शहादत. नम आंखों से हजारों लोगों ने शहीद जवान श्रवण को दी अंतिम विदाई, पुत्र प्रीतम ने दी मुखाग्नि
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अधूरा रह गया बच्चों को इंजीनियर व डाॅक्टर बनाने का सपना
शहादत. नम आंखों से हजारों लोगों ने शहीद जवान श्रवण को दी अंतिम विदाई, पुत्र प्रीतम ने दी मुखाग्नि देर रात सन्हौली गांव स्थित खेत में शहीद जवान श्रवण का किया गया अंतिम संस्कार दिल्ली से शाम को पहुंचा भाई, प्रशासन को करना पड़ा दिन भर इंतजार गॉर्ड ऑफ ऑनर व 18 राउंड फायरिंग कर […]
देर रात सन्हौली गांव स्थित खेत में शहीद जवान श्रवण का किया गया अंतिम संस्कार
दिल्ली से शाम को पहुंचा भाई, प्रशासन को करना पड़ा दिन भर इंतजार
गॉर्ड ऑफ ऑनर व 18 राउंड फायरिंग कर जवानों ने दी अंतिम विदाई
सेना के अधिकारियों ने पत्नी व बेटी को नौकरी दिलाने का दिया आश्वासन
गोड्डा : डोकलाम में शहीद आर्मी के जवान श्रवण कुमार उरांव का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव ठाकुरगंगटी के कुरपट्टी में शुक्रवार देर रात कर दिया गया है. हजारों की संख्या में उपस्थित ग्रामीण, प्रशासनिक अधिकारी, जनप्रतिनिधि व आर्मी के जवानों ने शहीद जवान को अंतिम विदाई दी. घर से करीब एक किमी दूर स्थित सन्हौली गांव के अपने खेत में ही शहीद श्रवण का अंतिम संस्कार संपन्न कराया गया. मुखाग्नि चार वर्ष का बेटा प्रीतम उरांव ने दी. बेटा, बेटी, पत्नी समेत परिजनों की दहाड़ गांव का माहौल पूरे दिन गमगीन बना रहा.
वहीं ग्रामीणों ने अपने धरती के लाल के शहीद होने पर गर्व भी देखा गया. इससे पूर्व सुबह 10 बजे तिरंगा में लिपटे शहीद के पार्थिव शरीर पहुंचते ही अंतिम दर्शन को गांव में हुजूम उमड़ पड़ा. देर रात पत्नी व बच्चे भी कोलकाता से गांव पहुंच गये थे. तिरंगे में लिपटे ताबूत के पास विलाप करते श्रवण कुमार की छह वर्षीय पुत्री शिवानी दहाड़ मार कर रो रही थी. वह बार-बार कह रही थी कि पापा तुम कहा चले गये. अब डॉक्टर मुझे कौन बनायेगा. और बेहोश हो जाती है. वहीं चार वर्षीय पुत्र प्रितम उरांव को शायद इस बात को समझ नहीं पा रहा था.
अब उसके पिता इस दुनिया में नहीं रहे. बेटी को डॉक्टर व बेटा को इंजीनियर बनाने का सपना श्रवण का अधूरा ही रह गया. भींगी पलकों से बेटी ने कहा कि खूब मन लगा कर पढ़ाई कर पिता के सपनों को साकार करूंगी. वहीं शादी के 10 वर्ष बाद ही पति का साथ छूट जाने का दर्द पत्नी निर्मला देवी के आंखों में दिखाई देता था. वह दहाड़ मार कर विलाप कर रही थी. निर्मला को कोलकाता में रहकर दोनों बच्चों को पढ़ाती थी. शव के पास बार-बार बहोश हो जाती थी. होश आने पर कहती थी उसका साथ छूट गया. कम दिन ही उसके साथ का था,
जब भी छुट्टी पर आते थे अपने गांव दोस्त गांव रिश्तेदार से मिले बगैर ड्यूटी पर नहीं जाते थे. कम दिनों के साथ में भी उसे अपने पति का इतना प्यार मिला कि वह अपने को सौभाग्यशाली मानती थी. अब तो वह देश का ही होकर रह गया. इससे पूर्व देवघर मोड़ से आधे किमी तक आर्मी जवानों ने कलिग के श्रवण को कंधे पर लेकर गांव पहुंचे तो पीछे से हजारों ग्रामीणों का कारवां जुटता गया. ठाकुरगंगटी भगैया मुख्य मार्ग देवघर मोड़ के पास आर्मी वाहन से श्रवण कुमार के शव को उतारा गया. जवानों ने आधे किमी की दूरी ताबूत को कांधे से लगाये कुरपट्टी गांव पहुंचे. इस दौरान आसपास हजारों की संख्या में लोग पैदल शव के साथ-साथ थे.
पुत्र के शहादत पर पिता व मां को भी है गर्व
पुत्र के शव को देखने के बाद मां फूलो देवी व पिता देवनाराण उरांव का बुरा हाल था. पिता जमीन पर बैठ कर लगातार अपने पुत्र के वियोग में रो-रो कर गिर जा रहे थे. विधायक अशोक भगत देवनारण के कंधे पर हाथ रखकर ढांढस बंधा रहे थे. बताया कि पहले दूसरों के बेटो को शहीद होते सुन कर सीना चौड़ा हो जाता था. पर आज अपने बेटे की शहादत पर गर्व है. देश की सेवा करते शहीद होना गर्व की बात है.
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