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नशा छोड़ें वरना नरक हो जायेगी जिंदगी

नशा छोड़ें वरना नरक हो जायेगी जिंदगी

गढ़वा. सदर अनुमंडल पदाधिकारी संजय कुमार ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत अपने एक घंटे के नियमित साप्ताहिक कार्यक्रम कॉफी विद एसडीएम में आज ऐसे लोगों को आमंत्रित किया था जो कभी नशे की गिरफ्त में होते थे. लेकिन अब वे पूरी तरह नशामुक्त जीवन जी रहे हैं. पहले नशे के चलते उनका परिवार तबाही के कगार पर पहुंच चुका था, लेकिन उन्होंने अपनी इच्छा शक्ति के बदौलत नशे को न कहा और धीरे-धीरे अब नशा मुक्त सामान्य जीवन जी रहे हैं. कार्यक्रम में आये आमंत्रित सदस्यों ने अपनी अपनी कहानी सुना कर बताया कि किसी भी प्रकार के नशा को छोड़ना थोड़ा मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं है. अगर लोग चाहें, तो अपनी इच्छा शक्ति के बलबूते नशे के दलदल से बाहर आ सकते हैं. 36 वर्षीय निशांत अग्रवाल ने बताया कि वह 14 साल तक चैन स्मोकर रहे हैं. एक समय था जब वह प्रतिदिन 7 से 10 पैकेट सिगरेट पी जाते थे. लेकिन अब गत तीन वर्षों से वह सिगरेट पूरी तरह छोड़ चुके हैं. सिगरेट ने उनकी जिंदगी एक नशेड़ी की जिंदगी बना दी थी. इसके लिए न केवल वह कर्ज में दब गये थे, बल्कि परिवार, समाज और पत्नी की नजर में भी इज्जत खो चुके थे. अब वह सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. उन्होंने नशा कर रहे युवाओं से कहा कि समय रहते नशा छोड़ दें वरना जिंदगी जीते जी नरक हो जायेगी. वहीं 50 वर्षीय संजय पाल ने बताया कि उन्होंने 25 वर्ष की आयु में तंबाकू और दारू का सेवन शुरू कर दिया था. लगातार नशे की लत में थे. एक दिन वह अपनी पत्नी को लेकर सदर अस्पताल आये थे. वहां उन्हें बातचीत के क्रम में डॉक्टर को यह कहते सुन लिया कि तंबाकू से कैंसर होता है. उसके बाद वह डर गये और उन्होंने धीरे-धीरे तंबाकू छोड़ दिया. अब वह अपने अन्य परिजनों को भी तंबाकू छोड़ने का दबाव डालते हैं. नशा करने वालों को परिवार में नहीं मिलता सम्मान 42 वर्षीय मंगरी देवी ने कहा कि वह महुआ शराब पीती थीं. लेकिन उनके कुछ भैया लोगों ने उन्हें लगातार शराब छोड़ने को प्रेरित किया, तो लगभग दो साल पहले उन्होंने शराब छोड़ दी. उनका कहना है कि जब वह शराब पीती थीं, तब उनके बच्चे भी वह सम्मान नहीं देते थे जो मिलना चाहिए, लेकिन अब परिवार में उन्हें बड़ा सम्मान मिल रहा है. नशा मुक्ति में चिकित्सकों की होती है महत्वपूर्ण भूमिका कांडी प्रखंड के 35 वर्षीय बसंत राम कहते हैं कि वह 10 साल तक तंबाकू खाते रहे लेकिन जब उनकी पथरी का ऑपरेशन हुआ, तो डॉक्टरों ने कहा कि यदि तंबाकू खाते रहेंगे, तो उनकी पथरी जानलेवा हो जायेगी. इस डर से उन्होंने तंबाकू छोड़ दी. लेकिन अब वह तंबाकू छोड़ने के अन्य फायदों को भी महसूस कर पा रहे हैं. ज्यादातर युवाओं में नशा की शुरुआत हॉस्टल लाइफ से एक युवा आशीष कुमार ने बताया कि उन्होंने हॉस्टल के समय शराब पीना शुरू कर दिया था. जबकि उनके घर में कोई शराब नहीं पीता था. इसलिए जब भी घर वालों को शक होता था, तो उन्हें घर वालों के सामने बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती थी. समाज के लोग भी अलग दृष्टि से देखते थे. इसके चलते एक दिन उन्होंने अचानक कड़ा संकल्प लिया कि अब वे कल से दारु को हाथ नहीं लगायेंगे और आज वह पूरी तरह शराब से दूर हो चुके हैं. नशे के कारण पेपर खराब हो गया : बरडीहा लावाचंपा के सत्यनारायण चौधरी कहते हैं कि वह बीटेक के समय दोस्तों के बहकावे में शराब पीने लगे थे. दोस्तों का कहना था कि शराब पीने से एकाग्रता बढ़ती है लेकिन जब एक बार नशे के चक्कर में उनका पेपर खराब हो गया और उनको ईयर बैक लग गया, तब उनको समझ में आया कि नशा सिर्फ बर्बादी देता है. इसके बाद उन्होंने नशा को हमेशा के लिए छोड़ दिया. बहुत ज्यादा बीयर पीता था : 29 वर्षीय रत्नेश ठाकुर कहते हैं कि वह कालेज समय से ही बहुत ज्यादा बीयर पीते थे. लेकिन एक दिन इतनी ज्यादा बीयर पी ली कि अपना आपा खो गये. उसी स्थिति में घर आ गये, तो घर के लोगों का व्यवहार देखकर अगले दिन उनको बड़ी शर्मिंदगी हुई और फिर उन्होंने हमेशा के लिए पीना छोड़ दिया. इसी प्रकार से अन्य लोगों ने भी अपनी-अपनी कहानी सुनायी. कुल मिलाकर सभी ने एक मत से यही कहा कि वह आज नशा छोड़कर एक खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. नशा के समय न केवल उन्हें आर्थिक क्षति हो रही थी बल्कि उनके चेहरे का ओज भी गायब हो गया था. उनके सोचने समझने की शक्ति चली गई थी और उनकी समाज में इज्जत भी खत्म हो रही थी. इसलिए उन्होंने युवाओं से अपील की कि यथाशीघ्र नशा को न कहें, अगर नशा छोड़ने में देरी की, तो जिंदगी नरक बन जायेगी. एसडीओ ने किया सम्मानित आमंत्रित सभी सदस्यों को एसडीओ ने अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया. कहा कि उनकी इच्छा शक्ति सैल्यूट करने योग्य है. कार्यक्रम में विशेषज्ञ के रूप में मनोचिकित्सक संजीव कुमार, नशा मुक्ति परामर्शी नीरज कुमार तथा जेएसएलपीएस के डीपीएम विमलेश शुक्ला भी मौजूद थे.

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