10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

मांदर को मिलेगा GI टैग, गुमला के इस गांव को मिलेगी ‘प्रोड्यूसर कंपनी’ के रूप में पहचान

संगीत-नाट्य अकादमी के काउंसिल सदस्य नंदलाल नायक ने बताया कि झारखंड के पारंपरिक वाद्ययंत्रों में ‘मांदर’ की जगह बेहद खास है. इसकी थाप और इससे निकलनेवाले धुन की मिठास भी अनूठी है.

अभिषेक रॉय, रांची : असम के ‘बिहु ढोल’ की तरह झारखंड का पारंपरिक वाद्ययंत्र ‘मांदर’ भी जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) टैग पाने की कतार में खड़ा है. इसके लिए गुमला जिला प्रशासन चेन्नई स्थित जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री सेंटर में आवेदन भी कर चुका है. यह पूरी कवायद 2023 में गुमला के तत्कालीन डीसी सुशांत गौरव ने शुरू की थी. मौजूदा डीसी कर्ण सत्यार्थी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. संभवत: इसी वर्ष मांदर को जीआइ टैग हासिल हो जायेगा. इसके बाद इस वाद्ययंत्र पर झारखंड का एकाधिकार हो जायेगा. साथ ही गुमला के रायडीह प्रखंड के जरजट्टा गांव को बतौर ‘मांदर प्रोड्यूसर कंपनी’ के रूप में पहचान भी मिलेगी.

संगीत-नाट्य अकादमी के काउंसिल सदस्य नंदलाल नायक ने बताया कि झारखंड के पारंपरिक वाद्ययंत्रों में ‘मांदर’ की जगह बेहद खास है. इसकी थाप और इससे निकलनेवाले धुन की मिठास भी अनूठी है. यह एक मात्र ऐसा वाद्ययंत्र, जिसका प्रतिरूप किसी अन्य देश या प्रदेश में नहीं मिला है. गुमला का जरजट्टा गांव मांदर निर्माण के लिए ही जाना जाता है. इस गांव के करीब 22 परिवारों की चौथी पीढ़ी के सभी सदस्य मांदर बनाने का काम करते हैं.

खास बात यह है कि मांदर बनाने में इस्तेमाल होनेवाले सभी उपकरण गुमला के ही पठारी क्षेत्रों में ही मिलते हैं. मांदर का खोल शंख नदी की मिट्टी से तैयार होता है. चमड़े की चाटी के ऊपर लगने वाला रांगा, जिससे ‘टुंग’ की ध्वनि निकली है, को यहां की महिलाएं अपने हाथों से पीस कर तैयार करती हैं. इसके अलावा मांदर में लगने वाली तिरी, बाधी, टाना, पोरा डोरा, ढिसना खरन, बाली खरन, गुलू (गोल पत्थर रगड़ने के लिए), प्राकृतिक रंग और टांगना भी लोग अपने हाथों से तैयार करते हैं.

Also Read: Gumla Court: कृषि वैज्ञानिक व मछली विशेषज्ञ की हत्या करने के तीन दोषियों को आजीवन कारावास, गुमला की अदालत ने सुनायी सजा

सिमडेगा के लोगों को भी मिल रहा मांदर बनाने व बजाने का प्रशिक्षण

संगीत-नाट्य अकादमी नयी दिल्ली की कला-दीक्षा शृंखला के अंतर्गत सिमडेगा में वाद्य-यंत्र निर्माण का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है. कोलेबिरा प्रखंड के नवाटोली में गुरु सक्रती नायक के मार्गदर्शन में लोग वाद्ययंत्र बनाने और बजाने की कला सीख रहे हैं. प्रशिक्षण शिविर में मांदर, ढोल, ढांक और नगाड़ा को तैयार करने के साथ-साथ घासी प्रथागत अनुष्ठान खोद (ताल) बजाने का हुनर सीख रहे हैं. प्रशिक्षण शिविर में तीन गुरु फागू नायक (ढोल व ढांक), सामू नायक (नगाड़ा) और बिदे नायक (शहनाई) कला-दीक्षा शृंखला के तहत 10 शिष्यों काे विधा सीखा रहे हैं.

जीआइ टैगिंग के लिए तय मानकों में अब तक मांदर खरा उतरा है. अब तक 60 से 70 बिंदुओं में मांदर की क्वालिटी, फिनिशिंग, जियोग्राफिकल स्पेसिफिक, सांस्कृतिक पहचान में इसकी उपयोगिता, बनाने का तरीका समेत अन्य बिंदुओं पर स्पष्टिकरण दिया जा चुका है. रायडीह मांदर प्रोड्यूसर कंपनी के लिए ‘लोगो’ भी उपलब्ध कराया जा चुका है.
कर्ण सत्यार्थी, उपायुक्त, गुमला

Sameer Oraon
Sameer Oraon
इंटरनेशनल स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मीडिया से बीबीए मीडिया में ग्रेजुएट होने के बाद साल 2019 में भारतीय जनसंचार संस्थान दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया. 5 साल से अधिक समय से प्रभात खबर में डिजिटल पत्रकार के रूप में कार्यरत हूं. इससे पहले डेली हंट में भी बतौर प्रूफ रीडर एसोसिएट के रूप में भी काम किया. झारखंड के सभी समसमायिक मुद्दे खासकर राजनीति, लाइफ स्टाइल, हेल्थ से जुड़े विषय पर लिखने और पढ़ने में गहरी रूचि है. तीन साल से अधिक समय से झारखंड डेस्क पर काम किया. फिर लंबे समय तक लाइफ स्टाइल डेस्क पर भी काम किया. इसके अलावा स्पोर्ट्स में भी गहरी रूचि है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel