जमशेदपुर: गर्भवती महिलाओं में मलेरिया के बढ़ते प्रकोप और गर्भ में पल रहे बच्चों को बचाने की तकनीक विकसित करने के लिए टीएमएच में शोध शुरू किया गया है. इसके लिए टीएमएच ने लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के अलावा लिवरपुल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन व नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (एनआइएमआर) के साथ एक समझौता किया है. इस रिसर्च में देश के नामचीन चिकित्सकों के अलावा विदेशों के विशेषज्ञ और टीएमएच के भी चिकित्सक शामिल हैं. इस रिसर्च पर कुल 15 लाख 20 हजार रुपये का खर्च आना है, जिसकी फंडिंग स्वास्थ्य विभाग के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च (एनआइएमआर) की ओर से की गयी है. इसका प्रथम चरण बहुत जल्द समाप्त किया जाना है, जिसके बाद दूसरे चरण के लिए अन्य विशेषज्ञों की भी मदद ली जायेगी.
दरअसल, यह देखा गया है कि भारत में हर साल गर्भ में ही बच्चों की मौत का आंकड़ा बहुत ज्यादा है. इसकी संख्या लगातार बढ़ रही है, जिसमें अधिकांश बच्चों की मौत का कारण गर्भवती महिलाओं का गर्भधारण के वक्त होने वाले मलेरिया को ही पाया गया है. इसको देखते हुए भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए देशी दवा का इजाद करने पर बल दिया ताकि महिलाओं को मलेरिया से गर्भधारण के वक्त बचाया जा सके और गर्भ में पल रहे बच्चों को भी बचाया जा सके .
चूंकि, टीएमएच को नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मलेरिया रिसर्च का सेंटर विकसित किया गया है, इसका यहां भी इसे लेकर शोध जारी है. इसे देखते हुए यह काम यहीं सौंपा गया है और इसके लिए टीएमएच ने दो विदेशी विशेषज्ञ स्कूलों के साथ टाइअप किया है. यह उम्मीद की जा रही है कि 2014 तक यह काम पूरा कर लिया जायेगा.