जमशेदपुर : हल्दीपाेखर की माेहम्मदी मसजिद ग्रामीण इलाके की पहली वातानुकूलित मसजिद है. इसका निर्माण 1983 में हुआ. वैसे हल्दीपोखर में सौ वर्ष पुरानी एक मसजिद थी, लेकिन आबादी बढ़ने के साथ-साथ नयी मसजिद बनी, जिसका नाम मोहम्मदी मसजिद रखा गया. इसके निर्माण में मजदूरों के साथ-साथ बस्ती के हर उम्र के लोगों ने ईंट, बालू समेत मसजिद निर्माण की सामग्रियां पहुंचायी. मसजिद के अहाते में एक पुस्तकालय ‘मोहम्मदी लाइब्रेरी’ की भी स्थापना की गयी.
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ग्रामीण क्षेत्र की पहली वातानुकूलित मसजिद
जमशेदपुर : हल्दीपाेखर की माेहम्मदी मसजिद ग्रामीण इलाके की पहली वातानुकूलित मसजिद है. इसका निर्माण 1983 में हुआ. वैसे हल्दीपोखर में सौ वर्ष पुरानी एक मसजिद थी, लेकिन आबादी बढ़ने के साथ-साथ नयी मसजिद बनी, जिसका नाम मोहम्मदी मसजिद रखा गया. इसके निर्माण में मजदूरों के साथ-साथ बस्ती के हर उम्र के लोगों ने ईंट, […]
मसजिद के जीर्णोद्धार व विस्तार का काम चल रहा है. मतवल्ली और संस्थापक सदस्य हाजी शमशेर अली ने मसजिद के लिए 58 डिसमिल जमीन दी. माेहम्मदी मसजिद कमेटी में अध्यक्ष मो सलीम और सचिव मो मूसा हैं.
आेमान में शहरवालाें की इफ्तार
अाेमान मस्कट की मिनिस्ट्री अॉफ डिफेंस में इफ्तार पार्टी का आयाेजन किया गया. इसमें आेमान में कार्यरत उलीडीह खानकाह में रहनेवाले माेहम्मद शमीम अपने साथियाें के साथ शामिल हुए. उन्हाेंने बताया कि वे हर दिन इफ्तार पार्टी का आयाेजन करते हैं. राेजाना पांचाें वक्त की नमाज, राेजा व तरावीह पढ़ रहे हैं. उनके साथ अफ्तार में माेहम्मद शमीम, साजिद, शहनवाज, मुरसलीन, अब्बास, शेख हमीद भी शामिल हुए.
नन्हे राेजेदार
कपाली टीआेपी कबीरनगर निवासी जुनैद अहमद के दाेनाें नन्हे बेटाें ने राेजा रखा है. एक आठ साल का बशर अहमद जुनैदी आैर दूसरा पांच साल का कमर अहमद जुनैदी है. बशर यूकेजी का मदरसा में पढ़ता है, जबकि कमर यूकेजी का छात्र है.
रूह और जिस्म के लिए फायदेमंद रोजा
रोजा रूह के साथ जिस्म के लिए भी फायदेमंद है. यह सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि इसमें झूठ, बेकार की बातें करना, पीठ पीछे दूसरे की बुराई करना आदि गुनाहों से बचना भी है. हदीस में कहा गया है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद सअ. ने फरमाया कि जिसने रोजा में झूठ बोलना और झूठ पर अमल करना नहीं छोड़ा तो अल्लाह को उसकी बिल्कुल जरूरत नहीं कि वह खाना-पीना छोड़ दे या भूखा-प्यासा रहे. रमजान के महीने के अंतिम अशरे में इबादतों के लिए खास अवसर है. रोजा हमें मुतक्की (तकवा वाला) और परहेजगार बनाता है. मौलाना जाहिद नदवी, पेश ए इमाम, मोहम्मदी मसजिद, हल्दीपोखर
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