बनतीं.

बुजुर्ग पिता का बने सहारा

सिकंदर के परिवार में दो भाई और एक बहन है. बहन की शादी हो चुकी है. भाई अलग रहते हैं. सिकंदर अपने 80 वर्षीय पिता सुकलाल कुदादा के साथ रहते हैं. माता का अगस्त 2013 में देहांत हो चुका है. सिकंदर बताते हैं कि जब वे शारीरिक रूप से फिट थे उस वक्त उनकी शादी की बात तय हो चुकी थी. लेकिन 2009 में पैर की तकलीफ और उसके बाद लगातार बीमारी की वजह से शादी नहीं की.

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