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गुनहगारों के हाथों में हैं कैदियों की जिंदगी

जमशेदपुर: घाघीडीह सेंट्रल जेल में रहते ही छह बंदी कंपाउंडर बन गये हैं. इन बंदियों पर ही जेल में बीमार होने वाले अन्य बंदियों को सूई, पानी चढ़ाने, दवा देने, मरहम पट्टी करने की जिम्मेवारी है. भले ही सरकार से घाघीडीह जेल को सेंट्रल जेल का दर्जा प्राप्त हो गया है लेकिन बंदियों की इलाज […]

जमशेदपुर: घाघीडीह सेंट्रल जेल में रहते ही छह बंदी कंपाउंडर बन गये हैं. इन बंदियों पर ही जेल में बीमार होने वाले अन्य बंदियों को सूई, पानी चढ़ाने, दवा देने, मरहम पट्टी करने की जिम्मेवारी है. भले ही सरकार से घाघीडीह जेल को सेंट्रल जेल का दर्जा प्राप्त हो गया है लेकिन बंदियों की इलाज की कोई सुविधा जेल अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. इलाज के नाम पर मात्र केवल फस्ट एड की व्यवस्था है. जेल अस्पताल भवन भी काफी जजर्र हो गया है.

1200 बंदी पर एक डॉक्टर
जेल में बंद 1200 बंदी इलाज के लिए एक डॉक्टर पर आश्रित हैं. रात में अगर कोई बंदी बीमार हो जाय,तो उसे सुबह तक डॉक्टर के आने तक का इंतजार करना होगा. बंदियों की तबीयत ज्यादा खराब होने पर डॉक्टर को फोन करके बुलाना पड़ता है. एक डॉक्टर संविदा पर हैं, जो सप्ताह में दो दिन दो घंटे आउटडोर में मरीजों को देखते हैं.

नहीं है कोई महिला डॉक्टर
महिला बंदियों के इलाज के लिए जेल में महिला डॉक्टर तक नहीं हैं. यहां 55 से ज्यादा महिला बंदी हैं. महिला बंदियों का इलाज जेल के डॉक्टर ही करते हैं. जेल आइजी अशोक शर्मा ने हाल ही में फरमान जारी किया था कि जेल में बीमार बंदियों के इलाज पर विशेष ध्यान दिया जायेगा, लेकिन सेंट्रल जेल घाघीडीह का हाल ठीक विपरीत है.

कई बार पत्र लिख चुका है जेल प्रशासन
बंदियों के बेहतर इलाज के लिए जेल प्रशासन कई बार डीसी, जिला सिविल सजर्न को सप्ताह में एक दिन आंख, कान, नाक के विशेषज्ञ डॉक्टर की तैनाती के लिए पत्र लिखा. लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

जेल में सीजोफ्रेनिया के 65 मरीज
जेल में सीजोफ्रेनिया के 65 मरीज हैं. सीजोफ्रेनिया बीमारी से पीड़ित बंदियों की देखभाल काफी चुनौतीपूर्ण है. इससे ग्रसित बंदी दौरा पड़ने पर अपना आपा खो देते हैं. उस स्थिति में वे जान ले और दे सकते हैं. इन बंदियों को फ्रेंडली वातावरण में रखा जाता है.

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