Shaurya Ghata: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में लोंगेवाला के युद्ध ने निर्णायक भूमिका अदा की थी. यह युद्ध वेस्टर्न सेक्टर में राजस्थान के लोंगवाला में हुआ था. यह इतना निर्णायक युद्ध था कि इस पर बाद में बॉर्डर नामक हिंदी फिल्म भी बनायी गयी. लोंगेवाला के पोस्ट पर उन दिनों अपने साथियों के साथ तैनात थे फिल्मन कुजूर. पाकिस्तान की फौज ने अचानक वहां हमला कर दिया था. उस समय वहां भारतीय सैनिकों की संख्या काफी कम थी, जबकि पाकिस्तानी सैनिक बड़ी संख्या में थे. उस पोस्ट के पास भारत के सिर्फ 120 जवान अफसर तैनात थे, लेकिन इन जवानों ने बड़ी बहादुरी से पाकिस्तानी फौज को रोके रखा था. सुबह होते-होते भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई की और इस युद्ध में पाकिस्तानी फौज एवं टैंक दस्ते को तहस-नहस कर दिया था. इसी बहादुरी के कारण गुमला के चितरपुर, टांगो निवासी फिल्मन कुजूर को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था.
लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय फौज की संख्या थी कम
पाकिस्तानी सेना को यह खबर थी कि लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय फौज की संख्या काफी कम है, इसलिए अगर बड़ी फौज के साथ इस पोस्ट पर हमला किया जाता है, तो वहां पर कब्जा हो जायेगा. इसी रणनीति के तहत आधुनिक हथियारों से लैस होकर पाकिस्तानी सेना इस पोस्ट पर कब्जा करने के लिए बढ़ी थी. पाकिस्तान को भरोसा था कि वह आसानी से इस पोस्ट पर कब्जा कर लेगा, लेकिन यहीं पाकिस्तान से चूक हो गयी. उस पोस्ट पर फिल्मन कुजूर और उसके बहादुर साथी तैनात थे. संख्या भले ही कम थी, लेकिन इसी संख्या पर दुश्मनों को चित्त करने का जज्बा था. जिस जगह पर यह युद्ध चल रहा था, वहां तुरंत और सेना भेजना संभव नहीं था. रात होने के कारण वायुसेना उड़ान भरने में असमर्थ थी. भारतीय वायुसेना सिर्फ रात खत्म होने और थोड़ा उजाला होने का इंतजार कर रही थी.
जब तक वायुसेना नहीं पहुंचती, तब तक किसी तरह दुश्मनों को रोके रखना एक चुनौती थी. इसी काम में अन्य साथियों के साथ लगे हुए थे फिल्मन कुजूर अपने साथियों के साथ फिल्मन कुजूर दुश्मनों पर लगातार गोलियां बरसा रहे थे, ताकि दुश्मन यह नहीं समझे कि भारतीय फौज की संख्या कम है. फिल्मन कुजूर और अन्य भारतीय सैनिकों ने बहादुरी दिखाते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को रोक कर रखा. तब तक उजाला हो चुका था और भारतीय वायुसेना पहुंच चुकी थी. वायुसेना ने दुश्मनों के ठिकानों पर तेजी से और सटीक हमला किया. पाकिस्तान के पास इससे निबटने का कोई उपाय नहीं था.
लोंगेवाला का हीरो
फिल्मन किसान परिवार से थे. किसान और मिट्टी का संबंध बहुत गहरा होता है. आम लोगों के लिए मिट्टी बहुत महत्वपूर्ण न हो, मगर एक किसान के लिए जरूरत होती है. मिट्टी, उस किसान के कठिन परिश्रम के एवज में उसे अनाज का भंडार देती है. एक किसान के परिवार में पैदा होनेवाले फिल्मन को धरती मां के अनमोल उपहारों की महत्ता की जानकारी थी. शायद इसीलिए तो उन्होंने भविष्य में इसकी हिफाजत करने की कसम खाई थी. उनका जन्म 1946 में गुमला में हुआ था. दो भाई और एक बहन के परिवार में इनके बड़े भाई अपने पिता की तरह खेती करते थे. फिल्मन सेना में जाने का मन बना चुके थे. गरीबी के कारण चौथी कक्षा से आगे की पढ़ाई पूरी ना कर सके. अगर इच्छा हो, लगन हो, जुनून हो तो रास्ता खुद निकल जाता है. फिल्मन के साथ भी ऐसा ही हुआ. जब उन्हें खबर मिली कि सेना में बहाली हो रही है, तो वह बहाली के लिए मैदान में पहुंच गये. शारीरिक लंबाई और फूर्ती के साथ-साथ उन्होंने बहाली प्रक्रिया की दौड़ के दौरान ही अपनी बहादुरी और साहस का परिचय दे दिया. उनका सेना में चयन हो गया. उन्होंने बिहार रेजिमेंट में अपना योगदान दिया. फिर जहां-जहां अवसर मिला, अपने कर्तव्य को निभाते रहे.
भारतीय सीमा की रक्षा का दायित्व संभालते थे फिल्मन
फौज में जाने के बाद उनकी जीवन बदल चुका था. अपनी लगन और अथक परिश्रम से कुछ ही समय में अपने सीनियरों का उन्होंने विश्वास जीत लिया. किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए, सीनियरों की चर्चा में पहला नाम फिल्मन का ही आता था. काम के प्रति उनके जुनून शायद उनकी विश्वसनीयता की एक बड़ी वजह थी. टास्क बताए जाने के साथ ही उनका दिमाग उसे पूरा करने में लग जाता था. इस दौरान लक्ष्य के आगे अपने जान की परवाह न करना उनकी आदत में शुमार होता चला गया. फिल्मन की शादी सेलस्टिना के साथ हुई थी. घर का जिम्मा सेलस्टिना संभालती थी और भारतीय सीमा की रक्षा का दायित्व फिल्मन संभालते थे.
जिंदादिल इंसान माने जाते थे फिल्मन
आर्मी के मेस में अपने दोस्तों के साथ हंसी-मजाक करनेवाले फिल्मन जिंदादिल इंसान माने जाते थे. फिल्मन मांसाहारी खाने के शौकीन थे. खाने का जायका और तीखापन, पुराने दौर के गाने के साथ कुछ ज्यादा ही बढ़ जाया करता था. कभी-कभार मेस का स्थानीय कुक भी उस महफिल में चार-चांद लगाने का काम किया करता था. इसके विपरीत जब फिल्मन छुट्टियों में घर आया करते थे, तो वे कभी भी वहां जंग के मैदान की बातें नहीं किया करते थे. बस घर के काम में हाथ बटाया करते थे. गांव से कई लड़कों को उन्होंने सेना में नौकरी करने के लिए प्रेरित किया था. उनके दो बेटों और दो बेटियों में सबसे बड़े अनूप का भी चयन फौज में हो गया था, पर किसी कारणवश वे सेना में नहीं जा सके. पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में बहादुरी दिखाने के कारण उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. सेना से जब उन्होंने अवकाशग्रहण किया, तब वे छत्तीसगढ़ के बीजापुर में रहने लगे. देश आज भी उनकी बहादुरी को याद करता है.