Sohrai Art, हजारीबाग, (संजय सागर) : बड़कागांव का जोराकाठ गांव एक समय पर 90 के दशक में उग्रवादियों की बंदूक की गरज से चर्चा में रहता था. आज वही गांव अपनी सोहराय और कोहबर कलाकृतियों के जरिए पूरे देश में पहचान बना रहा है. जी हां गोंदलपुरा पंचायत अंतर्गत आने वाला इस गांव की महिलाएं और पुरुष अब अपनी कला की वजह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं. इनकी बनाई कलाकृतियों की बिक्री 1000 रुपये से लेकर 10,000 तक होती है.
झारखंड के अलावा यूपी, बिहार और एमपी जैसे राज्यों में भी मचा रही धूम
हजारीबाग, रामगढ़, रांची, जमशेदपुर, कोडरमा, चतरा, लोहरदगा, पटना, मुजफ्फरपुर, गया, भोपाल, लखनऊ और इंदौर जैसे शहरों में इन कलाकृतियों की मांग लगातार बढ़ रही है. यही नहीं, इस गांव की कलाकृतियां अब राष्ट्रपति भवन तक भी पहुंच चुकी हैं.
कला की वजह से अपराध छोड़ लौटे लोग
जोराकाठ गांव की सोहराय और कोहबर कला की प्रसिद्धि इतनी बढ़ी है कि अपराध की राह पर भटके लोग भी अब इससे प्रेरित होकर जुड़ चुके हैं. वे सम्मान और आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन कर रहे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कला बड़कागांव क्षेत्र में 5000 वर्ष से भी अधिक पुरानी है. इसका प्रमाण नापोकला पंचायत स्थित इसको गुफा के प्राचीन शैलचित्रों में मिलता है, जिन्हें मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में बनाया गया था.
अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिली पहचान
जब द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राज्यपाल थीं, तभी उन्होंने इस लोककला की सराहना की थी. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने वर्ष 2025 में राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित कला उत्सव (14 से 24 जुलाई) में
बड़कागांव की 10 महिला कलाकारों को आमंत्रित किया था. इस कार्यक्रम में रुदनी देवी, अनीता देवी, सीता कुमारी, मालो देवी, सजवा देवी, पार्वती देवी, आशा देवी, कदमी देवी, मोहिनी देवी और रीना देवी ने हिस्सा लिया. राष्ट्रपति मुर्मू ने खुद इन कलाकारों से मुलाकात की और उनकी कला की प्रशंसा करते हुए कहा था कि आपकी बनाई तस्वीरों में भारत की आत्मा की झलक है.”
महिलाओं ने आदिवासी जीवन से जुड़ी अद्भुत कलाकृतियां बनाईं
महिलाओं ने मिट्टी के रंग और बांस से बने ब्रश से कपड़ों पर पशु, पक्षी, वृक्ष और आदिवासी जीवन से जुड़ी अद्भुत कलाकृतियां बनाईं. राष्ट्रपति ने इन कलाकारों को सम्मानित भी किया. उन्होंने कहा कि झारखंड की महिलाएं परंपरागत लोककला को जीवित रखने का सराहनीय कार्य कर रही हैं.
पहली बार हवाई यात्रा का अनुभव
नदियों और जंगलों से घिरे सुदूरवर्ती जोराकाठ गांव की इन महिलाओं ने पहली बार हवाई यात्रा की. दिल्ली तक का सफर और राष्ट्रपति भवन में 10 दिनों तक रहना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं था. रुदनी देवी और पार्वती देवी ने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी कला उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा देगी. वे कहती हैं “राष्ट्रपति भवन में मिला सम्मान हम कभी नहीं भूल पाएंगे.” अब यही कला गांव की दीवारों से निकलकर शहरों की दीवारों पर भी नजर आने लगी है. दुर्गा पूजा, दीपावली, सोहराय पर्व और शादी-विवाह के अवसर पर यह कला घरों की दीवारों को सजा रही है.
एक हाथ खोया, पर हिम्मत नहीं हारी
जोराकाठ की रुदनी देवी इस कला की प्रतीक बन चुकी हैं. घर में हुई दुर्घटना में उनका एक हाथ कट गया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. बाएं हाथ से अभ्यास किया और आज महिला मंडल बनाकर सैकड़ों महिलाओं को इस कला से जोड़ चुकी हैं. उनका कहना है–“कला ने मुझे नई जिंदगी दी है.” बड़कागांव आज उन गांवों के लिए प्रेरणा बन गया है, जो कभी हिंसा और भय की छाया में जी रहे थे. यहां की महिलाएं अब अपनी मेहनत और कला के दम पर पूरे देश में झारखंड की लोकसंस्कृति की पहचान बना रही हैं.
Also Read: बोकारो पुलिस की बड़ी कार्रवाई, 10 कांडों का अपराधी सुनील को धर दबोचा

