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व्यक्ति का भौतिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास जरूरी

हजारीबाग : विनोबाभावे विश्वविद्यालय में पूर्वी क्षेत्र फिलॉसफी टीचर मीट का शुभारंभ विवेकानंद सभागार में शुक्रवार को हुआ. उदघाटन मुख्य अतिथि भागलपुर विवि से सेवानिवृत्त शिक्षाविद डॉ रामजी सिंह ने किया.अध्यक्षता विभावि के कुलपति डॉ गुरदीप सिंह ने की. कार्यक्रम का विषय विभावि दर्शनशास्त्र विभाग एवं प्रायोजिक इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोस्फिकल रिसर्च था. इस तीन […]

हजारीबाग : विनोबाभावे विश्वविद्यालय में पूर्वी क्षेत्र फिलॉसफी टीचर मीट का शुभारंभ विवेकानंद सभागार में शुक्रवार को हुआ. उदघाटन मुख्य अतिथि भागलपुर विवि से सेवानिवृत्त शिक्षाविद डॉ रामजी सिंह ने किया.अध्यक्षता विभावि के कुलपति डॉ गुरदीप सिंह ने की. कार्यक्रम का विषय विभावि दर्शनशास्त्र विभाग एवं प्रायोजिक इंडियन काउंसिल ऑफ फिलोस्फिकल रिसर्च था.

इस तीन दिवसीय टीचर मिट में डॉ रामजी सिंह ने पहचान, स्वायत्तता एवं विकास की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि हमारी पहचान हमारी अस्मिता से जुड़ी है. जिस व्यक्ति के पास अस्मिता का ज्ञान नहीं है, वह व्यक्ति ही नहीं है. उन्होंने भारत में अंगरेजी के बढ़ते प्रचलन पर कहा कि अन्य सभी देशों में लोग भाषण में अपनी भाषा का प्रयोग करते हैं, जबकि हमारे देश में भाषण में हिंदी और अंगरेजी का प्रयोग करते हैं. उन्होंने वर्तमान समय के लिए कहा कि हमारी पहचान और परिचय क्या है, इसे हम जानबूझ कर खोते जा रहे हैं. जैन दर्शन के बारे में उन्होंने कहा कि इसमें आत्मा ज्ञान को सबसे बड़ा ज्ञान बताया गया है.स्वतंत्रता की कल्पना पर कहा कि अपना तंत्र हो वहीं स्वतंत्रता है.

शिक्षक सबसे ऊंचे हैं. स्वायत्तता शिक्षा एवं प्रशासन का प्राण है. विकास के संबंध में कहा कि आज 40 प्रतिशत लोगों की आमदनी 18 रुपये है. हमारे देश में विसमतापूर्ण विकास हो रहा है. विकास किसका हो, इस पर विचार नहीं हो रहा है. एक तरफ स्कूलों एवं कॉलेजों की शानदार इमारतें नजर आ रही हैं, वहीं सुदूरवर्ती गांव व पिछले क्षेत्रों में स्कूली बच्चों को कहीं पेड़ के नीचे, तो कई टुटे-फूटे स्कूलों में पढ़ना पड़ रहा है. अत्यंत गरीबी में बच्चों अपना भविष्य का निर्माण कर रहे हैं. यह कैसा विकास है. यह व्यक्ति के जीवन का अधूरा विकास है.मनुष्य का सर्वांगीण विकास के लिये जरूरी है. उसका भौतिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक तीनों स्तर पर विकास हो.

कम संसाधन के बावजूद विवि ने बनायी पहचान

कुलपति डॉ गुरदीप सिंह ने कहा कि व्यक्ति जब जन्म लेता है तो उसकी व्यक्तिगत पहचान रहती है. सबसे के पास अपनी स्वायत्तता है. उन्होंने कहा कि स्टेट यूनिवर्सिटी को पांच प्रतिशत का फंड मिलता है. जबकि केंद्रीय विवि को 95 प्रतिशत फंड मिलता है. केंद्रीय विवि में शिक्षक छात्र का अनुपात 1:7 है, जबकि विभावि अथवा राज्य संपोषित विवि में यह अनुपात ज्यादा है. अपने विवि का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां तीन लाख विद्यार्थियों के लिये मात्र 631 शिक्षक हैं. हमलोगों ने मिलजुल कर इस विवि की पहचान बनायी है.

समाज हमें देता है हमारी पहचान

प्रतिकुलपति प्रो मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने कहा कि दर्शनशास्त्र में विद्यार्थियों की कमी होती जा रही. इस विषय को रोचक बनाने की जरूरत है. विषयवस्तु पर कहा कि समाज हमें हमारी पहचान देता है. हम जैसा काम करते है. उसी के अनुरूप हमारी पहचान लोगों के बीच कायम होती है.

विषय प्रवेश आयोजन समिति के समन्वयक डॉ यामिनी सहाय ने कराया. सेमिनार की पूरी जानकारी विभागाध्यक्ष डॉ आरकेएस चौधरी ने दी. कार्यक्रम में विभाग की पुस्तक, स्मारिका एवं जनरल का विमोचन किया गया. मुख्य अतिथि डॉ रामजी सिंह को कुलपति एवं प्रतिकुलपति ने शॉल एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया. मौके पर डॉ जीपी दास उत्कल विवि, प्रो चटर्जी कोलकाता, डॉ कांतिलाल दास, डॉ मनोज पांडा, आइसीपीआर से आरसी सिन्हा, डॉ रजनी शर्मा, डॉ आरएस अम्बस्टा, डॉ आरसी सिंह, डॉ अपर्णा मुखर्जी समेत विभाग के शिक्षक, विद्यार्थी एवं पूर्वी क्षेत्र से आये डेलीगेटस शामिल थे.

सेमिनार में 12 तकनीकी सत्र

तीन दिवसीय सेमिनार में 12 तकनीकी सत्र निर्धारित है. शुक्रवार को तीन सत्र, शनिवार को छह सत्र एवं रविवार को तीन सत्र होगा. समापन समारोह 25 सितंबर को दोपहर दो बजे से निर्धारित है. सेमिनार में उदघाटन तक 32 डेलीगेट ने अपना पंजीयन कराया, जबकि सेमिनार सत्र में 70 डेलीगेट्स के आने की पुष्टि की गयी थी.

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