दुर्जय पासवान/सुरेश
ललित उरांव पांच बार लोकसभा चुनाव लड़े थे. तीन बार हारे, दो बार 1991 व 1996 में चुनाव जीते थे, तीन बार 1969, 1977 व 1980 में चुनाव जीत कर विधायक बने थे.
गुमला : लोहरदगा संसदीय सीट से 1991 व 1996 में दो बार भाजपा की टिकट से संसदीय चुनाव जीतने वाले बाबा के परिवार के पास आज भी कुछ कमरों का एक मंजिला घर है. बाबा के नाम से प्रसिद्ध रहे ललित उरांव तीन बार बिहार विधानसभा के सदस्य भी रहे. संयुक्त बिहार में मंत्री भी रहे. अपने आदर्शों पर अटल रहने वाले श्री उरांव का परिवार आज भी खेती-बारी कर जीवन यापन कर रहा है.
परिवार के कुछ सदस्य राजनीतिक दलों के सदस्य जरूर हैं, लेकिन अभी तक चुनावी राजनीति से दूर. श्री उरांव तीन बार सिसई विधानसभा से 1969, 1977 व 1980 में चुनाव जीत कर विधायक बने थे. 1969 में बिहार सरकार में आदिवासी कल्याण मंत्री व 1977 में वन मंत्री बने. 1974 के जयप्रकाश आंदोलन में हिस्सा लिया था. उस समय उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ा था.
ललित उरांव का 27 अक्तूबर 2003 को टाटा में निधन हो गया था. आज भी उनकी ईमानदारी व काम करने के तरीके को लोग याद करते हैं. सांसद व विधायक रहते हुए भी वे खेती-बारी से जुड़े रहे. लोगों के दिलों में राज करते थे. उनके नाम से ही गुमला शहर में ललित उरांव बस पड़ाव बना है.
इनके राजनीति जीवन में लगनशील, शालीनता, ईमानदारी, सादगी व उच्च विचार था. स्वर्गीय ललित उरांव के एक पुत्र व तीन पुत्री हैं. 1981 में ललित उरांव द्वारा पोटरो गांव में बनाये गये घर में ही उसका बेटा मंगलाचरण उरांव अपने परिवार के साथ रहता है. वर्तमान में स्वर्गीय ललित उरांव के पुत्र मंगलाचरण उरांव भाजपा के कार्यकर्ता हैं.
मंगलाचरण बताते हैं कि उनके पिता स्व ललित उरांव ने मीडिल स्कूल तक की पढ़ाई सिसई मध्य विद्यालय से की थी, हाइस्कूल गुमला से मैट्रिक की परीक्षा पास की. रांची से इंटर पास के बाद पढ़ाई छोड़ खेती-बारी में लग गये.
सामाजिक कार्य में रुचि लेने लगे. इसी बीच शिक्षक बने और रामवि बिशुनपुर में हेड मास्टर बने. ललित उरांव 1962 में कांग्रेस के कार्तिक उरांव के साथ राजनीति में आये. 1962 में ही कांग्रेस पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़े, पर जीत नहीं मिली. इसके बाद 1965 में जनसंघ पार्टी में शामिल हो गये. 1969 में जनसंघ से पहली बार विधायक बने और बिहार में आदिवासी कल्याण मंत्री बनाये गये थे.

