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लीड..जी.. ओके… वक्त आ गया है धनकटनी का, पलायन करते हैं खेतिहर मजदूर(फोटो लेना है)

लीड..जी.. अोके… वक्त आ गया है धनकटनी का, पलायन करते हैं खेतिहर मजदूर(फोटो लेना है)पहले चरण के मतदान में खेतिहर मजदूरों की भागीदारी से मतदान प्रतिशत बढ़ा. दूसरे चरण के बाद से मजदूरों के पलायन का असर पड़ेगा वोट प्रतिशत पर. मजदूरों का दोटूक जवाब होता है- पहले पेट देखें या वोट. 24जीडब्ल्यूपीएच 1 व […]

लीड..जी.. अोके… वक्त आ गया है धनकटनी का, पलायन करते हैं खेतिहर मजदूर(फोटो लेना है)पहले चरण के मतदान में खेतिहर मजदूरों की भागीदारी से मतदान प्रतिशत बढ़ा. दूसरे चरण के बाद से मजदूरों के पलायन का असर पड़ेगा वोट प्रतिशत पर. मजदूरों का दोटूक जवाब होता है- पहले पेट देखें या वोट. 24जीडब्ल्यूपीएच 1 व 3-वाहनों पर सवार होकर धनकटनी के लिये जाते मजदूर हेडलाइन…असर पड़ सकता है मतदान प्रतिशत पर गढ़वा. वर्ष 2015 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के प्रथम चरण में खेतिहर मजदूरों की भी अच्छी भागीदारी रही. इसका असर चुनाव में मतदान के प्रतिशत पर पड़ा है. विदित हो कि गढ़वा जिले में प्रथम चरण में जिन पंचायतों में मतदान हुए हैं, उनमें अधिकतर उग्रवाद प्रभावित इलाके में आते हैं. जहां नक्सलियों के चुनाव बहिष्कार के नारे के कारण भयवश अधिकतर मतदाता वोट देने से बचने का प्रयास करते हैं. लेकिन इन पंचायतों में इस बार चुनाव में 70 प्रतिशत से अधिक मतदान होने का कारण खेतिहर मजदूरों के भी पूरी तरह मतदान में भाग लेना है. गौरतलब है कि रमकंडा, भंडरिया, रंका, चिनिया एवं बड़गड़ जैसे प्रखंडों में खेतिहर मजदूरों की संख्या ज्यादा है. ये खेतिहर मजदूर अकाल अथवा सूखे की स्थिति में अक्सर अपने गांव से बाहर पलायन किये रहते हैं. विशेष कर जब धनकटनी का समय होता है, तो वे धान काटने के लिए बिहार के रोहतास, भोजपुर अथवा उत्तरप्रदेश के सिंचित इलाकों में चले जाते हैं. लेकिन इस बार धनकटनी शुरू होने से पूर्व प्रथम चरण का पंचायत चुनाव संपन्न हो जाने के कारण खेतिहर मजदूरों को अपना वोट देने का अवसर मिला. इसके कारण कहीं-कहीं पंचायतों में 85 प्रतिशत तक मतदान हुए. इन खेतिहर मजदूरों को चुनाव से पहले धनकटनी के लिए जाने से रोकने के लिए स्थानीय प्रत्याशियों ने भी पहल की थी. इसके कारण खेतिहर मजदूरों ने रुचि लेकर 22 नवंबर को मतदान में हिस्सा लिया. अब इन क्षेत्रों के मजदूर मतदान संपन्न होते ही धनकटनी के लिए निकल पड़े हैं. लोकतंत्र के लिए यह एक बड़ा सुखद संदेश है कि खेतों में काम कर अपना पेट भरनेवाले महिला एवं पुरुष मजदूरों ने चुनाव को इतना महत्व दिया. उन्होंने वोट के लिए एक सप्ताह समय बढ़ाया. रमकंडा प्रखंड की उदयपुर, हरहे आदि पंचायतों के मजदूरों ने कहा कि वे अपना काम कर चुके हैं. जीत-हार चाहे किसी की हो, वे अब अपने पेट के लिए बाहर निकलने के लिए मजबूर हैं. वहीं से वे चुनाव के परिणामों की जानकारी लेंगे. प्रथम चरण में पंचायत चुनाव में खेतिहर मजदूरों की जितनी शिरकत रही, दूसरे चरण में उतनी संख्या में खेतिहर मजदूरों की उपस्थित होने की संभावना कम दिखती है. इसका असर पंचायत चुनाव के वोट प्रतिशत पर पड़ सकता है. इसका बड़ा कारण है कि मजदूरों को धनकटनी के लिए निकलने का समय हो चुका है. इसको देखते हुए जिले की सभी अन्य पंचायतों से हजारों की संख्या में मजदूरों को प्रतिदिन धनकटनी के लिए निकलते देखा जा रहा है. पंचायत चुनाव में इनकी अनुपस्थिति का असर चुनाव परिणामों को भी प्रभावित करेगा. गढ़वा प्रखंड की कल्याणपुर पंचायत से धनकटनी के लिए परिवार सहित पलायन कर रहे एक मजदूर लालमुनि उरांव से पूछे जाने पर उसने कहा कि उसे भी शौक था कि पंचायत चुनाव में वह अपना वोट करता. सभी प्रत्याशी इसके लिए उस पर दबाव भी बना रहे हैं. लेकिन उनकी पंचायत में 12 दिसंबर को वोट होना है. यदि वह 12 दिबंसर तक रुक गया, तो इस वर्ष का सीजन ही उसके लिए चला जायेगा. उसने कहा कि जब वह रोहतास धान काटने जाता है, तो वह एक साल के लिए खर्ची लेकर लौटता है. क्या कोई प्रत्याशी उसे इतना खर्च पूरा सकता है. तो आखिर क्यों वह धान काटने नहीं जाये. उसे वोट देने से क्या मिल जायेगा. लालमुनि की तरह ही पलायन करनेवाले अन्य मजदूरों की भी यही भावना है. इसको देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता कि आगे के चरणों में मतदान में खेतिहर मजदूरों की भागीदारी नहीं हो सकेगी.

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