15.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Holi Tradition : झारखंड के होली पर्व में अब नहीं दिखती फाग नृत्य की रौनक, झूमर नृत्य भी खो रही धाक

झारखंड राज्य के गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, लातेहार व चतरा जिला के अलावा बगल राज्य छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ व कोरबा जिले में भी यह संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है. पूर्वजों के समय से चली आ रही इस नृत्य को बचाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा.

गुमला, दुर्जय पासवान. झारखंड में नृत्य व संगीत को ऊंचा स्थान प्राप्त है. लोक नृत्य को सांस्कृतिक जीवन का आधार माना गया है. लेकिन, हम जैसे-जैसे कंप्यूटरवादी युग में अपने आपको शक्तिशाली बनाते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं. फाग नृत्य व झूमर नृत्य भी अपनी चमक खो चुका है. कभी इन नृत्यों की झारखंड प्रदेश में धाक हुआ करती थी. अगर अभी से इन्हें संरक्षित करने के प्रयास नहीं हुए, तो यह संस्कृति विलुप्त हो जायेगी.

झारखंड ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी विलुप्त हो रही यह परंपरा

खासकर झारखंड राज्य के गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, लातेहार व चतरा जिला के अलावा बगल राज्य छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ व कोरबा जिले में भी यह संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है. पूर्वजों के समय से चली आ रही इस नृत्य को बचाने का कोई प्रयास नहीं हो रहा. गांवों में भी इसकी रौनक खत्म हो रही है. अगर फाग व झूमर नृत्य को संरक्षण नहीं दिया गया, तो आने वाले चार-पांच सालों में यह पूरी तरह समाप्त हो जायेगा.

Also Read: होली से पहले झारखंड में बर्ड फ्लू की दस्तक, इंसानों पर क्या होता है इसका असर, सुरक्षा के लिए क्या करें उपाय
होली पर्व में नहीं दिखती अब फाग नृत्य की रौनक

फाग नृत्य को फगुवा नृत्य के नाम से भी जाना जाता है. इस नृत्य में गाये जाने वाले गीतों में भगवान शिव व राधा-कृष्ण के अलावा प्रकृति का वर्णन किया जाता है. इस नृत्य का भी अपना एक समय है. जब न गर्मी और न ठंड रहती है, जब सारा वातावरण खुशनुमा होता है, हर तरफ हरियाली होती है, पलाश और सेमर के लाल-लाल पुष्प चारों ओर खिल उठते हैं, ऐसे में बसंत बहार खुशियों की सौगात लेकर होली के रूप में आता है. इसी वक्त में फाग गीत व नृत्य से वातावरण गूंज उठता था. खासकर सदानों के लिए यह समय अच्छा होता है. होली करीब है. इस विलुप्त होती संस्कृति को बचाने का यह अच्छा अवसर है.

झूमर नृत्य विलुप्त होने की कगार पर है

झूमर पुरुष प्रधान नृत्य है. कुछ स्थानों पर स्त्रियां इसमें भाग लेती हैं. होली पर्व की समाप्ति के बाद इस नृत्य का नजारा देखने को मिलता है. इसमें भाग लेने वाले पुरुष धोती-कुर्ता, अचकन, सिर पर पगड़ी, गले में माला, ललाट पर टीका व कानों में कुंडल पहनते हैं. इस नृत्य में प्रकृति का वर्ण रहता है. यह नृत्य नचनी का एक रूप है. लेकिन, आज जिस प्रकार समय बदला है. यह नृत्य विलुप्त होने लगा है. कुछ इलाकों में होली व दशहरा पर्व में इस नृत्य का नजारा देखने को मिलता है. दक्षिणी छोटानागपुर में इस नृत्य का प्रचलन खूब था. लेकिन, अब धीरे-धीरे यह समाप्त हो रहा है.

कम हो रहे हैं पारंपरिक नाच-गान

गुमला के नागपुरी कवि नारायण दास बैरागी कहते हैं कि आधुनिक सुविधाओं के कारण पारंपरिक नाचगान कम हो रहा है. कुछ संस्थान समय-समय पर सामूहिक नाच-गान कराते हैं. लोक कलाकार भी इसके संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं. गांव के बुजुर्ग अगर अपने बच्चों को पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपराओं से अवगत कराते रहेंगे, तो फाग व झूमर नृत्य को बचाया जा सकता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel