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क्रिया योग के नव क्रि यावानों का हुआ पुनरीक्षण

(फोटो आयी होगी)लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर क्रिया योग की दीक्षा के दूसरे एवं अंतिम दिन, सोमवार को क्रिया योग प्रशिक्षक शिवेंदु लाहिड़ी महाशय ने आज-कल के दीक्षत लोगों के पुनरीक्षण सत्र का आयोजन किया. इसमें उन्होंने नव क्रियावानों को क्रिया योग की मूलभूत बातों, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा एवं समाधि के बारे में […]

(फोटो आयी होगी)लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर क्रिया योग की दीक्षा के दूसरे एवं अंतिम दिन, सोमवार को क्रिया योग प्रशिक्षक शिवेंदु लाहिड़ी महाशय ने आज-कल के दीक्षत लोगों के पुनरीक्षण सत्र का आयोजन किया. इसमें उन्होंने नव क्रियावानों को क्रिया योग की मूलभूत बातों, यम, नियम, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा एवं समाधि के बारे में विस्तार से बताया. इसके अलावा उन्होंने पातंजल योग सूत्र में दिये क्रिया योग सूत्र का विश्लेषण भी उनके लिए किया. उन्होंने बताया कि महर्षि पतंजलि ने क्रिया योग का जो सूत्र प्रतिपादित किया है -‘तप: स्वाध्याय ईश्वर प्रणिधानानि क्रिया योग:.’ उसकी सिद्धि हो जाने पर परमानंद पूर्ण जीवन की शुरुआत होती है. उन्होंने कहा कि सूत्र में वर्णित तप का अर्थ है अष्टांग योग की तकनीकी शिक्षा को अपनाना जिससे चित्तवृत्तियों का शमन हो जाता है. इसके बाद स्वाध्याय का स्थान आता है, किन्तु इस स्वाध्याय का अर्थ किसी धर्मग्रंथ का अध्ययन नहीं, बल्कि अपने अंदर अहंकार के कूट रचना संसार को सतत सजग रह कर परखने से है. इसी तरह ईश्वर प्रणिधान का तात्पर्य मन के निर्मन में लय हो जाने, व्यष्टि ‘मैं’ को समष्टि ‘मैं’ में लय हो जाने की स्थिति से है, क्योंकि इसके बाद ही परमानंद पूर्ण जीवन की शुरुआत होती है, ग्रंथियों से प्रज्ञा पूर्ण ऊर्जा का संचार होने लगता है तथा परमानंद की प्राप्ति होने लगती है.

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