आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि को पितृ पक्ष कहा जाता है. इसकी शुरुआत सोमवार से होगी, जबकि पितृ विसर्जन 21 सितंबर को किया जायेगा. इस पक्ष में हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, पिंडदान आदि कार्य करते हैं. इस संबंध में आरपीएफ पंच मंदिर हजारीबाग रोड के पुजारी सब्यसाची पांडेय ने बताया कि हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार पितृ पक्ष की अवधि में पितृदेव धरती पर अपने वंशजों से तर्पण और श्राद्ध की आशा में आते हैं. उन्हें जल और अन्न प्रदान करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वंशजों को देते हैं सुख-शांति व उन्नति का आशीर्वाद
वे अपने वंशजों को सुख-शांति और उन्नति का आशीर्वाद देते हैं. पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में व्यक्ति को अपने पितरों की मुक्ति और तृप्ति के लिए आवश्यक रूप से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना चाहिए. इससे वंश की वृद्धि होती है. इस वर्ष पितृपक्ष आठ सितंबर से 21 सितंबर तक है. तिथि के अनुसार प्रतिपद श्राद्ध आठ को, द्वितीया श्राद्ध नौ सितंबर को, तृतीया श्राद्ध 10 सितंबर, चतुर्थी श्राद्ध 11 सितंबर व पंचमी श्राद्ध 12 सितंबर को किया जायेगा. वहीं अष्टमी तिथि क्षय होने के कारण षष्ठी तथा सप्तमी श्राद्ध 13 सितंबर को होगा. जीवित्पुत्रिका व्रत तथा अष्टमी श्रद्धा 14 को, जीवित्पुत्रिका व्रत पारण तथा मातृ नवमी 15 सितंबर को मनाया जाएगा. दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध 16 सितंबर से लगातार 21 सितंबर तक होगा. पितृ पक्ष के महत्व को बताते हुए पंडित सब्यसाची ने कहा कि ‘आयु पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलम् श्रियम्. पशून सौख्यं धन धान्यम् प्राप्नुयात पितृपूजनात्’ अर्थात पितरों की पूजा करने उन्हें पिंडदान, तर्पण तथा श्राद्ध करने से आयु,वंश, पशु, धनलक्ष्मी की वृद्धि, यश की वृद्धि, स्वर्ग की प्राप्ति कृति लाभ, सौख्य आदि की वृद्धि होती है. ऐसे में व्यक्ति को जागृत होकर पूर्वजों की संतुष्टि तथा अपनी सुख समृद्धि के लिए पितृ पक्ष में पूर्वजों के लिए तर्पण कार्य अवश्य करें.
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