अतीत की यादें-124 गुम 11 में राजेंद्र प्रसाद गुप्ता.गुमला.1964 ई में टोटो से जब मैं गुमला आया, उस समय मेरी उम्र 13 साल थी. अब मैं 62 साल का हूं. तत्कालीन समय में गुमला में रामनवमी का जुलूस साधारण लेकिन अनुशासित व भक्तिपूर्ण वातावरण में निकलती थी. जुलूस देखते ही बनता था. लकड़ी का बना गदा लेकर लोग सड़कों पर निकलते थे. गदा उठानेवालों का शरीर भी सुडौल हुआ करता था. जगह-जगह पर करतब दिखाते थे. घाटो बगीचा में खेल होता था. उस समय अखाड़े भी कम थे. अब तो 14-15 अखाड़े हैं. लेकिन पहले जैसी अब वह बात नहीं रही. जुलूस में अनुशासन की कमी देखी जाती है. रामनवमी बाजा कम और डीजे ज्यादा बजता है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय महावीर मंडल समिति का गठन हुआ. सौभाग्य से 1994 में मुझे अध्यक्ष चुना गया. मेरे नेतृत्व में जुलूस ढंग से निकला. इसके बाद लगातार पांच साल 1999 तक मैं अध्यक्ष रहा. इसके बाद बीच में मैं कमेटी से दूर हो गया. इसके बाद पुन: वर्ष 2002 से 2004 तक मैं अध्यक्ष बना. जुलूस निकालने में बदलाव हुआ है. लेकिन जरूरी है कि अनुशासन पर ध्यान दें. क्योंकि जुलूस के माध्यम से हम पूरे समाज को एक संदेश देते हैं. ताकि भाइचारगी बनी रहे. प्रयास हो कि जुलूस मर्यादित व अनुशासित तरीके से निकले. (लेखक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता आठ साल अध्यक्ष रह चुके हैं)
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:7:::: अब वो पुरानी बात नहीं रही
अतीत की यादें-124 गुम 11 में राजेंद्र प्रसाद गुप्ता.गुमला.1964 ई में टोटो से जब मैं गुमला आया, उस समय मेरी उम्र 13 साल थी. अब मैं 62 साल का हूं. तत्कालीन समय में गुमला में रामनवमी का जुलूस साधारण लेकिन अनुशासित व भक्तिपूर्ण वातावरण में निकलती थी. जुलूस देखते ही बनता था. लकड़ी का बना […]
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