भाई की सुख समृद्धि एवं प्रकृति आधारित लोक पर्व करमा पूरे इलाके में धूमधाम से मनी. सुबह-सुबह जहां युवा करम डाल काट कर लाने में जुटे रहे, जबकि महिलाएं व युवतियां कमल फूल एवं अन्य फूल के लिए घर से निकलीं. करमा आधारित गीतों के बीच देर शाम को जगह-जगह जा रखकर करम डाल गाड़ के पूजा-अर्चना एवं नृत्य संगीत का आयोजन किया गया.
लोक पर्व है करमा : रमेश मुर्मू
करमा झारखंड का एक लोक पर्व है. यह आदिवासी समाज के अलावा सदान समाज भी पर्व है. झारखंड के जनजाति लोगों का करमा को लेकर सभी का अलग अलग मान्यता है. यह जानकारी धर्मपुर पिड़ पारगाना रमेश मुर्मू ने दी. कहा कि संथालों की पौराणिक कथा के अनुसार करमा की शुरुआत पिलचु हड़ाम और पिलचु बुढ़ी ने की थी. मान्यता के अनुसार जब इस धरती पर जीवन नहीं था, चहुंओर ओर पानी ही पानी था, तो देवताओं ने मानव सृष्टि की युक्ति सोची. देवताओं ने सर्वप्रथम दो पक्षी का सृजन किया हंस और हंसनी, जब हंस-हंसनी को रहने की परेशानी हुई, तो समुद्री पानी के ऊपर शेवाल में सिराम पौधा का सृजन किया. उसी सिरा़म पौधा पर हंस- हंसनी ने घोंसला बनाया, अंडा दिया. उसी अंडा से दो मानव का जन्म हुआ. उन मानव को धूप से बचाने के लिए देवताओं ने सर्वप्रथम करम वृक्ष का सृजन किया. संथालों की मान्यता के अनुसार प्रथम मानव ने करम वृक्ष और सिरा़म पौधा को ही सर्वप्रथम देखा. इन्हीं की छांव में पले-बढ़े. इसलिए वर्ष में एक बार करमा के रूप में करमा डाली और सिरा़म पौधा की पूजा की जाती है. इस बात की पुष्टि करमा में गाये जाने वाले गीत से होती है.
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