सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का दूसरा दिनजमशेदपुर : बहु आत्मा की धार्मिक अवधारणा हमारे व्यक्तित्व की सीमित धारणा है. वैसे उपनिषद, भगवद्गीता एवं योग वासिष्ठ में आत्मा को एक माना गया है जो सर्व व्यापी एवं एक रस होता है. वैसे सही में देखा जाय तो आत्मा सर्वव्यापी एवं एक की धारणा से भी ऊपर की वस्तु है. उक्त बातें आत्मीय वैभव विकास केंद्र में चल रहे ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि अधिकांश धर्मों का आधार कर्म, स्वर्ग एवं नर्क के सिद्धांत के साथ ही पुनर्जन्म की अवधारणा पर आधारित है, किन्तु इसमें हम न्यायकर्ता अतिमानव भगवान के संबंध में तो सोचते भी नहीं हैं. उन्होंने गीता के 13वें अध्याय पर प्रवचन करते हुए कहा कि गीता का यह अध्याय साधकों को अपनी पुरानी धारणाओं का अतिक्रमण कर उनके पार जाने के लिए प्रेरित करता है. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के सोपान चढ़ने के साथ ही मनुष्य की समझदारी भी बढ़ती जाती है. उन्होंने कहा कि दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण ने सांख्य (एक आत्मा का सत्य) का वर्णन किया है. इसमें उन्होंने सत्य का साक्षात्कार होने के बाद मानव में होने वाले परिवर्तनों की चर्चा की तथा बताया कि 13वें अध्याय में ज्ञान के द्वारा व्यक्तित्व परिवर्तन पर विशद् चर्चा हुई है. उक्त ज्ञान यज्ञ को सफल बनाने में डॉ एनके दास, टाटा टिमकेन के एमडी पी सरोदे, डॉ आलोक सेनगुप्ता, आरएस तिवारी आदि का विशेष सहयोग रहा.
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आध्यात्मिकता के साथ बढ़ती है समझदारी भी : स्वामी निर्विशेषानंद (फोटो आयी होगी)
सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का दूसरा दिनजमशेदपुर : बहु आत्मा की धार्मिक अवधारणा हमारे व्यक्तित्व की सीमित धारणा है. वैसे उपनिषद, भगवद्गीता एवं योग वासिष्ठ में आत्मा को एक माना गया है जो सर्व व्यापी एवं एक रस होता है. वैसे सही में देखा जाय तो आत्मा सर्वव्यापी एवं एक की धारणा से भी ऊपर […]
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