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कुछ न पढ़ें तो बेचैन हो जाता हूं

बुक फेयर में शुक्रवार को एक स्टॉल में 79 वर्षीय माली राम देबुका हाथ की लाठी कलाई में लटकाये दोनों हाथों से पुस्तक उठा रहे थे. किताबों की बात जानने के लिए पन्ना-पन्ना पलट रहे थे. इस समय ऐसा लग रहा था जैसे सहारे की लाठी को भूल गये हों और किताबों में घुस जाना […]

बुक फेयर में शुक्रवार को एक स्टॉल में 79 वर्षीय माली राम देबुका हाथ की लाठी कलाई में लटकाये दोनों हाथों से पुस्तक उठा रहे थे. किताबों की बात जानने के लिए पन्ना-पन्ना पलट रहे थे. इस समय ऐसा लग रहा था जैसे सहारे की लाठी को भूल गये हों और किताबों में घुस जाना चाहते हों. वह शुरू से ही बुक फेयर आते रहे हैं. अपने लिये खरीदी गणित की किताबवे चार-पांच स्टॉल घूमकर आठ-दस किताबें खरीद लाये. लाठी का सहारा ले प्रांगण में रखी मेज पर बैठ कर इत्मीनान से सभी किताबों को देख रहे थे. हमारे झड़ने पर वह बताते हैं कि उनकी रुचि स्वास्थ्य, प्रेरक प्रसंग, शिक्षा प्रद से संबंधित किताबों में हैं. उनके थैले में सम्पूर्ण चाणक्य नीति, घर का वैद्य नीम, ग्वारपाठा, हल्दी और हींग, दादी मां के घरेलू नुस्खे, घर का वैद्य प्याज, निरोगी जीवन और बच्चों के लिये गणित के खेल. हमने उनसे पूछा सारी किताबों तो ठीक हैं, गणित के खेल बच्चों के लिए खरीदा है क्या? वह समझाते हैं यह बच्चों के लिये नहीं अपने लिये खरीदी है. इसे पलटिए इसमें सभी के लिए काफी कुछ है. हमने पलटी तो बच्चों की किताब ही लगी. इस उम्र में भी अंकों से खेलना उन्हें अच्छा लगता है. वह कहते हैं, एक दिन भी कुछ पढ़ने को नहीं मिले तो मैं बेचैन हो जाता हूं.

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