पाल्हे कला के सेवा निवृत्त शिक्षक हृदय नाथ चौबे आधुनिक खेती कर बन रहे हैं प्रेरणास्त्रोत जितेंद्र सिंह, गढ़वा ग्राफ्टेड टमाटर और बैंगन से बढ़ रही आमदनी धान, गेहूं और मक्का जैसी परंपरागत फसलों से हो रही कम आमदनी से परेशान कई किसान अब आधुनिक तकनीक की ओर रुख कर रहे हैं. श्री बंशीधर नगर पंचायत क्षेत्र के पाल्हे कला गांव निवासी सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक और प्रगतिशील किसान हृदय नाथ चौबे इसका जीवंत उदाहरण हैं. उन्होंने डेढ़ एकड़ भूमि में ग्राफ्टेड टमाटर और बैंगन की खेती शुरू की है, जो न केवल अधिक उत्पादन देती है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है. हृदय नाथ चौबे ने छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से 10 रुपये प्रति पौधे की दर से ग्राफ्टेड पौधे मंगवाये हैं. इन पौधों को टपक सिंचाई और मल्चिंग पेपर की सहायता से बेड बनाकर लगाया गया है. मल्चिंग तकनीक से खरपतवार की समस्या नहीं होती और नमी भी बनी रहती है, जिससे सिंचाई में पानी की बचत होती है. टपक सिंचाई के माध्यम से पौधों को आवश्यकतानुसार पानी और उर्वरक मिलते हैं, जिससे पौधों का विकास बेहतर होता है। ग्राफ्टेड सब्जियों की खेती से प्रति एकड़ दो से तीन लाख तक की आमदनी संभव ग्राफ्टेड पौधे सामान्य पौधों की तुलना में अधिक उत्पादन देते हैं और विभिन्न बीमारियों के प्रति अधिक सहनशील होते हैं. इन पौधों को किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है, जिससे किसान ऑफ-सीजन में भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं. चौबे बताते हैं कि परंपरागत खेती से एक एकड़ में अधिकतम 30,000 की ही बचत होती है, जबकि ग्राफ्टेड सब्जियों की खेती से प्रति एकड़ दो से तीन लाख तक की आमदनी संभव है. उन्होंने बताया कि डेढ़ एकड़ में ग्राफ्टेड टमाटर और बैंगन की खेती में लगभग दो लाख का खर्च आया है, लेकिन उत्पादन और बाजार मूल्य को देखते हुए यह निवेश लाभकारी सिद्ध होगा. उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे ऑफ-सीजन में सब्जी वर्गीय फसलें लगायें ताकि बाजार में अच्छे दाम मिल सकें. ग्राफ्टेड तकनीक छत्तीसगढ़ में पहले से ही लोकप्रिय है और टमाटर, बैंगन, मिर्च और शिमला मिर्च जैसी फसलों पर यह पूरी तरह सफल रही है. इस तकनीक को अपनाकर किसान न केवल अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि जल संरक्षण, उर्वरक की बचत और रोग नियंत्रण जैसे लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं.
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